सामर्थ्य होते हुए भी जो परमार्थ कार्यों से जी चुराता है, वह निन्दनीय है। उससे भी अधिक निन्दनीय वह है, जो, दूसरों को भी अपनी जैसी कृपणता अपनाने का परामर्श देता है।
यही तो राह में सोचती हुई आयी थी। भावों को पढ़ने में कुशल बुद्ध ने समाधान सुझा दिया। जीवन में जाग्रति आये इसकी एक ही पहचान है, एक ही कसौटी, व्यक्तित्व का समस्त सामर्थ्य भागवत प्रयोजन को पूरा करने के लिए उमड़े बिना नहीं रहता। आम्रपाली इस नूतन तथ्य की अनुभूति कर रही थी। अगला पल अडिग निश्चय का पल था। धर्म चक्र के प्रवर्तक के चरणों में सर्व समर्पण का तात्पर्य खोना नहीं मिटना नहीं। खोती और मिटती तो तुच्छता और क्षुद्रता है, समर्पण तो महानतम और सर्वस्व की प्राप्ति का उत्सव है और वह उत्सव मना रही थी। अपने अन्दर देवता की खोज पूरी हुई। नया जन्म, नया जीवन, नयी यात्रा। एक अभिनव कायाकल्प कभी की नगर वधू अब नई व्यवस्था की कुशल रचनाकार बन गई। परिवर्तन का उल्लास भरा पर्व, नियामक शक्ति वर्तमान क्षणों में भी संचालित कर रही है। इन क्षणों में ऐसे ही कायाकल्प की अनुभूतियाँ अपेक्षाकृत कहीं प्रखर रूप से अनुभव की जा सकती है।