निजी जीवन में सादगी सात्विकता अपनाने वालों की सदा असाधारण प्रतिष्ठा रही है।
पेशवाओं के राजगुरु तथा वरिष्ठ न्यायाधीश राम शास्त्री उच्चतम सम्मान प्राप्त थे पर उनका रहन सहन ब्राह्मणोचित अपरिग्रह के साथ जुड़ा हुआ था। वे चाणक्य की तरह छोटी कुटिया में रहते थे और निर्धनों जैसी सादगी से निजी खर्च चलाते थे।
एक दिन उसकी पत्नी का राजमहल से बुलावा आया वे गई। रानियों ने उन्हें भरपूर सम्मान दिया और विदा करते समय बहुमूल्य वस्त्रों तथा आभूषणों से लाद कर पालकी में विदा किया।
घर आई तो उन्हें देखते ही कहा- यह तो कोई रानी है मेरी ब्राह्मणी नहीं। उन्हें वापस भेज दिया और घर का दरवाजा बन्द कर लिया। वे पति का इशारा समझ गई।
राजमहल पहुँच कर शास्त्री जी की पत्नी ने सारे वस्त्र-आभूषण उतार दिये। अपने पुराने परिधान धारण कर लिये। घर लौटी तो शास्त्री जी ने उनका स्वागत किया और कह-ब्राह्मणी को औसत नागरिक से बढ़ कर रहन सहन नहीं अपनाना चाहिए।