तृष्णा की बाल्टी (Kahani)

April 1990

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बुद्ध को प्यास लगी तो गाँव में कुएँ के समीप ठहर गये। बुद्ध ने देखा कि एक व्यक्ति कुएँ में बाल्टी डालता है। बाल्टी भर जाती है ऊपर खींचता है। इतने में सारा पानी बाएँ में ही बिखर जाता है। बाल्टी में अनेकों छेद थे। पानी बिखरना स्वाभाविक था। किन्तु वह मूढ़ व्यक्ति बार बार प्रयास करता व असफल रहता।

युद्ध बहुत देर तक खड़े-खड़े यह तमाशा देखते रहे। पास में उनका शिष्य आनन्द भी खड़ा था और देख रहा था। युद्ध ने आनन्द से कहा-देखो आनन्द। इस व्यक्ति के पास तृष्णा की बाल्टी है। यह कभी भर नहीं सकती। सारा जीवन यह भरने का प्रयास करेगा। किन्तु बर्तन रीता ही रहेगा। वह स्वयं की प्यास नहीं मिटा सकता। इससे हमें पानी की आशा नहीं करनी चाहिए।

जो जीवन भर अपव्यय के छिद्रों से गँवाता, चुकाता रहता हैं, वह स्वयं तो क्या, सत्य करेगा, औरों को दे सकने की स्थिति में भी क्या आ पाएगा?


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