रक्षक के हाथ बड़े लंबे हैं।

March 1994

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“ आज रक्षक भक्षक बन गया है। हम किसी प्रकार तुझे सेना में जाने से रोक नहीं सकते।” मेरी माता ने कहा था। उस माता ने जिसने जीवन के अस्सी वसंत देख लिए है जो पिछले बाईस वर्ष का अपना वैधव्य जीवन एक मात्र अपने इस पुत्र के सहारे बिताती रही है। जिसकी भौहों तक के केश श्वेत ही चुके है। जिसके शरीर पर काल की रेखाएं झुर्रियां के रूप में सर्वत्र गिनी जा सकती है। जो इस बुढ़ापे में भी घर के काम से बचा समय अपने छोटे बगीचे में पेड़ पौधों को सींचने-गोड़ने तथा घास निकालने में बिता देती है। फलों को कुतरने वाली चिड़ियों एवं गिलहरियों को भी जो बुरा-भला कहने के बदले-चुगने को दोनों समय नियम से दाने डालती है। जिसे किसी से झगड़ने पूरे कस्बे में किसी ने कभी नहीं देखा। वह मेरी माँ रो रही थी । उसने मुझे विदा लेते समय कहा था जहाँ तक बन सके अपने हाथ निरपराधो के रक्त से रँगने से बचना। परमात्मा तेरी रक्षा करेगा? प्रत्येक युवक को सैनिक शिक्षा लेनी ही पड़ती है हमारे देश में और प्रत्येक सैनिक आयु का व्यक्ति इस युद्ध के प्रारंभ में ही सेना में बुला लिया गया। मेरी माँ को चाहे जितना दुःख हो हजारों माताओं को उसा ही दुःख है। किंतु जर्मनी में फयुहरर (हिटलर) के आदेश को कोठ्र असह्य वृद्धा कैसे टाल सकती थी। मुझे सैनिक प्रशिक्षण पहले ही प्राप्त ही चुका था। अब कुछ महीनों में मैं पनडुब्बी पर काम करने के लिए शिक्षित किया गया, क्योंकि में बहुत कुछ जल सेना की शिक्षा भी प्राप्त कर चुका था। जर्मनी की जल सेना छोटी है। ग्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका की संयुक्त जल सेना चर्चा तो दूर रही कलेले ब्रिटेन को जल शक्ति से टक्कर लेने की बात भी सोची नहीं जा सकती। किंतु-फ्युहरर को अपनी पनडुब्बियों पर भरोसा है। विपक्षी के जहाजों को डुबा कर उसकी जल सेना की रीढ़ तोड़ दी जा सकेगी। यह कठिन भले ही हो, असंभव नहीं लगता है और जर्मनी का शौर्य असंभव को संभव बनाने से ही कब हिचका है। मेरा काम न यान संचालन करना है और न तारपीड़ो से प्रहार करना। मैं यंत्र कक्ष निरीक्षक हूँ। कभी-कभी रेडियो संवाद लेने और सुनने का भी काम कर रहा हूं। वैसे यह तो है ही कि पनडुब्बी के प्रत्येक व्यक्ति को उसके संचालन, तारपीडो प्रहार तथा यंत्रों के समस्त प्रयोगों की शिक्षा लेनी पड़ती है। कब कैसी दुर्घटना होगी और किस व्यक्ति के लिए कौन सा काम अनिवार्य बन जायगा यह कहा नहीं जा सकता। कोई कह सकता है कि मैंने किसी जहाज पर अपने हाथ से तारपीड़ी नहीं चलाया, अतः हत्या के रक्त से बचा हूँ किंतु मैं अपने आपको धोखा कैसे दे सकता हूँ। मुझे ही अपने यंत्रों से पता लगा कर सूचित करना पड़ता था कि विपक्षी जहाज कहाँ है? किस ओर जा रहा है? किस स्थान से उस पर आघात करना ठीक रहेगा, यह निर्णय भले कप्तान करता हो किंतु मेरा योग इस विनाश में कम नहीं बिगाड़ा जिन्हें हम जानते तक नहीं। यह भी तो हो सकता था कि वे कभी हमारे देश पर आक्रमण करने न जायँ। लेकिन वे विपक्ष के जहाज पर हे, जब वे सर्वथा असावधान होते, हमारी पनडुब्बी से उनकी मृत्यु दौड़ पड़ती उनकी ओर। हमारी पनडुब्बी में पर्याप्त पैट्रोल था। एक महीने हम