व्यक्ति-व्यक्ति की भावनाओं में अंतर से परिणति भी भिन्न भिन्न होती है। उस पुरोहित को देवालय के समीप यज्ञ करते देखकर उधर से गुजरते हुये राजकुमार ने यज्ञ का कारण पूछा। पुरोहित ने कहा कि वह वल्वि पत्रों से हवन कर रहे है तीन वर्ष हो गये।
पर पाँच सोने के विल्व फल पाने का और दखिता मिटाने का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। राजकुमार ने पुरोहित से उनका आसन माँग लिया और उसी विधि से यज्ञ में आहुतियां डालने लगे, पर उनकी भावना में अंतर था । उनने क्रिया कृत्य में समूची श्रद्धा का समावेश किया और संकल्प किया कि जो भी प्रतिफल मिलेगा, उसे लोक कल्याण में लगा देंगे । दूसरे दिन यज्ञ कुण्ड में से सोने का पाँच विल्व फल निकले और राजा की झोली में जा बैठे। पुरोहित के आश्चर्य का समाधान करते हुए, राजकुमार ने कहा ’देवता मात्र कृत्य को ही महत्व नहीं देते । कर्ता की भावना भी परखते हैं।”