लय, ताल से बँधी जीवन की यह यात्रा

February 1989

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जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवनधारियों विशेषकर मानव जीवन में एक लयबद्ध चक्रीय परिवर्तन सतत होता रहता है। विज्ञान की भाषा में इसे “बोयारिट्म” के नाम से जाना जाता है। यह वह जैविक गतिविधि या हलचल है, जो एक निश्चित अन्तराल के पश्चात् प्रकट होती रहती है, आरे शारीरिक, मानसिक एवं व्यावहारिक जीवन को प्रभावित करती है। कास्मिक किरणों, ग्रह गोलकों, सूर्य धब्बों एवं सौर गति तथा चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार भी “बायोरिट्म” की आवर्ती दशा में सतत परिवर्तन होता रहता है। व्यक्ति की उम्र, लिंग एवं जीवन-मरण के साथ भी इसका गहरा सम्बंध है।

“एन साइक्लोपिडियाँ ऑफ एसोटेरिक मैन” नामक पुस्तक में मनीषी बेंजामिन वाकर ने कहा कि यह सर्वविदित तथ्य है कि मान जीवन में एक निश्चित लयबद्ध उतार चढ़ाव आता रहता है। जो शारीरिक-मानसिक क्रिया कलापों को प्रभावित करता है। इस प्रकार की लय कुछ क्षणों माइक्रो सेकेंड से लेकर वर्षों तक चलती रह सकती है। ओर ध्यान न देने पर जीवन को संकट में भी डाल सकती है। दिन प्रतिदिन के जीवन में होने वालने परिवर्तनों को गहराई से निरीक्षण न करने के कारण ही प्रायः लोग खीजते ओर परेशान रहते हे। यदि “बायोरिट्स” को समझा जा सके ता न केवल जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों को .... नियमित किया जा सकता है। वरन् उनसे होने वाली हानियों से भी बचा जा सकता ह। इस तथ्य को सितम्बर 1989 के “अमेरिकन जनरल ऑफ साइकियेट्री” नामक पत्रिका में विन्स्टेड, स्बार्ज, बट्रेन्ड जैसे ख्यातिलब्ध फैक्ट्स “अरि सुपर स्टिशन” नामक खोजपूर्ण लेख में उद्घाटित किया है।

“बायोरिट्म” वस्तुतः एक व्यक्ति परक विज्ञान है जो जीवन के चक्रीय लक्षणों को प्रकट करता है। अमेरिका के वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक बर्नार्ड गटेल्सन ने अपनी पुस्तक “बायोरिट्म” में कहा है कि हममें से सभी लोग तीन आन्तरिक चक्रों (इन्टरनल साइकल्स) द्वारा जीवन पर्यन्त प्रभावित होते रहते है। ये चक्र है - फिजिकल साइकल (शरीर चक्र) इमोशनल साइकल (भावनात्मक चक्र) एवं इन्टलेक्चुअल साइकल अर्थात् बौद्धिक चक्र। मनुष्य का स्वभाव इन्हीं तीन चक्रों का मिला जुला स्वरूप होता है। इस सिद्धांत के अनुसार फिजिकल चक्र शरीर के बहुत बड़े क्षेत्र को प्रभावित करता है, जिसमें काया की रोग प्रतिरोधी क्षमता, शक्ति, समन्वय, गति, कार्यिकी आदि प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं। इस चक्र को पूर्ण होने में 23 दिन लगते है। यह तीनों चक्र बारी-बारी से एकान्तर क्रम से अथवा एक साथ भी चलते रह सकते है। मनुष्य जन्म के साथ ही यह आरम्भ हो जाते है। आरम्भ में यह जीरो बसेलाईन पर अर्थात् नगण्य प्रभाव वाले होते है। परन्तु मध्यकाल में अर्थात् साढ़े ग्यारह दिन 24 दिन ओर साढ़े सोलह दिन में क्रमशः तीनों चक्र अपने निम्न स्तर पर आ जाते हे। ऊर्जा की अधिकता प्रत्येक चक्र के अन्तिम चरण में होती है।

