विशेष लेख माला-१६ - युग प्रतिभाएँ इस तरह आगे आएँ

April 1990

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दीपावली, दशहरा जैसे महापर्व वर्ष में एक बार आते हैं। स्वाति वर्षा साल में एक बार ही होती है। उसका लाभ जिन सीपियों को, केलों को, बाँसों को उठाना होता है, वे उन्हीं दिनों उठा लेते है। बाद में तो बात गई आई हो जाती है। कन्यादान भी एक ही बार होता है। ब्रह्मकमल और संजीवनी बूटी भी वर्ष में एक बार ही फलती है। प्रतियोगिताएँ भी निर्धारित समय पर ही होती है। उत्तीर्ण-अनुत्तीर्ण होने का अवसर उन्हीं दिनों आता है। आये दिन वह अवसर मिलता रहे, ऐसा कहाँ होता है? राजनीतिक चुनाव पाँच वर्ष में एक बार होते हैं। यह अवसर विशेष है, जिन्हें महत्वपूर्ण माना और चूका नहीं जाता।

हर दूरदर्शी को यह अनुभव भी करना चाहिए कि युग परिवर्तन की वर्तमान वेला ऐसी है जिसकी पुनरावृत्ति बार-बार नहीं होगी। गाँधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन में जो लोग स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मिलित हो गये उन्हें इतने दिन बीत जाने के उपरान्त भी अभी तक समुचित सम्मान, पेन्शन, फ्री पास आदि की सुविधा मिलती है। शासन-सत्ता भी वही लोग प्रायः ४० वर्ष तक चलाते रहे। यदि समय निकल जाने पर अब कोई उत्सुक हो तो भी इस सुयोग को नहीं पा सकता। जो अवसर को पहचानने वाले साहस जुटा सके, वे ही समुचित श्रेय पा सके। अब कोई बन्दर, हनुमान नहीं बन सकता। किसी रीछ को जामवन्त, किसी गिद्ध को जटायु बनने का अवसर नहीं मिल सकता। जब महाभारत ही नहीं होने जा रहा हो तो कोई अर्जुन, भीम किस प्रकार इतिहास के पृष्ठों पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करा सकेगा।

कलेक्टर की नियुक्ति चुनाव आयोग या शासनाध्यक्षों द्वारा होती है। यह अवसर गिने–चुनों को मिलता है सो भी दूसरों के अनुग्रह से। किन्तु शासन तंत्र की तरह ही समर्थ धर्मतंत्र में सेवा क्षेत्र में यह अनोखी सुविधा है कि यदि कोई भावनाशील पुरुषार्थी अपनी उमंग और आदर्शवादी हिम्मत से काम ले तो वह मण्डलाधीश मण्डलेश्वर, मण्डलीक, मण्डलाधिपति आदि बन सकता है और इतना समर्थ बन सकता है कि उसका शासन जन-जन के मन पर रहे और उसकी इच्छा के बिना महत्वपूर्ण हलचलों के क्षेत्र में पता भी न हिले। इसी स्तर के लोगों की इन दिनों सर्वत्र माँग है। उनके उभरने की आशा-अपेक्षा दसों-दिशाएँ कर रही है। युगदेवता ने उन्हीं को पुकारा है। महाकाल उन्हीं को खोजने के लिए टकटकी लगाये ढूँढ़-खोज में निरत हैं।

अभागे तो मनुष्य जीवन जैसी सुर-दुर्लभ सम्पदा को भी कीड़े-मकोड़ों की तरह गँवा देते हैं। अनजानों के लिए हीरे और काँच में कोई अन्तर नहीं। पर जिनके अन्तराल में दिव्य प्रकाश की एक किरण भी उठती हो उनके लिए यह अलभ्य अवसर है। इतना अलभ्य जिसे गँवा देने पर जन्म-जन्मान्तरों तक पछताने के अतिरिक्त और कुछ हाथ लगने वाला नहीं है। आत्मा को, परमात्मा को, विश्वात्मा को ऐसे प्रमादियों के प्रति रोष-आक्रोश ही सदा बना रहेगा। यह सुनिश्चित लॉटरी खुलने जैसा, दबा खजाना हाथ लगने जैसा, स्वयंवर वरण करने जैसा अवसर है। जिन आँखों के अन्धों को पेट प्रजनन के अतिरिक्त इस संसार में और कुछ दीख ही नहीं पड़ता उनके प्रमाद पर कोई लानत ही भेज सकता है।

