हमारी प्रगतिशीलता (Kahani)

July 1991

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रोगी वैद्य के पास गया। अपनी बीमारियों का विवरण बताया और उनसे छुटकारा पाने का चिकित्सा उपचार पूछा।

चिकित्सक दार्शनिक स्वभाव का था। उसे रोगी फँसाने का लालच नहीं था। वास्तविकता समझाने में ही उसे आनंद आता था।

चिकित्सक ने रोगी से कहा आधा इलाज मैं आपका करूंगा और आधा आपको अपने आप करना पड़ेगा।

मैं आपके रोग के अनुरूप दवा दूँगा। देख भाल करूंगा और उतार चढ़ाव से निपटूँगा। यह मेरा काम है। आधे काम में आपको दो काम करने होंगे। आहार विहार और रहन सहन की विधि व्यवस्था का अनुशासनपूर्वक पालन करना। धैर्य और संयम अपनाये रहना।

आपका कार्य प्रधान है मेरा काम गौण। यदि आपने संयम बरता तो मेरा उपचार निश्चय ही सफल होकर रहेगा।

उस चिकित्सक से सभी रोगी यही शिक्षा प्राप्त करते और आने वालों में से अधिकाँश अपनी बीमारियों से छुटकारा पाकर निरोग जीवन बिताते।

आज हम बिलकुल उन्हीं परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि हमारी हठधर्मिता सर्वनाश की निमित्त बन जाय। अतः समय रहते हमें चेत जाना चाहिए और पिछली घटनाओं से सीख लेकर समय के अनुरूप अपने विचारों को परिवर्तित करते रहकर अपना अस्तित्व बचाये रखने का प्रयास करना चाहिए। इसी में हमारी प्रगतिशीलता है और समझदारी भी।


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