मानवी पुरुषार्थ को चुनौती देता प्रकृति का लीला जगत

February 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

यह दृश्य संसार अनेकानेक विचित्रताओं, विलक्षणताओं से भरा पड़ा है। इन सभी के मूल में स्रष्टा की क्या इच्छा रही होगी, समझ में नहीं आता? हो सकता है, उसने मनुष्य की जिज्ञासा वृति को सतत जीवन्त बनाये रखने के लिए यह लीला रची हो। कुछ भी हो, प्रकृति के रहस्यों की खोज करने वालों की पराक्रम भरी गाथाओं के निष्कर्ष सदैव यही सिद्ध करते रहेंगे कि इस विराट् के समक्ष मनुष्य तुच्छ है, नगण्य है कि फिर भी वह कभी हर मानने वाला नहीं है। वह उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक, अलास्का से जापान के तुच्छ द्वीपों तक ज्ञात-आत क्षेत्रों में विचरण करता रहा है एवं कई खोजे ऐसी की है जिनने मनीषा को चमत्कृत कर दिया है। नेशनल ज्याँग्राफी सोसायटी के एण्डी डेविस के नेतृत्व में तीन यात्रियों का जो दल 25 जनवरी 1981 को निकला, उसे अनुमान भी नहीं था कि वे विश्व सबसे बड़ी गुफा का पता लगाने जा रहे है, जिसे अगले दिनों “ब्लैक होल”(भूगर्भीय) नाम से पुकारा जाएगा। एण्डीडेविस के साथ थे डेव चेकले एवं टोनी, व्याइट। ये तीनों दक्षिण-पूर्व एशिया के बोनिर्यो द्वीप के उत्तरी भाग में सारावाक के मुलु जंगलों में घूम रहे थे। चुन की प्रचुरता वाले एक पहाड़ की गहरी खाई में स्थित एक गुफा जो बहुत संकरी थी। में तीनों ने प्रवेश किया रेंगते रेंगते वे अंधकार में बढ़ते चले गए। करीब 2000 फीट चलने के बाद वे एक विशाल कक्ष में पहुँच उनका प्रारम्भिक अन्दाज था कि यह तीन सौ फीट चौड़ी होगी। चौड़ाई का पता चलाने के लिए चलते चलते उन्हें अपने तेज लैम्पों के बावजूद कोई किनारा नजर नहीं आ रहा था। 80 फीट से भी अधिक ऊंचे चूने के बोर्ल्डस की बाधाओं को पार करते हुए वे जब एक खुले क्षेत्र में पहुँचे तो जो कुछ वे हेड लैम्पस् से देख रहे थे, उस पर दृष्टि पड़ते ही हतप्रभ से रह गए। एक अत्यन्त विशाल खुला पठारी क्षेत्र उनके सामने था, जिसका कोई अन्त नजर नहीं आ रहा था। लगभग दो सौ तीस फुट लम्बी जिस गुफा में ये तीनों व्यक्ति पहुँचे उसे विश्व की अब तक की ज्ञात भूगर्भ की बड़ी गुफा, जो न्यूमैक्सिको के कार्ल्स बड कैवर्न में स्थित है, से तीन गुनी अधिक बड़ी मापा गया, जिसमें दस जुम्बों जेट सिरे से सिरा मिलाकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक जा सकते थे। इस गुफा को सारावाक चेम्बर अथवा ब्लैकहोल नाम दिया गया। एक अनुमान के अनुसार यह गुफा इतनी बड़ी थी, जिसमें 38 फुटबाल फील्डस् समा सकती थी यह विशालतम भूगर्भीय गुफा गत 9 वर्षों से खोजकर्ताओं के लिए अनुसंधान का विषय बनी हुई है कि कैसे प्रकृति ने इतना विशाल क्षेत्र अपने गर्भ में थोड़ी सी गहराई में छिपा रखा है? कैसे ये बनी? प्रश्न अनुत्तरित है।

समुद्र अपनी गहराइयों में इसी प्रकार कई रहस्य छिपाये बैठा है। यो तो समुद्रतल की सर्वांगपूर्ण शोध बीसवीं सदी के प्रारम्भ में ही शुरू हो चुकी थी, विस्तार में इसकी जानकारी पिछले बीस वर्षों में अधिक मिली है। यहाँ तक कि समुद्र की सतह से एक मील नीचे जहाँ सामान्यतया तापमान 3 डिग्री फारेनहाइट होता है। 660 डिग्री जैसे ऊंचे तापमान पर उबलती जल धाराएँ भी पाई गई है, जो कहाँ से आती व निकलती ह? पता नहीं चलता। प्रायः यह उन स्थानों पर पाई गई है, जहाँ भूतल की गहराइयों में टेक्येनिक प्लेट्स् एक दूसरे से दूर खिसकती है, विशेष रूप से प्रशान्त व एटलाँटिक महासागर के नीचे। पृथ्वी में चार मील गहराई तक जहाँ उसमें क्रेक्स हैं, समुद्र का ठण्डा पानी स्पर्श करता है एवं गर्म मैग्मा,जो कि उबलती स्थिति में चार हजार डिग्री से0 ग्रेड तापमान पर होता हे, तक पहुँच जाता है। इससे यह ठण्डा जल सुपरहीटेड हो जाता है व गर्म पानी के फव्वारे वहाँ से छूटने लगते हे। यही समुद्री धरातल पर आकर हाँटस्प्रिंग्स बनाते हैं। वैज्ञानिकों की जानकारी बस यहीं तक है। यह कुछ स्थान विशेष पर ही क्यों होता हे? इस संबंध में जानकारी अभी अविज्ञात है।