होना यह चाहिए कि बुद्धिमता के दावेदार विवेकशीलों में से प्रत्येक युगसन्धि के यह दस वर्ष अथवा उससे कुछ कम समय भी युग की पुकार सुनने और उसे पूरा करने में अपनी मानसिकता और साहसिकता को खरी-खोटी सिद्ध करने के लिए कसौटी पर कसे जाने के लिए प्रस्तुत करे। न्यूनतम एक वर्ष लगाने जैसे कुछ छोटे कदम उठा लेने के लिए उत्साह को समेटने सँजोने जैसा साहस तो किसी प्रकार बटोर ही लें। जितना अधिक बन पड़े उतना ही उत्तम।

इन दिनों करने योग्य काम, प्रमुखता देने योग्य एक ही हैं ‘जनमानस का परिष्कार’, ‘विचार परिशोधन ‘मान्यताओं भावनाओं आकांक्षाओं को निकृष्ट प्रयोजन में निरत रहने रहने से उबार कर इस मान्यता से सहमत कर लिया जाय कि यह समय उठने और उठाने और जगने जगाने में, नवसृजन के लिए कटिबद्ध होने और दूसरों को इसी के लिए नियोजित करने के लिए प्राणमय से लगा दिया जाय। व्यक्तित्ववानों ने अपने को बदलना आरंभ किया तो यह निश्चित है कि वह समूचा वातावरण बदल जायेगा जिसमें रहते हुए हर कोई खिन्न विपन्न हो रहा है। जिस घुटन में दम निकल रहा है उसे बदलने के लिए कुछ कहने लायक साहस इन्हीं दिनों जुटाया जा सकता हैं।

अपने कुछ न करने पर भी उज्ज्वल भविष्य की संभावना स्रष्टा के संकल्प निर्धारण के संकेत पर भवितव्यता बनकर साकार होकर रहेगी। पर जो सेवा साहस अपनाकर धन्य हो सकते थे वे ही अपनाई गई कृपणता, निष्ठुरता और कायरता के कारण अपने ऊपर दसों दिशाओं से धिक्कार बरसते रहने की व्यथा सहते रहेंगे।

जो करना है वह सरल भी है सुखद भी और हाथों हाथ श्रेय गौरव उपलब्ध करने वाला भी। उसकी आरंभिक चर्चा पिछले पृष्ठों पर हो चुकी हैं। स्वाध्याय, सत्संग संगठन और उल्लास उभार के कई कार्यक्रमों की चर्चा हो चुकी है। उनमें से कोई एकाकी कुछ न कुछ कार्य भी अपना सकता है। पर यदि संगठन की क्षमता हो, मुखरता और सक्रियता अपनाते बन पड़े तो बड़े क्षेत्र को अपने सेवा प्रयोजन के लिए चुना जा सकता है। दस बीस गाँव का एक मण्डल निर्धारित करके उनमें बसने वालों के साथ सघन संपर्क जोड़ा जा सकता है और उन खेतों को जोतने बोने बाद पानी देने रखवाली करने में एक कर्मठ किसान की तरह निरत रहा जा सकता है। साथ ही हीरे मोतियों जैसी फसल से कोठे भरने की प्रतीक्षा भी की जा सकती है

