अवाँछनीयता के पलायन का, औचित्य की संस्थापना का ब्रह्म मुहूर्त, यह एक बार ही आया है। फिर कभी हम लोग इस मनुष्य जन्म में ऐसा दिख सकेंगे, इसकी आशा करना एक प्रकार से अवाँछनीय ही होगा। अच्छा यही हो कि ऐसी पुण्य बेला का लाभ उठाने में आज के विचारशील तो चूक करें ही नहीं।