बराबर समुद्र में रह सके, इतना ईंधन, भोजन का सामान और आधार के प्रचुर अन्न । हमने अफ्रीका के दुर्गम पश्चिमी तट के एक स्थान पर कुछ खाद्य पदार्थ और पैट्रोल छिपा रखा था। संकट के समय वह हमारे काम आता। दो बार बीच में हम वहाँ उतरे भी थे। कुल सात व्यक्ति थे हमारी पनडुब्बी में सब युवक और साहसी हमने ब्रिटेन के पाँच जहाज डुबाए, जिनमें तीन भारी सैनिक जहाज था, कुछ इसका यह परिणाम हुआ कि ब्रिटेन के हवाई जहाज और विध्वंसकों का पूरा दल हमारी खोज में निकल पड़ा । वन में जैसे किसी नरघाती चीते को ढूंढ़ने लगे। संभव उन्होंने अपने अन्वेषण के क्षेत्र बाँट लिए हो। “ बचने और भागने की नीति कायरों की नीति है। “हमारे केन्द्र को परिस्थिति की सूचना दी तो वहाँ से फटकार मिली।” आघात करो और शत्रु के अधिक से अधिक विध्वंसकों को नष्ट कर दो।”तुम्हारे दो सहयोगी और आ रहे है। हमारा कप्तान आवेश में आ गया। केवल बारह घंटों में हमने विपक्ष के तीन विध्वंसकों को और जल समाधि दे दी। किंतु इस उत्साह का दुष्परिणाम सम्मुख आ गया। हम घिर गए। ब्रिटिश पोतों ने इस प्रकार विस्फोटक फेंकने प्रारंभ किए, जिससे मिलों तक समुद्र का पानी पूरी गहराई में ऐसे खौलने लगा, जैसे चूल्हे पर चढ़ा पतीली का पानी। भयंकर विस्फोट का शब्द । मैं मूर्छित हो गया और फिर मुझे कुछ पता नहीं है कि मेरे साथियों का मेरी पनडुब्बी का अथवा हमें घेरे में लेकर मौत की वर्षा करने वाले उन विपक्ष के विध्वंसकों का क्या हुआ? केवल अनुमान कर सकता हूँ कि पनडुब्बी के चिथड़े उड़ गये होगे। मेरे साथी समुद्र के गर्भ में सो गए होंगे समुद्री जंतुओं ने उन्हें पेट में पहुँचा दिया होगा। जल के ऊपर तेल का प्रवाह जब तैर आया होगा, विपक्षी पोत अपनी सफलता का आनन्द मानते लौट गए होंगे, किंतु मैं ‘रक्षक के हाथ बहुत लंबे हैं’ इसलिए मैं यह सब लिचाने को बचा हुआ हूँ। जब मुझे चेतना प्राप्त हुई, तेज धूप थी। सूर्य आकाश में सिर के ऊपर था। पीड़ा से मेरा पूरा शरीर फटा जा रहा था। शीघ्र ही उल्टी हो गई। बहुत सारा खारा पानी निकला पेट से। शरीर और सिर का दर्द कुछ कम हुआ। किंतु प्यास के कंठ सूखा जा रहा था। हिलने की शक्ति नहीं थी। मैं आधे से चित पड़ गया और पता नहीं कब तक पड़ा रहा। संभवतः’ मैं फिर मूर्छित हो गया था इस बार मुझे वर्षा की बूंदों ने जगाया। बड़ी-बड़ी बहुत तेज वर्षा किंतु कुल आधे घंटे के पश्चात् फिर सूर्य निकल आया। कुछ वर्षा का जल मैंने मुंह खोलकर कंठ तक पहुँचाया था। अब बैठकर मैंने कमीज खोली और उसे मुख में निचोड़ने लगा। थोड़ी शक्ति मिली जल पीकर। मैं चौक गया, क्योंकि मैं जिस आधार पर पड़ा हूँ, वह स्थिर नहीं है। वह हिल रहा है और संभवतः चल भी रहा है मैं उठ कर खड़ा हो गया और देखने लगा कि मैं कहाँ हूँ। चारों ओर अनंत समुद्र है। सूर्य ढलने लगा है अतः मैं केवल दिशा का अनुमान कर सकता हूँ, किंतु मैं इस समय कहाँ हूँ-यह जानने का कोई उपाय नहीं। यह मैंने देख लिया है कि जिस आधार पर मैं इस समय हूँ, वह एक तैरता हिमखण्ड है- ध्रुव से समुद्र मैं तैर आने वाला हिमखण्ड । जल में वह कितना डूबा है पता नहीं किंतु ऊपर अब वह दो-ढाई गज लंबा है । इसका अर्थ है। कि मैं उत्तर ध्रुव से चलने वाली शीतल जल धारा में दक्षिण अफ्रीका की ओर इस हिम खंड पर बहता