विशेष लेख माला-८ - युग चेतना का प्रसारण

April 1990

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विचार परिष्कार के लिए युगधर्म का प्रतिपादन और प्रस्तुत भ्रान्तियों विकृतियों के निराकरण में साहित्य का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार इस प्रकार का स्वाध्याय उपक्रम अधिकाधिक लोगों तक पहुँच सके, इसके लिए शान्तिकुञ्ज द्वारा उस साहित्य का अभिनव सृजन किया गया है जो युगधर्म की रूप-रेखा सामयिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए दूरदर्शी विवेकशीलता को जागता है।

इस प्रयास को एकाकी स्तर पर करना हो तो उसके लिए झोला पुस्तकालय योजना सर्वसुलभ है। इसके लिए अपने संपर्क क्षेत्र में शिक्षितों के साथ संपर्क बढ़ाया जाय। उनकी अन्तरात्मा को स्पर्श करने वाले युगसाहित्य को एक छोटे झोले में लेकर उन तक पहुँचा जाय। पढ़ने के लिए उन्हें घर बैठे वह साहित्य पहुँचाया, व नियत अवधि में उसे पढ़कर वापस करने के लिए सहमत किया जाय।

अपने देश की गरीबी, अशिक्षा और सत्साहित्य के प्रति अरुचि को देखते हुए यह आशा नहीं की जा सकती कि युग चेतना को प्रोत्साहन देने वाला साहित्य अभीष्ट मात्रा में लिखा, छापा प्रकाशित किया जायगा। विक्रेता भी ऐसे झंझट में क्यों हाथ डालें जिसमें उन्हें तत्काल संतोषजनक लाभ न होता हो। यह एक अवरोध है जिसके कारण नवोदित राष्ट्र को उपयुक्त दिशा निर्देशन प्राप्त करने के लिए अभीष्ट साहित्य उपलब्ध नहीं हो पाता। इसलिए शान्तिकुञ्ज ने उपरोक्त सभी पक्षों को अपने हाथ में लिया है और हर शिक्षित को पढ़ाने और हर अशिक्षित को सुनाने के लिए झोला पुस्तकालय योजना बनाई और स्वयं सेवी समय-दानियों द्वारा समग्र निष्ठापूर्वक चलाई है। इस प्रयास के अंतर्गत लाखों को घर बैठे बिना कुछ खर्च किये नवयुग का संदेश मिल रहा है।

इस प्रयास का कुछ बड़ा रूप है ज्ञानरथ संचालन। युग साहित्य को युग देवता का संदेश-प्रतीत मानते हुए उसे साइकिल के दो पहिये वाली गाड़ी पर सुसज्जित रूप से इस स्तर का बनाया गया है कि बाहर से देखने वालों को एक छोटा देवालय ही प्रतीत हो। इसे खींचते धकेलते हुए परिजन अपने क्षेत्र में शिक्षित नर-नारियों तक झोला पुस्तकालय की भाँति सत्साहित्य देने पढ़ाने और वापस लेने का उपक्रम चलाते हैं। और घर-घर जन-जन तक अपनी पैठ बनाते हैं। आकर्षण भी अधिक रहता है और संपर्क भी अधिक बड़े क्षेत्र में अधिक लोगों तक बनता हैं।

प्रज्ञा केन्द्रों को अचल और ज्ञानरथों को चल प्रज्ञा मन्दिर मानकर इस योजना को चलाया तो बहुत दिनों से सफलतापूर्वक जा रहा था पर अब उसमें कुछ और नये एवं सशक्त उपकरण जोड़ दिये गये हैं जिनके कारण वह प्रज्ञा वाहन जिधर से भी गुजरता है उधर ही अच्छी खासी भीड़ जमा हो जाती है और ऐसी प्रेरणाएँ मनोयोगपूर्वक हृदयंगम की जाती है जिसकी कि इन दिनों नितान्त आवश्यकता है।

नवनिर्मित ज्ञानरथों में मोटर वाली छोटी बैटरी से चलने वाला टेपरिकार्डर और लाउडस्पीकर फिट कर दिया गया है। इस माध्यम से जनसमुदाय की प्राण प्रेरणा झकझोरने वाला युग संगीत सुनने को मिलता है और छोटे-छोटे किन्तु सारगर्भित प्रवचन परामर्श सुनने को मिलते रहते हैं। निर्जीव होते हुए भी ज्ञानरथ सजीव वक्ता और प्राणवान संगीत से अपने रास्ते में मिलने वाले से ऐसा कुछ कहता ओर गाता रहता है जिसकी कि परिवर्तन की पृष्ठभूमि बनाने के लिए महती आवश्यकता हैं।

एक पूरे दिन में बैटरी की बिजली प्रायः खर्च हो जाती है उसे नये सिरे से सशक्त बनाने के लिए इतना भर करना पड़ता है कि घर की बिजली के प्लग के साथ “चार्जर” उपकरण द्वारा उसे जोड़ दिया जाय। सवेरा होने से पहले बैटरी, फिर दूसरे दिन का दायित्व पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती है। इस प्रयास में बिजली का खर्च कुछ पैसों का ही बैठता हैं, जिसकी व्यवस्था बनाना इन ज्ञानरथ चलाने वालों में से किसी के लिए कुछ भी कठिन नहीं पड़ता।