जहाँ जहाँ से ये गर्म पानी की तेज धारा ऊपर छूटती हैं, वहाँ समुद्र विज्ञानियों ने 200 फीट ऊँची व 600 फीट चौड़ी खनिजों की दीवारी से बनी चिमनियाँ खोज निकाली हैं। इनमें से निकलने वाला गर्म जल इतना गहरे रंग का व कुहासे से भरा होता है कि इनकी संज्ञा “ब्लैक स्मोकर्स “ नाम से दी गयी है। सूडान एवं सऊदी अरेबिया के मध्य “रेड” सी में लगभग 23 वर्ग मील का एक क्षेत्र है जहाँ ऐसे कई “ब्लेकस्मोकर्स “ हैं। ऐसी ही खनिज प्रधान चिमनियाँ साइप्रस के समीप भूमध्य सागर में भी पाई गई हैं। जो कि रेड सी से अधिक दूर नहीं हैं। चूँकि समुद्री गर्भ से खनिज सम्पदा ढूँढ़ निकालने के लिए विज्ञान ने अपने साधनों को काफी विकसित कर लिया है, अब क्रमशः मनुष्य इन विशाल चिमनियों के समीप तक पहुँचने लगा है। इससे और भी महत्वपूर्ण जानकारियां हाथ लगने की संभावना है। कुछ भी हो भूगर्भ की तरह समुद्री गर्भ भी गर्म ठण्डी जल धाराओं को लिए तथा स्थान स्थान पर फव्वारों एवं खनिज भण्डारों को समाहित किये रहस्यमयी सम्पदा को छिपाए बैठा है। वह भी मानवी पुरुषार्थ को सतत चुनौती देता रहता है।

भूगर्भ-समुद्र से ऊपर चलते हुए भूतल की चर्चा करें तो पाते हैं। वहाँ भी ऐसी ही विलक्षणताएँ हैं। ऐसी अनेकों में से एक है स्काँटिश बीच की गाने वाली, म्युजिकल धुन स्पर्श के साथ देने वाली बलुई रेत। उत्तरी इंग्लैंड के स्काटलैण्ड क्षेत्र में पश्चिमी तट पर एक निर्जन द्वीप है” ऑयल ऑफ आईग”। स्थूल दृष्टि से देखने पर यह औरों की तरह सामान्य बीच दृष्टिगोचर होता है किन्तु यदि इस बीच की सफेद बालू पर चला जाय या उन्हें स्पर्श मात्र किया जाय तो वे पियानो की धुन की तरह विविध प्रकार का संगीत सुनाने लगती हैं, ज्यों ज्यों हौले हौले हाथ की उंगलियां बालू को छूती हैं, दबाव क्रमानुसार विभिन्न धुनें निकलने लगती हैं। ये ऊँची “ सोप्रेनो “ स्तर की ध्वनि ( मानव द्वारा गाई जाने वाली सबसे ऊँची पिचकी ध्वनि ) से लेकर “ लोबाँस “ सबसे धीमी स्तर की संगीत भरी धुनें होती हैं। वैज्ञानिक जिनने इस प्रक्रिया का अन्वेषण किया है,इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि यह संगीत रेत की विशिष्ट संरचना के कारण जन्मता है। समुद्र की लहरों के संपर्क में आने वाले महीन रेत के कण घिसते घिसते गोल हो जाते हैं। इनके चारों ओर हवा का एक घेरा होता है एवं रेतीले दानों तथा हवा में परस्पर घर्षण से यह संगीत पैदा होता है, ऐसी वैज्ञानिकों की मान्यता है। यदि

वातावरण में आर्द्रता अधिक हो तो संगीत बदल जाता है। किन्तु यहीं की रेत ही क्यों संगीतमय है? एवं कहीं ओर ले जाने पर क्यों संगीत उनसे नहीं निकलता? यह प्रश्न सभी के समक्ष है। इसका कोई समाधान किसी के पास नहीं है व यह जादुई रेत अपना संगीत सुनाने हेतु इसी बीच पर स्पर्श की प्रतीक्षा सतत करती रहती है। क्या कोई तर्क सम्मत उत्तर दे पाना संभव है? यह चुनौती मनीषा को देती रहती है। मानवी बुद्धि से परे ऐसी अलौकिकताएँ एक नहीं अनेकानेक हैं एवं एक ही संदेश देती हैं कि अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो खोजा नहीं जा सका। मानवी बुद्धि अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनती रहे, वह बात अलग है पर प्रकृति के रहस्य प्रज्ञा को सतत चुनौती देते रहे हैं, उसकी जिज्ञासवति को झकझोरते रहे हैं यही तो हमारे मानसिक विकास का मूलभूत आधार भी है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118