इंग्लैण्ड के बादशाह हेनरी पंचम जब युवराज थे तब बड़े उजड्ड थे। एक बार न्यायाधीश ने किसी अपराधी को कानून के अनुसार दंड दिया। इस पर हेनरी ने न्यायाधीश से कहा-”मैं युवराज की हैसियत से आदेश देता हूँ कि आप इसे छोड़ दें। न्यायाधीश ने आदेश नहीं माना और कहा-कानून युवराज से बड़ा है। इस पर बौखलाये हेनरी ने न्यायाधीश को एक थप्पड़ जड़ दिया जज ने तुरंत पुलिस बुलाकर उसे जेल में अंदर करा दिया। साथ ही एक नोट लिख कर भेजा।”आगे चलकर आपको इस देश का राजा बनना है। अगर आप ही राज्य के कानूनों का सम्मान न करेंगे, तो प्रजा आपकी आज्ञा क्यों मानेगी। हेनरी ने अपनी भूल मानी और माफी माँगी। जब वह राजा बना। तब भी उस न्यायाधीश की घटना को सदा सराहता रहा।
स्वामी विवेकानंद ने अपने शिष्य को एक कथा सुनाई। एक तत्व ज्ञानी अपनी पत्नी से कह रहे थे, संध्या आने वाली है। काम समेट लो। एक सिंह कुटी के पीछे यह सुन रहा था उसने समझा संध्या कोई बड़ी शक्ति है, जिससे डर कर यह निर्भर रहने वाले ज्ञानी भी अपना सामान समेटने को विवश हुए है। सिंह चिंता में डूब गया और संध्या का डर सताने लगा। पास के घाट का धोबी दिन छिपने पर अपने कपड़े समेट कर गधे पर लाने की तैयारी करने लगा। देखा तो गधा गायब। उसे ढूंढ़ने में देर हो गई। रात घिर आई और पानी बरसने लगा। धोबी को एक झाड़ी में खड़खड़ाहट सुनाई दी, समझा गधा है। तो लाठी से उसे पीटने लगा-धूर्त यहाँ छिपकर बैठा सुनाई दी, समझा गधा हैं।सिंह की पीठ पर लाठियां पड़ी तो उसने समझा यही संध्या हे सो डर से थर- थर काँपने लगा धोबी उसे घसीट लाया और कपड़े लादकर घर चल दिया रास्ते में एक दूसरा सिंह मिला उसने अपने अपने साथी की दुर्गति देखी तो पूछा यह क्या हुआ? तुम इस प्रकार लदे क्यों फिर रहे हो। सिंह ने कहा संध्या के चंगुल में फंस गया, वह बुरी तरह पीटती है और इतना वजन लादती है। सिंह को कष्ट देने वाली संध्या नहीं उसकी भाँति थी, जिसके कारण धोबी को कोई बड़ा देव दानव समझ लिया गया और भार एवं प्रहार बिना शिर हिलाये स्वीकार कर लिया गया । हमारी यही स्थिति है। अपने वास्तविक स्वरूप को न समझने और संसार के साथ जड़ पदार्थों के साथ अपने संबंधों का ठीक तरह ताल मेल न मिला सकने की गड़बड़ी ने ही हमें उन विपन्न परिस्थितियों में धकेल दिया है, जिनमें अंधकार के अतिरिक्त और कुछ दीखता ही नहीं। इस भांति को ही माया कहा गया है। माया को ही बंधन कहा गया है। और दुख का कारण बताया गया है। यह माया और कुछ नहीं वास्तविकता से अपरिचित रखने वाला अज्ञान ही है।