लाल बहादुर शास्त्री जिन दिनों भारत के प्रधान मंत्री थे। उन दिनों भारत के प्रधान मंत्री थे। उन दिनों अक्सर उन्हें विदेश जाना पड़ता था। बड़े आदमियों के लिए कीमती कपड़े आवश्यक समझे जाते है।
शास्त्री जी के पास पुराना कोट था। सेक्रेटरी ने नया सिलवाने का अनुरोध किया। पर शास्त्री जी ने पुराने कोट को ही उलटवाकर दुबारा सिलवा लिया। देशवासियों की स्थिति को देखते हुए उन्हें बचत का पूरा ध्यान रहता था। निजी कार्यों में विशेष रूप से।
सन्तुलित श्रम निष्ठ के महत्व को समझा जाय। हमारा जीवन पक्षाघात के रोगी की तरह न रहे। चिन्तन व क्रियाशीलता दोनों को ही उत्तरोत्तर विकसित करने की रुचि जगाई जा सके तो होने वाले परिणामों को देख चमत्कृत होना पड़ेगा। समूचे व्यक्तित्व का कायाकल्प हो सकेगा। अभी तक की अनगढ़ता के पीछे छुपा प्रतिभाशाली सामर्थ्यवान निज का स्वरूप उभर कर आ सकेगा। जीवन के इस अलौकिक रहस्य को जानें, समझें और आचरण में लाएँ तो हम स्वयं को समाज की अग्रिम पंक्ति में पाएंगे। यह एक प्रकार की जीवन साधना है पर प्रत्यक्ष फल देने वाली चमत्कारी विधा है। यह तथ्य स्मरण रहा तो सिद्धियों की खोज में इधर उधर न भटक कर हम जीवन देवता रूपी जिन्न को ही साधने का प्रयास करेंगे, यही तो नियन्ता को भी प्रिय है।
पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी :-