बेलजियम की रानी ने महान वैज्ञानिक आइंस्टीन को आमंत्रित किया। वे पहुँचे। रेल पर स्वागत के लिए उच्च अफसरों की मंडली मौजूद थी। पर वे इतने सादे कपड़ों में थे कि कोई उन्हें पहचान न सका।
स्वागत के लिए भेजे गये लोग वापस लौट आये। पीछे अपना बिस्तर सिर पर लादे आइंस्टीन स्वयं राजमहल पहुँचे। उनकी सादगी और सज्जनता की सर्वत्र भूरिभूरि प्रशंसा हुई।
होम्यो चिकित्सक डॉ. जॉन ग्रे, रसायन शास्त्री डॉ. रॉबर्ट हेयर तथा न्यूयार्क उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश जॉन डब्ल्यू एडमोंस सम्मिलित थे, ने भी उसकी पराशक्तियों को देखा और गंभीरतापूर्वक परखा था। तदुपरान्त सबने एक मत से स्वीकार किया था कि मनुष्य की अन्तर्निहित क्षमता असीम और अप्रत्याशित है। वह अपनी चेतन सत्ता का विकास करके अन्य असंख्यों व्यक्तियों की जीवन दिशा को बदल सकता है।
प्रकृति पदार्थमयी है, इसलिए उसका अनुशासन पदार्थ पर तो पूर्णतया लागू होता है, किन्तु मनुष्य चेतना का धनी है। उसकी अपनी विशेषता है और ऐसी है जो प्रकृति को भी अपना अनुयायी बना सकती है। अनुसंधान के लिए यदि आत्म सत्ता के क्षेत्र में प्रवेश किया जा सके तो मनुष्य सच्चे अर्थों में सिद्धियों और चमत्कारों का अधिपति हो सकता है।