विशेषज्ञों के अनुसार जीवन चक्र (बायोरिट्म) मानव व्यवहार की एक विशेष तरीके से प्रभावित करता है। वैज्ञानिक बर्नार्ड गिटेल्सन का कहना है कि किसी व्यक्ति को उस समय सबसे अधिक खतरा रहता है, जब वह एक फेज से दूसरे फेज में अर्थात् पॉजेटिव से निगेटिव में प्रवेश करता है। इन्हें किट्रिकलडे - संकटपूर्ण कि दिन कहा गया है। उनके अनुसार मनुष्य के जीवन में प्रायः इस तरह के 20 प्रतिशत दिन आते है, शेष 70 प्रतिशत मिश्रित प्रक्रिया वाले होते हैं। उस दिन मनुष्य शारीरिक रूप से दुर्घटनाओं, बीमारियों आदि का शिकार बन सकता है। भावनात्मक रूप से असंतुलित मनः स्थिति के कारण अकारण लड़ाई- झगड़ा मोल ले सकता है। अथवा तनाव, दबाव, खीज आदि से ग्रस्त हो सकता है। बौद्धिक रूप से स्मरण शक्ति में कमी, किसी बात को सुस्पष्ट करने में असमर्थता, निर्णय लेने में गलती करने जैसी कमजोरियों का उसे सामना करना पड़ सकता है। अपनी “बायोरिट्म” का क्रमबद्ध अध्ययन करके कोई भी व्यक्ति उपरोक्त संकटों को टाल सकता है। जीवन को व्यवस्थित बनाकर उन पर नियंत्रण साधा जा सकता है। “बायोदिम “ का रिकार्ड रखने पर यह सहज ही मालूम किया जा सकता है कि भौतिक, भावनात्मक एवं बौद्धिक चक्रों में से कोन चक्र अपनी चरम अवस्था में है ओर उनसे उबरने अथवा उनका लाभ उठाने के लिए कितनी शक्ति सँजोनी होगी ओर कि न उपयोग को अपनाना होगा। शिकागो के मूर्धन्य चिकित्सा विज्ञानी डा0 अनेटीलाटर एवं स्विट्जरलैंड के डा0 फ्रिटज वेहरिल का कहना है कि अपनी बायोरिदम् का अध्ययन नियमित चार्ट के आधार पर करके समय विशेष में आने वाली कठिनाइयों का समाधान हर व्यक्ति स्वयं खोज सकता है। औद्योगिक जगत में काम करने वालों के लिए इस प्रकार का अध्ययन महत्वपूर्ण भूमिका संपन्न कर सकता है।

इस संदर्भ में जापानी चिकित्सा विदों के साथ मिलकर वहाँ के मिलिट्री पुलिस अधिकारियों ने गहन अनुसंधान किया है ओर बताया है कि 42 प्रतिशत वाहन दुर्घटनाएँ चालक के (संकट कालीन) “किट्रिकलडे में होती है। इसी प्रकार का निष्कर्ष टोकियो मेट्रोपोलिटन पुलिस का है। उसने अपने अध्ययन में पता लगाया है कि 82 प्रतिशत दुर्घटनाएँ ऐन मौके पर रही निर्णय ने ले पाने के कारण घटित होती है। उनके अनुसार वस्तुतः यह समय वाहन चालकों के जीवन चक्र का क्राँतिक बिन्दु होता है। जिसमें मनः संतुलन डगमगा जाता है। आस्ट्रेलिया केक्वीन्सलैण्ड के विशेषज्ञों का भी यही मत है कि वाहन दुर्घटनाओं के शिकार अधिकाँश व्यक्ति उस समय अपने “बोयारिद्म” के ऋणात्मक -धनात्मक चक्र के भंवर में फँसे रहते है। किसी प्रकार यदि इस संकट कालीन क्षण से वे उबर सके तो कुछ ही समय पश्चात् बेहतर निर्णय लेने की स्थिति में पहुँच सकते है। वायुयान दुर्घटना में याँत्रिक कमियाँ जितनी जिम्मेदार होती है, उससे कही अधिक गड़बड़ी उसे उड़ाने वाले चालकों की असंतुलित मनः स्थिति होती है। यू0एस॰ आर्मी एविएशन स्कूल के विशेषज्ञों ने जब इस प्रकार की जाँच पड़ताल की तो पाया कि 42 प्रतिशत या आधी वायु दुर्घटना चालकों के संकट कालीन दिनों में ही घटित हुई थी। इस प्रकार की अनेकों घटनाएँ है जिनकी संगति मनुष्य के “बोयारिद्म” से बैठती है। इसका अर्थ यह नहीं लिया जाना चाहिए कि व्यक्ति अपनी गलती के लिए “बायोरिद्म” को जिम्मेदार ठहरा दे व स्वयं को निर्दोष कहे।

