कुतर्कों का पर्दाफाश (Kahani)

July 1991

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एक दुबला कुत्ता था। तालाब के किनारे खड़ा उसमें अपनी परछाई देख रहा था प्यासा तो था पर पीने के हिम्मत न पड़ती थी, क्योंकि परछाई वाले कुत्ते का हमला हो जाने का डर था।

बहुत देर हो गई। प्यास बढ़ने लगी तो उसने हिम्मत की ओर जो होगा देखा जायेगा सोचते हुए पानी में घुस पड़ा। जी भर कर पानी पिया। साथ ही सामने खड़ा दीखने वाला उस वक्त कुत्ता भी गायब हो गया।

डर वास्तव में अपनी ही परछाई है। जब तक उससे घबराते रहते हैं तभी तक वह डराती रहती है। कदम बढ़ा देने पर फिर ऐसा कुछ नहीं रहता जो पहले लगता था।

देखा जाना चाहिए। दूसरी ओर दुनिया भर की गन्दगी मन में रखकर बहिरंग जगत में पूजा उपासना का ढोंग रचने वाले दीन-हीन ही देखे जाते हैं व अंततः किये गये कृत्यों का दुष्परिणाम भी भुगतते हैं।

यदि ईश्वर की सत्ता पर हमें विश्वास दृढ़ हो तो उपरोक्त विवाद की जड़ में निहित कुतर्कों का पर्दाफाश देखते-देखते हो जाता है। ईश्वर संवेदना का, सरस-शाश्वत आनंद से लबालब अतः करण का नाम है। ईश्वर इकोलॉजी है, सुव्यवस्था बनाए रखने वाला एक निराकार मैनेजर है। यदि आस्तिकता के ये कुछ सूत्र ध्यान में रहें तो मन-मस्तिष्क पर छाया कुहासा मिट जाता है व हमें सत्य दिखाई देने लगता है।


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