बंगाल के खुदीराम बोस क्रान्तिकारी आन्दोलन में पकड़े गये। तब वे मात्र 14 वर्ष के थे। उन्हें फाँसी की सजा हुई। खुदीराम उस स्थिति में भी प्रसन्न रहते थे और पास होकर गुजरने वालों को भी हँसाते रहते थे। जेल के सभी अधिकारी उन्हें मन ही मन बहुत सम्मान देते और प्यार करते थे।
जब फाँसी का एक दिन बाकी था। जेलर को कुछ सूझा उसने मीठे आम खुद राम को दिये और कहा खा लेना। फिर कहाँ मिलेंगे। दूसरे दिन जेलर आया। पूछा आम खा लिये? बोस ने कहा मौत के डर से कुछ खा सकता ही नहीं। आम खाने की भी इच्छा नहीं हुई। वे रखे हैं कोने में।
जेलर ने आम उठाये तो देखा कि उन्हें भीतर से चूसा जा चूका है। मात्र छिलके में ही हवा भर के उन्हें जैसा का वैसा बना दिया गया है।
जेलर इस मखौल पर हँसते हँसते लोट पोट हो गया। खुदीराम भी हँसे और फाँसी का समय होते ही जल्लाद के साथ चले गये।
अभिलिप्सा का स्वरूप विकृत हो जाता है। फलस्वरूप पीला चश्मा पहन लेने पर सभी वस्तुएँ पीली दीख पड़ने की तरह संसार में दुःख दारिद्रय शोक संताप ही भरा दीखता है।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर यह षडरिपु हर अज्ञानी और अहंकारी व्यक्ति के पीछे लगे रहते हैं और तरह-तरह के त्रास देते रहते हैं। यही भव बंधन है जो कुसंस्कारों के रूपों में स्वभाव का अंग बन जाते हैं और जन्म-जन्मांतरों तक साथ चलते एवं त्रास देते हैं। इन्हें ही भव बंधन कहते हैं, इन्हीं से छुटकारा पाना मोक्ष है।