हम ईश्वर के बनें, उसके लिए जिएँ। अपने को इच्छा और कामनाओं से खाली कर दें। उसकी इच्छा और प्रेरणा के आधार पर चलने के लिए समर्पण कर दें, तो परमेश्वर को अपने कण-कण में लिपटा हुआ, अनंत-आनंद की वर्षा करता हुआ पा सकेंगे।
-पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य