विवेकपूर्ण गुरु दक्षिणा (Kahani)

March 1994

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संत तुकाराम जी को लगन लगी। उन्हें प्रभु कृपा से सद्गुरु मिले। मंत्र दीक्षा दी। तुकाराम जी ने कहा- “गुरु वर! दक्षिणा क्या दूँ? गुरु बोले पाव भर तूप दे दे। “ महाराष्ट्र में “तूप” का अर्थ घी होता है । तुकाराम एक पाव घी देकर छुट्टी पा सकते थे। पर सोचा “तूप” शब्द का ही प्रयोग क्यों किया, ‘घी’ ‘घृत’ आदि क्यों नहीं कहा। तुकाराम जी मानसिक उधेड़बुन में थे गुरु मंद-मंद मुस्करा रहे थे। शिष्य के विवेक और समर्पण भाव की परीक्षा थी। तुकाराम ने गुरु की मुख-मुद्रा देखी। समझ गये अर्थ कुछ गूढ़ ही है। अर्थ किया तूप, अर्थात् ‘तरापन’ । मरेर पर का अभिमान गुरु माँगते हैं। एक पाव घी के साथ भाव संकल्प कर दिया, अभिमान छोड़ने का । संत तुकाराम की निरभिमानता उन्हें वहाँ तक उठा ले गयी, जहाँ सदेह स्वर्ग ले जाने के लिए विमान भेजा गया। यह विवेकपूर्ण गुरु दक्षिणा ही फलित हुई थी।


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