इसका समर्थ शुभारंभ अपनी निजी की प्रतिभा निखारने से होना चाहिए। जिन्हें अपने से बड़ा या योग्य माना जाता है उन्हीं की बातों पर लोग ध्यान देते हैं। उन्हीं का आदेश-परामर्श मानते हैं। इसलिए जिन्हें किसी प्रकार का नेतृत्व निबाहना हो, उन्हें सर्वसाधारण की अपेक्षा अधिक वरिष्ठ और अति विशिष्ट होना चाहिए। आत्म परिष्कार की कसौटी पर कम कर इतना खरा बना लेना चाहिए कि कम से कम किसी को उँगली उठाने का अवसर न मिले। वाणी की मधुरता, व्यवहार में सभ्यजनों जैसी शिष्टता, वस्त्र-उपकरणों से लेकर साज-सज्जा तक में समुचित स्वच्छता रह सके, ऐसा अभ्यास करना चाहिए। समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी के चार प्रमुख धर्माचरणों से अपने व्यक्तित्व को सँजोया जा सके तो समझना चाहिए कि विशिष्टता और वरिष्ठता से अपने को सम्पन्न बना लिया गया और ऐसी स्थिति प्राप्त कर ली गई जिससे सर्वत्र प्रामाणिकता और प्रतिभा का परिचय मिले और अपनी विश्वसनीयता बढ़े। क्रिया−कलाप में वाणी की मुखरता और शरीरगत ऐसी सक्रियता हो जो चुस्त दुरुस्त होने के लक्षण प्रकट करती रहे। स्वाध्याय एवं सत्संग प्राप्त करते रहने का अवसर अधिकाधिक लोगों को मिलता रह सके ऐसे छोटे बड़े कार्यों में निरत रहने के लिए परिस्थितियों के अनुरूप प्रयत्न करते ही रहना चाहिए।

उत्साह उभारने, और लोक चेतना जगाने की एक नितान्त सरल और अत्यधिक प्रभावशाली प्रक्रिया है-सहस्रवेदी दीपयज्ञों की योजना। यदि चुनाव में खड़े होने वालों की तरह दौड़-धूप की जा सके तो यह आयोजन हर कहीं सरलता और सफलतापूर्वक सम्पन्न हो सकते हैं। एक बार का उबाल, साल छः महीने तो अपनी गर्मी बनाये ही रहता है। इसलिए जिलाधीशों के समतुल्य धर्मतंत्र की जिम्मेदारी उठाने वालों को अपनी सुविधानुसार निकटवर्ती मंडल निर्धारित करना चाहिए और एक वाहन की ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे दौड़ धूप का अधिक कार्य सम्पन्न हो सके। सघन जनसंपर्क सध सके और जनजागरण के-नवसृजन के अनेकानेक काम अपने ढर्रे पर अपने बलबूते ढर्रे पर लुढ़कते रहने वाली गति पकड़ सकें।

अपने मंडल के हर गाँव में एक बड़ा दीपयज्ञ आयोजन हर साल होना ही चाहिए ताकि उसके द्वारा उभरे हुए उत्साह से सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन और दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन के कितने ही छोटे बड़े काम उपस्थितजनों को प्रभावित करके उनके द्वारा संकल्पपूर्वक किये जाने की प्रक्रिया चल पड़े। व्रतशीलता निभ सके।

अपने समुदाय में ऐसे अनेकों कार्य करने को पड़ें, जिनको गतिशील बनाने में तनिक भी विलम्ब नहीं होना चाहिए। शिक्षा संवर्द्धन इनमें से प्रमुख है। नारी शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा को सृजनशिल्पी विशेष रूप से हाथ में लें, क्योंकि इस ओर उपेक्षा ही बरती जा रही है। गरीबी दूर भगाओ की योजना कुटीर उद्योगों को अपनाये बिना हल हो नहीं सकती। शारीरिक समर्थता और मानसिक साहसिकता के अभिवर्धन के लिए व्यायामशालाओं के आन्दोलन को गतिशील बनाया जाना चाहिए। बाल-विवाह और बहुप्रजनन की बाढ़ को तो दृढ़तापूर्वक रोका ही जाना चाहिए। ‘खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं’ इस तथ्य को हर किसी को हृदयंगम कराया जाना चाहिए और बिना खर्च तथा बिना धूमधाम की शादियाँ कर यह कुप्रचलन समाप्त होना ही चाहिए। नशेबाजी धीमी आत्म हत्या हैं, यदि यह तथ्य समझा और समझाया ला सके तो बहुमुखी बरबादी पर कारगर अंकुश लग सकता है। वृक्षारोपण की प्रवृत्ति बढ़नी चाहिए। यह गतिविधि हर घर में शाकवाटिका, पुष्पवाटिका के आरोपण के रूप में तो चल ही पड़नी चाहिए। जीवन के हर क्षेत्र में प्रगतिशीलता का समावेश करने के लिए साप्ताहिक सत्संगों को योजनाबद्ध रूप से चलना चाहिए। यदि दैनिक रूप में धार्मिक, सामाजिक आयोजन नहीं चल सकते तो उन्हें कम से कम साप्ताहिक रूप में तो चलना ही चाहिए।

