परकाया प्रवेश एक सत्य, एक तथ्य

March 1994

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कैम्प के आस-पास घना जंगल था। जंगल की सघनता दिन में ही शाम हो जाने का भ्रम पैदा कर रही थी। चारों ओर ली निस्तब्धता को यदा कदा किसी वन्य पशु की आवाज भंग कर देती । मनुष्य विहीन इस इलाके में ये कुछ मनुष्य अपने कैम्प में बैठे किसी योजना पर विचार कर रहे थे। उनके द्वारा पहनी गई पोशाक उन सभी के फौजी होने की याद दिला रही थी। वहीं पास में एक नदी बहती थी। नदी के पास ही यह मंत्रणा चल रही थी।

एकाएक उनमें से कुछ लोगों का ध्यान नदी की ओर चल गया। एक ने अपने कमाण्डेन्ट की ओर संकेत ने अपने कमाडेन्ट की ओर तनिक उधर देखिए।”लंबा कद, गठीला शरीर गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आंखों में तेज ऐसा था फैरेल साहब का प्रभावशाली व्यक्तित्व। वे इसी साल सन् 1938 में ही इंग्लैण्ड संकेत को समझ कर उन्होंने भी दृष्टि अटक कर रह गई टेलिस्कोप उठाकर देखा देखा एक बहुत जीर्ण शीर्ण शरीर का बूढ़ा संन्यासी पानी में घुसा एक शब को बाहर निकाल रहा है। हाँफता जाता था और खींचता भी। बड़ी कठिनाई से शब किनारे आ पाया।

अंग्रेज होते हुए भी उनकी आध्यात्मिक विषयों में गहरी रुचि थी। भारत वर्ष में एक उच्च सैनिक अफसर नियुक्त होने के बाद तो जैसे उनके जीवन में एक नया मोड़ आ गया। भारतीय तत्वदर्शन का उन्होंने गहरा अध्ययन ही नहीं किया, जितनी भी जानकारी मिली, वह सिद्ध महात्माओं का समाधान करते रहे। अब तक तो उनकी अंर्तचेतना में भारतीय संस्कार स्थान ले चुके थे।

यह बूढ़ा व्यक्ति शब क्यों खींच रहा है? इस रहस्य को जानने की उनकी जिज्ञासा स्वाभाविक थी। योजना तो वही धरी रह गई, सब लोग एकटक देखने लग गए कि वृद्ध संन्यासी इस शब का क्या करता है?

इतनी देर में वृद्ध संन्यासी शब को खींच कर एक वृक्ष की आड़ में ले जा चुका था। थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा, कुछ पता नहीं चला कि वह क्या कर रहा है। कोई पंद्रह-बीस मिनट बाद ही दिखाई दिया कि वह युवक जो अभी शव के रूप में नदी में बहता चला बाहर निकल आया और कपड़े सुखाना चाहता था।

मरे हुए आदमी का अचानक जीवित हो जाना एक महान आश्चर्य जनक घटना थी और एक बड़ा भारी कौतूहल पैदा कर रहा था, साथ में आशंका दिया। थोड़ी ही देर बाद सशस्त्र सिपाहियों की एक टुकड़ी ने जाकर उस युवक को घेर लिया और उसे बंदी बनाकर उनके पास ले आए।

,युवक के वहाँ आते ही फैरेल ने प्रश्न किया-वह वृद्ध कहाँ है? इस पर युवक हँसा जैसे इस गिरफ्तारी आदि का उसके मन पर कोई प्रभाव ही न पड़ा हो। हँसते हुए वह बोला-वह बूढ़ा आश्चर्यचकित फैरेल ने एक साथ इतने सारे सवाल पूछ डाले जिनका एक साथ उतर देना असंभव सा था।

युवक ने संतोष के साथ बताया इस योगी है हमारा स्थूल शरीर बूढ़ा हो गया था, काम नहीं देता था। अभी इस धरती पर रहने की हमारी चाहत मरी नहीं थी। किसी को मारकर बलात् शरीर में प्रवेश करना तो पाप होता, इसी कि कोई अच्छा शब मिले तो उससे अपना यह पुराना चोला बदल डालें। सौभाग्य से यह पुराना चोला बदल डालें। सौभाग्य से यह इच्छा आज पूरी हुई। मैं। ही वह बूढ़ा हूँ। यह शरीर अब तक उस युवक का था, अब मेरा है।

सारा विवरण सुनकर वे हतप्रभ हो गया। कुछ क्षण की चुप्पी के बाद उन्होंने अगला सवाल किया-

“तब फिर तुम्हारा पहला शरीर कहाँ ह?”

स्केत से उस युवक शरीर में प्रवेश धारी संन्यासी ने बताया वह वहाँ पेड़ के नीचे अब मूक अवस्था में पड़ा है। अपना प्राण खींच कर उसे इस शरीर में धारण कर लेने के बाद उसकी कोई उपयोगिता आवश्यकता नहीं रही। थोड़ी देर में उसका अग्नि संस्कार कर देते पर अभी तो इस शरीर कपड़े भी नहीं सुखा पाए थे कि आपके सैनिकों ने हमें बंदी बना लिया,

श्री फैरेल इसके बाद उस संन्यासी से बहुत सारी बातेँ पूछते रहे। उन्हें यह भी उत्सुकता थी कि

स्थूल शरीर के अणु-अणु में व्याप्त प्रकाश शरीर को किस प्रकार समेटा जा सता है कि प्रकार शरीर से बाहर निकाला जा सकता है और दूसरे किसी शरीर में ह? पर यह सब कष्ट साध्य योग थीं। उसके लिए तो उनके व्यस्त जीवन में समय न था । पर उन्होंने यह अवश्य स्वीकार किया कि सूक्ष्म अंर्तचेतना से संबंधित भारतीय तत्वदर्शन से संबंधित भारतीय तथ्य है। सन् 1948 ई॰ में ब्रिटेन वापस लौटकर उन्होंने योग-तंत्र से संबंधित कर एक ग्रंथ के रूप में प्रकाशित कराया।


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