ग्वाले जैसी गिनती (kahani)

April 1990

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गाँव के नुक्कड़ पर बैठकर एक ग्वाला नित्य आती जाती गायों का हिसाब रखता। प्रातः इतनी गायें जंगल गई। सायं इतनी लौटी। बुद्ध ने पूछा “तुम्हारी इनमें से कितनी हैं?” उसने कहा-मेरी एक भी नहीं, यह तो गाँव की है। मैं तो बैठकर गिनती कर लेता हूँ।

बुद्ध ने आनन्द से कहा-ऐसे आदमी कितने ही रूपों में मुझे मिलते रहते हैं, जो हिसाब रखते हैं कि अमुक मिलते रहते हैं, जो हिसाब रखते हैं कि अमुक शास्त्र में क्या लिखा है, अमुक पुस्तक में क्या कहा गया है? अमुक ने यह लिखा है? किन्तु जीवन में, आचरण में उनने सिद्धान्तों को अपनाते किसी को नहीं देखा। बहुसंख्य व्यक्ति इस ग्वाले जैसी गिनती में सारा जीवन गँवा देते हैं।”


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