रेशम के कीड़े अपने लिए खोल बनाते और उसमें कैद रहकर दुर्भाग्य को कोसते हैं। गूलर के भुनगे उसी छोटे-दायरे में सिसका करते हैं। इसी तरह हम भी अपने घेरे में सिसकते हुए जीते और अनंत आनन्द गँवा बैठते हैं। —पं. श्री राम शर्मा आचार्या