धर्म का प्रयोजन (Kahani)

March 1994

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

विलासिता और सुख-साधनों के बीच रह कर वह प्रयोजन पूरा नहीं होता, जो इस आश्रम में प्रवेश करने वालों से अपेक्षित हैं एक राजा किसी ऋषि की हिमालय गुफा में जाकर शिष्य हो गया। उसने शिष्यों समेत अपने यहाँ पधारने का आमंत्रण दिया। सुविधानुसार सभी वहाँ पहुँचे। आहार-विहार में शिष्यों का मन लग गया। वे लंबी अवधि तक वहाँ रहने को तैयार हो गये। पर ऋषि दिन-दिन दुर्बल होने लगे। रुग्णता उन्हें ग्रसने लगी। राजा ने कारण पूछा, तो उनने एक ही कारण बताया, कि उनका मन हिमालय में पड़ा है और शरीर यहाँ। दोनों के दो जगह रहने से मनुष्य सुखी नहीं रह सकता और जो सुखी नहीं रह सकता, बीमार पड़ता है। राजा ने वस्तुस्थिति समझी और उन्हें उनकी गुफा तक पहुँचा दिया। वानप्रस्थी का स्थान वही है जहाँ वह काम कर सके, जिसके लिए उसने व्रत लिया।

द्रोणाचार्य धर्म शास्त्रों में प्रवीण पारंगत थे। पर वे शास्त्र अध्ययन के अतिरिक्त शस्त्र विद्या में भी कुशल थे उनमें प्रवीणता प्राप्त करने के लिए उनने तप साधना शक्ति भावना से भी अधिक श्रम किया था। वे शस्त्र संचालन का सत्पात्रों को शिक्षण देने के लिए भी एक साधन संपन्न विद्यालय चलाते थे। एक दिन धौम्य ऋषि द्रोणाचार्य के आश्रम में जा पहुंचें। आचार्य को स्वयं शस्त्र धारण किये और दूसरों को शस्त्र संचालन पढ़ाते देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ और बोले ‘सत्तें को तो दया धर्म अपनाना और भक्ति का प्रचार करना ही उचित है। उन रक्तपात की व्यवस्था क्यों बना रहे हैं।” उनने कहा यह परिस्थितियों की मांग है। सज्जनों को सत्संग से, सत्परामर्श से समझाकर रास्ते पर लाया जा सकता है इसलिए हम पहले उसी का प्रयोग करने के लिए कहते हैं किंतु सर्पों, बिच्छुओं, भेड़ियों पर धर्म शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । उनका मुँह कुचलने की शक्ति का होना आवश्यक है। इसके गिना उनकी दुष्टता रुकती नहीं।” धौम्य का समाधान हो गया द्रोणाचार्य की मान्यता स्वयं उनके शब्दों में ही इस प्रकार है-

अग्रतश्चतुरो वेदः पृष्ठतः स शरंधनुः। इदं बाह्य इंद क्षात्रं शास्त्रादपि शरादपि॥

अर्थात् “ मुख से चारों वेदों का प्रवचन करके और पीठ पर धनुषबाण लेकर चला जाय। शास्त्र शक्ति और शस्त्र दोनों ही आवश्यक है, शास्त्र से भी और शस्त्र से भी धर्म का प्रयोजन सिद्ध करना चाहिए।”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118