जा रहा हूँ ऊपर एक भारी गिद्ध चक्कर लगा रहा है। वह मेरी मृत्यु की प्रतीक्षा करता होगा। वह समुद्री गिद्ध अब दस - पंद्रह दिन मजे से प्रतीक्षा करता साथ चल सकता है। मृत्यु में सिहर उठा। जेबों का टटोलने पर पेंसिल,डायरी और कुछ गोलियाँ मिल गयी है। ये आहार की गोलियाँ है। इनसे पेट नहीं भरता, क्ष्द्वाधा का कष्ट नहीं मिटता, किंतु शरीर को क्षमता मिल जाता है। काम करने को क्षमता बनी रहती है। हमारे वैज्ञानिकों ने विपत्ति में पड़े सैनिकों के लिए इनका आविष्कार किया था। मैंने तो गोली एक साथ खाली है। शरीर में अब स्फूर्ति का अनुभव करता हूँ। दर्द भी घटा है। किंतु यह तैरता, हिमखंड इन बहते हिमखंडों को सूचना देने वाला विभाग क्या इनसे अनभिज्ञ है? क्या इसके अपेक्षणीय आकार तक गल जाने के कारण अब उसने इसका पता रखना और इसके संबंध में जहाजों को सूचना देना-बंद कर दिया हे? क्या कोई जहाज मिलेगा मार्ग में? यह भी तो सम्भव है कि इसके प्रवाह की सूचना दी गयी हो और इधर से कोई जहाज आये हो नहीं अंतिम संभावना ही अधिक है। इसका अर्थ जो कुछ हे जीवन के अंतिम क्षण तक उसे लेकर आतंकित क्यों बनूँ। किंतु मैं यह सब क्यों लिखने बैठा हूँ? क्या उपयोग इसका? इस हिमखंड पर बैठे-बैठे और कर भी क्या सकता हूँ। समय काटने का साधन भी तो कुछ चाहिए। रात्रि का अंधकार फैलने से पूर्व एक दुर्घटना और हो गयी। मैं जिस हिमखंड पर था, उसमें एक रेखा दिखी बस बाल के समान पतली रेखा। शीघ्र ही वह दरार बन गयी और हिमखंड दो टुकड़ों में विभक्त हो गया। मैं जिस टुकड़े पर बैठा था, वह बहुत छोटा हो गया था। कूदकर मैं दूसरे टुकड़े पर आ गया। रात्रि कैसे व्यतीत हुई पूछिए मत। सूर्य की किरणों को देर तक मेरा शरीर सेंकना पड़ा, तब कही में उठकर बैठने योग्य हुआ हूँ किंतु यह सम्मुख क्या है? हे भगवान। हे दयावान! यह तो पृथ्वी है ये वृक्ष दिख रहे है समुद्र तट के । मेरे प्रभु! ते तेरे लंबे हाथ मुझे बचाने यहाँ तक बढ़ आये है। माँ ने सच कहा था, रक्षक के हाथ बहुत लंबे हैं। इस घटना को बीते क्षण पल कास कितने गुजरे ठीक पता नहीं। वर्षा पीछे अमेरिकन उन्थ्रोपोलिजिस्ट राबर्ट बेलटाइन को समुद्र तट पर एक डायरी मिली। उसमें इस जर्मन सैनिक के लिखे अनुभव है। ढूँढ़ - खोज की प्रवृत्ति वाले बेलन्टाइन ने अपनी पुस्तक-” दन उस्टानिशमेण्ट माई लाइफ “ में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि काँगो के सुदूर उत्तरी गहन जंगली भाग में अत्यंत बर्बर बौने लोग रहते हैं । काँगो के सात फुट ऊंचे बालूवा’जाति के शूर भी उन बौनों का नाम से काँपते हैं। शायद किसी ने साहस नहीं किया उस अंचल में जाने का। बहुत पता करने पर मालूम हुआ कि कोई गौर वर्ण तरुण उन बौनों के बीच रहते हैं। दूर से दो एक शिकारियों ने उसे देखा है। बौनों के संपर्क में आने वाली जाति के मुखिया का कहना है” वह बौनों का देवता है। उसी के कारण बौनों अत्यधिक निर्भय हो गए है और अब नर हत्या भी उन्होंने छोड़ दी है। “ वह देवता कहता है कि “ पूरे संसार का कोई स्वामी है और उसके रक्षा करने वाले हाथ भले दीखते न हो, सब कही विपत्ति से बचाने को बढ़ जाते हैं। किंतु प्राणियों के मारने वाले को वह रक्षक पसंद नहीं करता।”‘


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