पिछले दिनों वाले ज्ञानरथ मात्र साहित्य का लाभ पहुँचाने के लिए झोला पुस्तकालय स्तर की सेवा साधना में निरत रहते थे। पर अब वे अपने छोटे कलेवर में दिन भर प्रवचन और गायन करते रहने पर भी न थकने वाला माध्यम सँजोये रहने लगे हैं। इसलिए उसकी उपयोगिता अनेक गुनी अधिक बढ़ गई हैं। पुराने ज्ञानरथों को चलाने वाले राह में मिलने वालों को अपने प्रयास का वाणी द्वारा परिचय भी देते थे। पर अब उन्हें बिना पढ़ें, गूँगे-बहरे शिक्षित-अशिक्षित लिये-लिये फिरते हैं और दिन भर एक अतिप्रभावोत्पादक चलते-फिरते प्रचार समारोह को गतिशील रखे रहते हैं। पुराने की तुलना में नये ज्ञानरथों की लागत तो कुछ बढ़ गई है, पर वह इतनी नहीं कि औसत नागरिक उसे अपनी सीमित सामर्थ्य में ही जुटा न सके। इस प्रयास में स्वाध्याय और सत्संग के दोनों ही प्रयोजन एक साथ जुड़ जाते हैं।

इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र का एक और माध्यम है। दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखते रहना। गेरू, काजल, नील, पीली रामरज, मुल्तानी मिट्टी, खड़िया आदि को एक डिब्बे में डालकर बड़ी दवात के रूप में विनिर्मित किया जा सकता है और उसमें से बालों के ब्रुश या बाँस जैसे किसी लकड़ी के उपकरण को कलम बनाकर जहाँ भी खाली दीवार दीख पड़े वहाँ हाथ साथ कर सुन्दर अक्षरों में आदर्शवाक्य लिखे जा सकते हैं। जिन्हें उधर से रास्ता निकलने वाले व्यक्ति नजर डालते ही सामयिक प्रेरणाएँ प्राप्त करते रह सकते हैं। (१) हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा, हम बदलेंगे-युग बदलेगा। (२) नर और नारी एक समान, जाति वंश, सब एक समान। (३) इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य का अवतरण। जैसे दर्जनों आदर्शवाक्य गढ़े गये हैं। उनमें से जहाँ जिनका चयन उपयुक्त दीखता हो, उसे वहाँ लिखा जा सकता हैं इस प्रकार हर दीवार, खण्डहर, टीले, पत्थर को बोलती दीवार बनाया जा सकता है।

इस वर्ग में एक अन्य योजना स्टीकर चिपकाने की आती है। यह भी अनेकों प्रकार के तथा नाम मात्र की लागत से भरे पूरे है। इन्हें किवाड़ों पर, अलमारियों पर, अटैचियों पर, फर्नीचरों पर कहीं भी चिपकाया जा सकता हैं। प्लास्टिक पर बने और पक्की स्याही से अंकित एवं मजबूत गोंद से सटे होने के कारण छोटे बड़े साइज के यह स्टीकर ऐसे है जिन्हें वर्षों के लिए स्थायी रहने की स्थिति में चिपकाया जा सकता है। इनकी कीमत कुछ पैसे मात्र होने से हर किसी को खरीदने और घर सजाने के लिए सहमत किया जा सकता है। मोटरों, ताँगों, रिक्शों आदि पर उन्हें चिपका दिया जाय तो उनमें बैठने वाले भी ऐसा कुछ हृदयंगम करते चलते हैं, जिसे इन दिनों समझना और समझाना ही चाहिए।

इस प्रकार की प्रचार सामग्री के सस्ते-महँगे अनेक प्रकार के उपकरण विनिर्मित किये गये हैं। रूमालों, साड़ियों दुपट्टों पर भी ऐसे ही कुछ प्रेरणाप्रद अंकन सटा देने की भी योजनाएँ बनती और चलती रहती है।

साक्षरता की, प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था बनाना अपनी जगह आवश्यक है। अशिक्षितों की अन्धों में गणना होती है इसलिए प्रत्येक शिक्षित परिजन को यह कहा गया है कि वह अपने संपर्क क्षेत्र में से अशिक्षित नर-नारियों को, बालकों-वृद्धों को, ठाली और व्यस्तों को तलाश करके उनके साथ संपर्क साधे। उनकी सुविधा का समय खोजें और अपने घर बुलाकर अथवा उनके घर जाकर हर किसी को साक्षर बनाने का प्रयत्न करें। अपने देश का कोई भी नागरिक अशिक्षित न रहें, इसके लिए विद्या विस्तार में हर शिक्षित को “विद्या ऋण” चुकाने के लिए बिना पढ़े को पढ़ाने को एक आवश्यक कर्तव्य की तरह अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाय।

इसी प्रयास का दूसरा चरण यह है कि साक्षरता के उपरान्त दैवी प्रेरणाएँ पढ़ने का अवसर मिले, जिससे व्यक्तित्व विकास में, लोकमानस के परिष्कार की अभीष्ट प्रगति प्रेरणा का भी समावेश हो सके। युग साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने के लिए झोला पुस्तकालय और ज्ञानरथ इसी निमित्त चलाये जा रहे हैं। दीवारों पर आदर्शवाक्य लिखने और प्रेरक स्टीकर स्थान-स्थान पर चिपकाने की योजना भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हैं।


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