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July 1991

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हमारा एक मात्र सच्चा अध्यापक है आदर्श। उसकी शिक्षा-दीक्षा लेने वाले छात्र, नर-रत्न बनकर निकलते हैं। इस पाठशाला से बढ़कर और कोई शिक्षा संस्थान नहीं।

प्राथमिकता मिल सके। मिल बाँटकर खाने- “संजीवास्थ” अर्थात् एक साथ-मिलजुल कर जीने की आदत पड़ सके तो कोई कारण नहीं कि सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं की जटिलता सहजता से हल न हो सके। मनुष्यों की अनुदारता की तरह राष्ट्रों की संकीर्णता ही दूसरों की उपेक्षा करके अपना विलास बढ़ाने-वर्चस्व कायम रखने में लगेगी तो विग्रह एवं संघर्ष को जन्म देगी ही। इन उलझनों को न कूटनीतिक, चतुरता, सुलझा सकती है, न प्रलोभनों, धमकियों, दबावों का माहौल ही चिरस्थायी समाधान प्रस्तुत कर सकता है। विश्व संकट के विभिन्न नाम-रूपों के पीछे संकीर्ण स्वार्थपरता की असुरता ही डरावने कुचक्र रचती रहती है। आत्मिकी द्वारा अनुप्राणित दृष्टिकोण को व्यापक बनाने, जन-जन के मन-मन में उतारने वाली युग ऋषि प्रणीत विचारक क्रान्ति को व्यापक बनाया जा सके तो समूचे संसार को उलझी हुई समस्त समस्याओं का स्थायी समाधान निकल आयेगा। अनुदारता के मिटते ही सभी समस्यायें स्वतः ही हल हो जायेंगी।


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