रंगों में निहित रोग निवारक-शक्ति

February 1989

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सूर्य जिसे विश्वात्मा कहा गया है। अपनी सप्त रश्मियों के माध्यम से सृष्टि के करण-करण में सतत प्राणों का संचार करता रहता है। चाहे”वनस्पति फोटो सिन्थेसिस” प्रक्रिया द्वारा वायुमण्डल से आहार खींचकर क्लोरोफिल बनायें अथवा मनुष्य कंद, फल? हरी पत्ती का उद्गम केन्द्र एक ही है, पोले आकाश में संव्याप्त सौरशक्ति का भाण्डागार।

वैज्ञानिकों का मत है कि मनुष्य को जहाँ तक सम्भव हो, सूर्य के संपर्क में रहना चाहिए। यह केवल निरोग रहने के लिए भी जरूरी है। बलवर्धक टॉनिकों के समान कार्य करने वाली इन सप्त रश्मियों की प्रभाव क्षमता का जब विवेचन किया जाता है तो मनुष्य चमत्कृत हो उठता है।

सुप्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी फ्रेउ रीनफेल्ड अपनी पुस्तक “किरणें दृश्य ओर अदृश्य” में लिखते है कि सौर विकिरण की तरंग दैर्ध्यों के अध्ययन के फलस्वरूप भौतिक शास्त्रियों ने अब कितने ही तत्वों को खोज निकाला है। जो सूर्य में उपस्थित है। उनके अनुसार पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी तत्व सूर्य और उनकी रंगीन रश्मियों में समान अनुपात में विद्यमान है। मात्र हाइड्रोजन ओर हीलियम ही अधिक मात्रा में है। प्रख्यात भौतिक विद सर नार्मन लाकयर एवं सर विलियम रैम्जे अपने अनुसंधानों के आधार पर रंगीन सूर्य रश्मियों में हीलियम तत्व को सबसे पहले खोज निकाला था। वर्णक्रममापी स्पेक्ट्रोस्कोप की सहायता से अब तक कितने ही तत्व खोजे जा चुके है। विशेषज्ञों का कहना है कि पीले रंग में पारा, आसमानी में एल्युमीनियम, हरे रंग में सीसा, लाल में लोहा, नीले में ताँबा, नारंगी रंग में सोना, ओर बैंगनी रंग में चाँदी का समावेश है। इनमें सेजिस खनिज तत्व की कमी शरीर में अनुभव हो उसे असंबंधित रंगोपचार से दूर किया ओर निवृत्त हुआ जा सकता है।

यह एक सुविदित तथ्य है कि इस सृष्टि में प्रत्येक वस्तु कुछ न कुछ रंग लिये विद्यमान है। इन रंगों के अपने -अपने कंपन होते है। शरीर के विभिन्न घटकों का भी अपना प्रकंपन होता है। इनकी कमी-वेशी शारीरिक मानसिक रोगों का कारण बनती है, जिन्हें रंग विशेष के सेवन या ध्यान द्वारा दूर किया जा सकता है।

विभिन्न रंग शारीरिक क्रिया कलापों को कई तरह से प्रभावित करते है। सुप्रसिद्ध रंग चिकित्सा विज्ञानी मेरी एंडरसन कृत “कलर हीलिंग” में बताया गया है कि लाला रंग अग्नि तत्व का द्योतक है जिससे रक्त एवं तंत्रिका तंतु प्रभावित उत्तेजित होते है। इस रंग का सेवन शरीर में ऐड्रिनलिन हार्मोन की मात्रा को बढ़ाता है साथ ही संवेदी तंत्रिकाओं स्नायुओं को क्रियाशील बनाता एवं रक्त प्रवाह को तीव्र करता है। सिंपेथैटिक नर्वस सिस्टम एवं सेरिबों स्पाइनल नर्वस सिस्टम इस रंग सक्रिय हो उठते है।

जिनके हाथ पैर सदैव ठंडे रहते हो उनके लिए लाल रंग लाभदायक होता है। विद्युतीय गुण वाला होने के कारण यह शारी के निष्क्रिय पड़े अंगों तक को चैतन्य बना देता है। इसके प्रभाव से लकवा ग्रस्त अपंग व्यक्ति भी ठीक हो जाते है। शरीर के जिस किसी भाग में गति न हो रही हो वहाँ लाल रंग का प्रकाश डालने से उक्त अंग अवयव सक्रिय एवं जीवन्त हो जाता है। वायु विकार से ग्रस्त नस-नाडियों, सर्दी के कारण उत्पन्न हुई सूजन आदि विभिन्न स्नायु मंडल को सभी रोग इस रंग रश्मि से दूर किये जा सकते है।

वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य के रश्मि पुँज में 80 प्रतिशत लाल तथा इन्फ्रारेड किरणें होती है। इन तप्त किरणों को हमारी त्वचा शत प्रतिशत सोख लेती है। नर्वस सिस्टम को उत्तेजित करना इन रक्त वर्ण किरणों का प्रमुख कार्य है। लाल रंग शरीर में गरमी बढ़ाता है। यही कारण है कि सर्दियों में लाल रंग के कपड़े पहने जाते है। लाल रग के कमरे में रहने से व्यक्ति सदैव उत्तेजित रहता है। इसकी अधिकता से उसकी पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि पृथ्वी पर पड़ने वाले सूर्य किरणों के मध्य में मंगल ···· vk tk; rks i`Foh ij yky fdj.ksa iMsaxh] ifj.kke Lo:i ml Hkw Hkkx esa jgus okys O;fDr;ksa o v;k; izkf.k;ksa esa dkyjk] pspd] ewPNkZ tSls jksx miu gks tk;saxs vkSj egkekjh Qsy tk;xhA mlh rjg ftu ioZr Ja[kykvksa dk jax yky gksxk] mldsa pgq vkSj fuokl djus okyksa dk LokLF; [kjkc jgsxkA jax fpfdRlk esa izk; gn; jksfx;ksa dks yky jax ds diMsa iguuk oftZr ekuk tkrk gSA ;gk vklekuh] gydsa uhys ;k lQsn diMsa iguus dh lykg nh tkrh gSA

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रंग चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि पीले रंग के प्रकंपन तंत्रिकातंत्र की मोटर तंत्रिकाओं को सक्रिय बनाते हैं और माँसपेशियों में ऊर्जा पैदा करते हैं। पाचन−तंत्र पर इस रंग का प्रयोग तत्सम्बन्धित रोगों का निवारण करता और यकृत को सामर्थ्य प्रदान करता हैं। रक्तशोधन एवं त्वचा रोगों को दूर करने के गुण भी इस रंग में विद्यमान हैं। लसिका ग्रंथियाँ भी इससे सक्रिय बनती और सही रूप से अपना कार्य करती हैं।

प्रकाश वर्ण क्रम में हरा रंग मध्य में आता हैं। कककक फ्ह्न.द्म क्द्मस्द्भ द्बभ्॥द्मद्मश द्गह्यड्ड॥द्मद्ध ;द्द द्ग/;द्ग द्गद्मह्वद्म फ्;द्म द्दस्ड्ड्न द्दद्भह्य द्भड्डफ् स्रद्म /;द्मह्व ;द्म द्यह्यशह्व द्धद्बंक−;ख्कद्भद्ध फ्भ्ड्डद्धस्नद्म स्रद्मह्य द्यष्द्यह्य क्द्ध/द्मस्र द्बभ्॥द्मद्मद्धशह् स्रद्भह्द्म द्दस््न द्गद्मरुंकद्भ फ्भ्ड्डद्धस्नद्म द्दद्मह्यह्वह्य स्रह्य स्रद्मद्भ.द्म शरीर की समस्त अंदरूनी संरचनाओं एवं क्रियाकलापों को प्रेरित प्रोत्साहित करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। हरे रंग के प्रकंपन इस ग्रंथि में उत्तेजना पैदा करते हैं फलतः उससे स्रवित रस शरीर वमन के तनावों को दूर करता और माँसपेशियों को दृढ़ता प्रदान करता हैं। शरीर की प्रतिरोधी सामर्थ्य बढ़ती हैं।

आसमानी रंग चयापचय (पेटाँबालिज्म) की प्रक्रिया को बढ़ाने वाला एवं मास-मज्जा आदि की वृद्धि में सहायक माना गया हैं। यह रंग सब रोगों में प्रयुक्त होता और लाभदायक सिद्ध होता हैं। शीतल प्रकृति का होने और नीले रंग के कपड़े पहनना लाभकारी माना जाता है। जब शरीर का कोई भाग अथवा समस्त शरीर अधिक गरम हो, तनाव अधिक हो तो उस वक्त आसमानी रंग का प्रयोग करना चाहिए।