न्यूयार्क के प्रसिद्ध मनोविज्ञानी प्रोफेसर-डोनाल्ड ई॰ कार्लवर्ट ने गहन अध्ययन के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला कि कर्मचारियों के “बायोरिद्म” से संबंधित संकटकालीन दिन ओर दुर्घटनाओं में गहरा संबंध है। “क्रिटिकलफेज” ज्ञात होने पर उस संकट को टाला जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि 25 सितम्बर 1989 को डियागो गार्सिया में पी.एस.ए. 727 नामक एक वायुयान 240 व्यक्तियों सहित इसलिए दुर्घटना ग्रस्त हो गया था कि उसका पायलट डेवटि बोस- भौतिक एवं भावनात्मक चक्रों के क्रिटिकल फेज में था। कई बार चेतावनी देने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ा। अपने आपको सँभालने में वह असमर्थ बना रहा। “बायोरिद्म ए साइन्टिफिक एक्सप्लोरशन इन टू दी लाइफ साइकल्स ऑफ दी इन्डिविजुअल्स” नामक अपनी कृति में अमेरिका के प्रख्यात मनोविज्ञानी जे.एच. वेनली ने बता है कि “साइकोलॉजिकल बाडी चार्टिग” द्वारा किसी भी व्यक्ति के “बायोरिद्म” को मापा जा सकता है। मूड एवं भावनाओं में आये उतार-चढ़ाव का अध्ययन कर तदनुरूप उनका निराकरण किया ओर गतिविधियों का नियंत्रित का जा सकता है। उनके अनुसार जापान की ओमी रेलवे कम्पनी ने अपने 500 वाहन चालकों में से प्रत्येक के “बायोरिद्म” चार्ट का कम्प्यूटर में भर लिया है जिस दिन उनके बुरे दिन आने वाले होते है, उन्हें सूचित एवं सतर्क कर दिया जाता है। साथ ही अतिरिक्त सावधानी बरतने को कहा जाता है। इस युक्ति द्वारा कितने ही चालक अपने स्वभाव, मूड, व्यवहार, भावातिरेक में परिवर्तन करते ओर दुर्घटनाओं का शिकार होने से बच जाते है। सन् 1969 में जब इस प्रयोग को सर्व प्रथम क्रियान्वित किया गया तो पर्यवेक्षण करने पर सड़क दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी पायी गयी। इंग्लैंड के माटिघंम शायर में टाउन काउंसिल द्वारा वहाँ के प्रत्येक नागरिक को उसके “बायोरिद्म” चार्ट उपलब्ध कराये गये है। इससे सड़क दुर्घटनाओं को कम करने में भारी सफलता मिली है। रूस में इस समय पाँच हजार से अधिक वाहन चालक “बायोरिद्म” का प्रयोग कर रहे है। संभावित तिथियाँ ज्ञात होने पर उन दिनों विशेष सतर्कता ही नहीं बरतते बायोफीड बैंक पद्धति द्वारा अपनी प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते है।

बर्लिन के ख्यातिलब्ध - शल्य चिकित्सक डा0 बरनर आँबेल “बायोरिद्म” के विशेषज्ञ माने जाते है। उनका कहना है कि रोगी के “बायोरिद्म” के अनुसार उसका ऑपरेशन करने पर शत् प्रतिशत सफलता मिलती है। इससे न तो उस पर एनस्थेशिया का दुष्प्रभाव पड़ता है ओर न रक्त ही अधिक बहता है।”बायोरिद्म” की जानकारी रखने से मात्र रोगी व्यक्ति को ही लाभ पहुँचता वरन् स्वस्थ व्यक्ति भी यदि अपने जीवन चक्र का क्रमबद्ध चार्ट बनाकर रखे तो उससे उन्हें प्रगति पथ में अग्रसर होने में भारी सहायता मिल सकती है। डा0 बरनर के अनुसार हमारे शरीर का तापमान प्रातः काल सबसे कम होता है। यदि उस समय गहरा चिंतन किया जाय तो ज्ञान विज्ञान के सर्वथा नये ओर उच्चस्तरीय आयाम खुल सकते है। इसी तरह क्रमशः जैसे-जैसे शरीर का ताप दिनमान के साथ बढ़ता जाता है ओर 2 से 40 सेंटीग्रेड तक अधिक हो जाता है। तो उस वक्त शारीरिक ऊर्जा की क्रियाशीलता बढ़ी-चढ़ी होती है। उस समय शारीरिक श्रम का सर्वोत्तम सदुपयोग हो सकता है। सबसे अधिक मेहनत का काम उस समय किया जाय तो स्वास्थ्य एवं उपार्जन दोनों ही दृष्टि से लाभकारी सिद्ध होता है। सर्वोत्तम मेहनत का काम सर्वाधिक तापमान पर होता हे। भारतीय मनीषियों को इसकी जानकारी वस्तुतः प्राचीन काल से ही थीं। यही कारण है कि प्रातः कालीन

समय को उन्होंने चिन्तन-मनन के लिए उपासना साधना के लिए उपयुक्त बताया है। ओर परिश्रम के लिए उपार्जन के लिए लोक आराधना के लिए पुरे दिन को रखा है।

मनुष्य जैसे विकसित एवं जटिल जीवन में वस्तुतः अनेकानेक सूक्ष्म एवं विस्तृत जैविक चक्र चलते रहते है। “बायोरिद्म” उनमें से एक है जिस पर गहन अनुसंधान किये जाने की आवश्यकता हे। इस लयात्मक चक्र का शरीर, मन, एवं भावनाओं से गहरा संबंध है। यदि इसे जाना, समझा ओर उस पर नियंत्रण साधा जा सके तो केवल स्वास्थ्य एवं जीवन की रक्षा की जा सकती है। वरन् ज्ञान- विज्ञान के महत्तर आयामों को भी हस्तगत किया जाना संभव हो सकता है।


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