युग अवतरण का योजना केन्द्र यदि नई इमारत के रूप में नहीं बन सकता तो कम से कम इतना तो हो ही सकता है कि किसी बड़ी इमारत वाले से एक कमरा माँग लिया जाय जो संगठन कार्यों के लिए भी प्रयुक्त होता रहे और शेष समय घर-मालिक उसे अपने कार्यों में प्रयुक्त करता रहे।

कुछ उपकरण इस प्रयोजन के लिए अनिवार्य हैं (१) ज्ञानरथ का चल देवालय (२) स्लाइड प्रोजेक्टर (३) सत्संग की प्रचार पेटी जिसमें टेप एंप्लीफायर हों। (४) गाँव-गाँव परिभ्रमण करने के लिए साइकिल टोली, (५) संगीत उपकरण (६) आयोजन के लिए फर्श और आच्छादन (७) दीपयज्ञों में काम आने वाले उपकरण। यह सभी साधन मिलकर दस हजार के भीतर बन सकते हैं। इतने पैसे का प्रबंध सहज ही यज्ञ के समय मिलजुल कर चन्दे के रूप में एकत्रित किया जा सकता है। जिनमें पैसा लिया हैं, उन्हें हिसाब समझा कर यह संतोष कराया जा सकता है कि किसी ने इन कार्यों में किसी प्रकार की हेरा-फेरी नहीं की है। प्रामाणिकता बनाये रखने के लिए इतनी सफाई आवश्यक हैं।

वर्ष में एक बार कर्मठ व्यक्तियों को शान्तिकुञ्ज पाँच दिन का एकछत्र सम्पन्न करने के लिए भेजना चाहिए, ताकि वे उपयुक्त प्रेरणा और प्राण चेतना साथ लेकर वापस लौटें। यह हर साल बैटरी चार्ज करा लेने, बंदूक या मोटर का वार्षिक लाइसेंस लेने के समान आवश्यक समझा जाना चाहिए।

मिशन के साथ किसी भी रूप में जुड़े हर व्यक्ति को नित्य कुछ घण्टे का समयदान नवसृजन के निमित्त लगाने के लिए सहमत करना चाहिए और साथ ही कुछ पैसों का अंशदान भी निकालते रहने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। ताकि उस योगदान के सहारे आत्मनिर्माण, परिवार निर्माण और समाज निर्माण के तीनों ही क्रिया–कलापों में आवश्यक पोषण देते रहने का अवसर मिल सके।

अखण्ड-ज्योति पत्रिका अपने परिवार के हर शिक्षित सदस्य को पढ़नी और अशिक्षित को सुनानी चाहिए। यह अनुष्ठान प्रस्तुत महाअभियान के सूत्र संचालक को नित्य अपने घर बुलाने और उसका एक प्रवचन नित्य सुनने के समान सशक्त प्रेरणाप्रद है। इसके लिए जो खर्च करना पड़ता है वह इतना कम है कि महीन में एक बार हलका जलपान करा देने से अधिक नहीं बैठता।

उपरोक्त सभी काम ऐसे हैं जिन्हें अपनाने पर कोई भी व्यक्ति प्रखर प्रतिभा के रूप में उभर सकता है और अपने को, अपने परिवार, अपने समाज, वातावरण को हर दृष्टि से कृतकृत्य कर सकता हैं।


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