नीला रंग सबसे श्रेष्ठ माना गया हैं। प्राणि मात्र का नैसर्गिक जीवन इसी रंग पर निर्भर करता है। समस्त जीवधारियों को जीवनीशक्ति एवं पोषण इन्हीं रंग रश्मियों से प्राप्त होता हैं। आकाश का रंग गहरा नीला हैं। उस ओर दृष्टि डालने से मनुष्य अनायास ही शान्ति के अगाध समुद्र में डूबने तैरने लगता है। यही कारण है कि धर्मशास्त्रों अध्यात्म शास्त्रों में बहिरंग त्राटक के ध्यान के लिए इस रंग को चुना गया हैं। ईश्वर के साकार रूपों को नीले रंग का बताया गया है और उन पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा गया हैं। यह रंग मनुष्य में भक्ति,प्रेम,अनुराग आदि की भावनाओं को जाग्रत करता एवं उन्हें सशक्त बनाता हैं। रंग चिकित्सा की दृष्टि से हल्का आसमानी रंग अधिक उपयुक्त माना जाता है। हलकेपन में ठंडक होती है जब कि गहरे आसमानी में गरमी अपेक्षातया अधिक होती है।

इन रंग प्रकम्पनों में विद्युतीय शक्ति होती हैं, यह पौष्टिक भी होते हैं। अतः इनका अत्यधिक सेवन कुछ कब्जकारक होता हैं। गरमी की अधिकता से पैदा होने वाले ज्वर, सिरदर्द, पेचिस अतिसार, दमा संग्रहणी, डायबिटीज, पथरी, मूत्र विकार आदि जैसे रोग इस रंग के सेवन से ठीक हो जाते हैं। आग से जलने से ···· gyds uhys jax ls tYnh Hkj tkrs gSaA lnh] ···· mPp jDr pki] ydok] gzn; dh nqcZyrk vkfn jksxksa ds fuokj.k esa bl jax ls dkQh lgk;rk feyrh gSA,d vkSj fo’ksष बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति नीले रंग को प्रधान स्थान पर चुनता है तो यह इस तथ्य का द्योतक है कि उसे भावनात्मक विश्रान्ति एवं सद्भावना की आवश्यकता है।

गहरे नील वाला इण्डिगो रंग ठण्डी प्रकृति का संकोचकारी, स्नायुओं को बल देने वाला एवं विद्युतीय गुणयुक्त होता है। यह रंग पैराथायराइड नामक अतः स्रावी ग्रंथि को प्रभावित उत्तेजित करता है। जिस व्यक्ति में थायराइड ग्रंथि अधिक सक्रिय होती है उसके लिए नीले रंग का ध्यान या रश्मि सेवन बहुत लाभ दायक सिद्ध होता है। इससे इस ग्रंथि का प्रभाव कम और पैराथायराइड का अधिक हो जाता है। फलतः थायरोक्सिन की अधिकता से होने वाली हानियों से स्वास्थ्य रक्षा हो जाती है। प्राणेन्द्रियों नेत्रों एवं कर्णेन्द्रियों को स्वस्थ बनाये रखने तथा रक्तशोधन में इन रंग रश्मियों से बहुत सहायता मिलती है। रक्तस्राव को रोकने एवं हृदय रोग में भी इसका प्रयोग होता है। तिल्ली में बनने वाले फैगोसाइट्स नामक जुझारू रक्त–कणिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया इस रंग से तीव्र हो जाती है। इण्डिगो रंग एण्टीसेप्टिक का भी काम करता है।

बैंगनी रंग (वायलेट) रंग की गणना भी ठंडे रंगों में की जाती है। सूर्य की बैगनी रश्मियों को चेतन ऊर्जा सम्पन्न विद्युत किरणें भी कहते हैं जिन पर समस्त प्राणियों का जीवन निर्भर है। मानवी काया में यह रंग पोटैशियम -सोडियम संतुलन को पुनर्जीवित करता है। मोटर तंत्रिकाओं की उत्तेजकता को मंद करने, लिम्फैटिक सिस्टम, कार्डियक सिस्टम को संतुलित बनाने में इस रंग की महती भूमिका होती है। इस में रक्त शोधन की एवं जीवनी शक्ति बढ़ाने वाले ल्यको माइट्स नामक रक्तकणों के निर्माण की क्षमता विद्यमान होती है। मस्तिष्कीय दुर्बलता में यह टॉनिक का काम करता है। शरीर का ताप कम करने में भी इसका प्रयोग होता है। रंग चिकित्सा विज्ञानियों का कहना है कि बैंगनी रंग के प्रभाव से कैंसर जैसे घातक रोग तक ठीक हो सकते हैं। इस रंग का स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। यदि इस रंग के नीचे ध्यान किया जाय तो मन का केन्द्रीकरण बहुत जल्दी होता है। ऐसा विद्वज्जनों का अनुभव है। उदासी दूर करने तथा भूख मिटाने में भी इन रंग रश्मियों का उपयोग होता है।

