सर्वोपरि खोज (Kahani)

October 1990

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बायजिद स्वाध्याय में दत्तचित्त थे कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी, वहीं से उन्होंने पूछा “अरे भाई! किसे खोज रहे हो?” आगन्तुक ने विनम्र वाणी में उत्तर दिया बायजिद को मिलना चाहता हूँ।” “बायजिद ने द्वार खोलते हुए कहा हाँ भाई मैं भी तो पिछले पच्चीस वर्षों से बायजिद को ही तलाश रहा हूँ पर वह अभी तक मिला नहीं।” आगन्तुक ने अनुभव किया,”आत्मा को पा लेना ही सर्वोपरि खोज है।”


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