श्रद्धा-संकल्प (Kavita)

July 1991

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श्रद्धा निधि को श्रद्धाँजलियाँ, हम अर्पित करने आये हैं।

ओ सिंधु अगाध। समर्पण के, हम विंदु-समर्पण लाये हैं ॥ 1॥

श्रद्धा के केन्द्र हमारे थे, हम को नवजीवन दान दिया।

आपाद स्वार्थ में डूबे थे, सर्वार्थ भाव का भान दिया ॥

जन पीड़ा की अनुभूति करा, संवेदन भाव जगाये हैं।

श्रद्धा निधि को श्रद्धाँजलियाँ, हम अर्पित करने आये हैं॥ 2 ॥

अब विरह-वेदना से व्याकुल मन को, सहने का बल देना।

अंतर्यामी। अन्तरतम में आकर, स्नेहित संबल देना॥

हम को प्रतिपल का अनुभव हो, अन्तर में आप समाये हैं।

श्रद्धा निधि को श्रद्धाँजलियाँ, हम अर्पित करने आये हैं॥ 3 ॥

जन मंगल में जुट जाने का, बनकर संकल्प मचल उठना।

युग पीड़ा को पी जाने हित, प्राणों में आप उछल उठना॥

मानवता पीड़ित पीड़ा से, उसने आँसू छलकाये हैं।

श्रद्धा निधि को श्रद्धाँजलियाँ, हम अर्पित करने आये हैं॥ 4॥

हम युग सृष्टा के वंशज हैं, संदर्भ कहीं बदनाम न हो।

हम महाप्राण के अंशज हैं, संपर्क कहीं नाकाम न हो॥

श्रद्धाँजलि में संकल्प-सुमन हमने गुरुदेव! चढ़ाये हैं।

श्रद्धा निधि को श्रद्धाँजलियाँ हम अर्पित करने आयें हैं॥ 5 ॥

उज्ज्वल-भविष्य का संदेशा, हम जन जन तक पहुंचायेंगे।

जो ज्ञान-मशाल थमाई है, उसको घर घर पहुंचायेंगे॥

ले शपथ आपकी पीड़ा की, संकल्प यही दोहराये हैं।

श्रद्धा निधि को श्रद्धाँजलियाँ हम अर्पित करने आये हैं॥ 6॥

-मंगल विजय


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