बड़प्पन सहयोगी बनने में (Kahani)

March 1994

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सत्य और आदर्श दोनों में विवाद उठ खड़ा हुआ यथार्थ कहता था ‘मैं बड़ा हूँ’ और आदर्श कहता था में । विवाद तय न हुआ। यथार्थ और आदर्श दोनों प्रजापति ब्रह्म के समीप गये और कहा “भगवान ! आपने ही हमें पैदा किया है अब निर्णय दें, हम दोनों में मुस्कराकर बोले-”भाई ! बड़ा तो वही हो सकता है। जो आकाश और पृथ्वी दोनों में संबंध जोड़ दे। यथार्थ ने अपना विस्तार करना प्रारंभ किया पृथ्वी से ऊपर उड़ता ही गया, पर वह सूर्य को भी छू नहीं सका। उसने हार मान ली और आदर्श से बोला,”अच्छा अब आप यह करके दिखाये। आदर्श आकाश को चला गया और वहां से अपने पैर बढ़ाकर धरती को छूने का प्रयत्न करने लगा, पर वह बीच में ही लटक कर रह गया। दोनों ने सिर झुकाकर प्रजापति के सामने अपना-अपना होना स्वीकार की। ब्रह्माजी ने कहा,”यो हार मान जाओगे, तो तुममें से एक भी जीवित न बचेगा। जाओ, अब थोड़ा मिलकर प्रयत्न करो। यथार्थ और आदर्श भाई - भाई की तरह मिले और दोनों ने पृथ्वी - आकाश को जोड़ दिया। प्रजापति यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले-”वत्स ! तुम्हारा बड़प्पन परस्पर प्रतिद्वंद्वी बनने में नहीं, सहयोगी बनने में है। जिसने जितने में यथार्थ और आदर्श का समन्वय किया , वही अपने स्तर से उद्यत स्थिति तक बढ़ सकता है । यह बात समान रूप से समुदाय में व्यक्ति -व्यक्ति में पाई जाने वाली भिन्नता पर लागू होती है। श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर ही व्यक्ति श्रेष्ठ एवं श्लाघ्य पर प्राप्त करता है।


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