सूफी सन्त इब्राहिम खवास घने जंगल से होकर अपने शिष्य के साथ चले जा रहे थे। घने जंगल में खूँखार जानवरों का साम्राज्य था। सन्त की संध्या का समय हुआ तो नदी में हाथ पैर धोकर वे एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गये। पास में शिष्य भी बैठ गया। तभी शिष्य ने देखा कि सामने से एक शेर उन्हीं ओर आ रहा है। डर के मारे शिष्य की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और घबरा कर वह एक पेड़ पर चढ़ गया। शेर आया। सन्त के चारों ओर चक्कर लगाया। उनका शरीर सूँघा और कुछ ही क्षणों में ऐसे चला गया जैसे सन्त के दर्शन करने आया हो। शिष्या पेड़ पर बैठा यह सब देख रहा था।
कुछ देर के बाद संत का ध्यान पूरा हुआ। वे चल पड़े। शिष्य भी पेड़ से उतरकर उनके पीछे हो लिया। चलते-चलते सहसा मच्छर ने सन्त को काट लिया तो उनके मुँह से आह निकल पड़ी। शिष्य ने विस्मय से पूछा। गुरुदेव जब शेर आया और आपके सारे शरीर को सूँघ कर चला गया। तब तो आप बिल्कुल नहीं घबराये और एक छोटे से मच्छर के काटने पर आप आह भर रहे हैं।
सन्त एक क्षण मौन रहे। फिर बोले “तुझे शायद पता नहीं उस समय मेरे साथ परमात्मा था। भला परमात्मा के सान्निध्य में डर किस बात का था। किन्तु इस समय तू हैं। बस इस लिए ही मेरी आह निकल गई।”