सप्तवर्णी किरणों के अतिरिक्त सूर्य से इन्फ्रारेड तथा अल्ट्रावायलेट नामक दो महत्व पूर्ण अदृश्य प्रकाश रश्मियाँ निकलती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इनमें से इन्फ्रारेड किरणें अदृश्य गरमी की किरणें है जो पृथ्वी में गहराई तक प्रवेश कर जाती हैं और वृक्ष-वनस्पतियों को नव जीवन प्रदान करने का काम करती मनुष्य की त्वचा पर भी इन रश्मियों का प्रभाव पड़ता है। रक्ताल्पता तथा रक्त का शरीर में असामान्य वितरण, शोध, जोड़ों का दर्द, संक्रामक रोग आदि के उपचार में इनका प्रयोग होता है। अदृश्य होने और प्रकाश पुँज से इन्हें विलय करने में कठिनता के कारण यद्यपि इनका प्रयोग बहुत कम हो पाता है। प्रायः इन किरणों को कृत्रिम रूप से इन्फ्रारेड लैम्पों के माध्यम से प्राप्त किया और उपचार के काम में लाया जाता है। इन से वह लाभ प्राप्त नहीं हो पाता जो सामान्यतया प्रकाश में विद्यमान इन्फ्रारेड किरणों से हस्तगत होता है।

अल्ट्रावायलेट या नीलोत्तर किरणों को अष्टम किरणें भी कहा जाता है। अदृश्य होने के कारण इन्हें वर्णक्रम में नहीं देखा जा सकता। इनका स्थान बैंगनी किरणों के ठीक नीचे होता है। मनुष्य शरीर में इनका प्रमुख कार्य कैल्शियम -फास्फोरस के चयापचय में एवं विटामिन डी के निर्माण का होता है। अंतः स्रावी ग्रंथियों की प्रक्रिया को सामान्य बनाने तथा सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम को उत्तेजित कर दर्द दूर करने में इन किरणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन किरणों में जीवनी शक्ति बढ़ाने वाले स्वास्थ्यवर्धक तत्व मौजूद होते है। इनकी अधिकाँश मात्रा सुबह सूर्योदय के समय ही हम तक पहुँचती है। शेष समय नमी, धूल आदि के कारण धरती तक पहुँचने के इनके रास्ते में अनेक व्यवधान खड़े हो जाते हैं। जिन्हें पार करना बेधना इन किरणों के लिए मुश्किल पड़ता है। शरीर पर लिपटे वस्त्रों तक को बेधन में यह किरणें सफल नहीं होती। यही कारण है कि चिकित्सा विज्ञानी सुबह के समय नंगे बदन सूर्य सेवन का परामर्श देते है। धार्मिक क्रिया कृत्यों में सूर्यार्ध्य देने के पीछे भी यही विज्ञान काम करता है कि पानी की धारा त्रिपार्श्व काँच का काम करती है और उस से छनकर अल्ट्रावायलेट किरणें सूर्यार्ध्य देने वाले ऊपर सीधी पड़ती हैं जिनका लाभ उसे शारीरिक स्वास्थ्य के रूप में मिलता है। नंगे बदन पर पड़ने से यह किरणें तुरन्त त्वचा में गहराई तक प्रवेश कर जाती हैं और वहाँ पहुँचकर उन तत्वों को पोषण देती है जिन्हें जीवनी शक्ति का मूलभूत आधार कहा जा सकता है।

सुप्रसिद्ध सूर्य चिकित्साविद् डा0 बर्नर मैक फैडन ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि इन किरणों में स्वास्थ्य सम्वर्धन की अद्भुत क्षमता है। शरीर में प्रविष्ट होते ही यह किरणें रक्त में कैल्शियम की मात्रा में वृद्धि कर देती हैं। विश्व के प्रायः सभी प्रख्यात चिकित्सा विज्ञानियों जैसे बैनेडिक्ट लस्ट, स्टेनली लीफ, डा0 बेब्बिट आदि ने इन किरणों पर गहन अनुसंधान किया है और पाया है कि इनमें रक्त के लाल कणों श्वेत कणों में कैल्शियम, फास्फोरस, फास्फेट आयोडीन और आयरन आदि तत्वों में समन्वय सामंजस्य बिठाने की आश्चर्य जनक क्षमता है।

अल्ट्रावायलेट किरणों के रोग नाशक प्रभाव को सभी वैज्ञानिकों ने एक मत से स्वीकार किया है। ये किरणें शरीर के आँतरिक और बहिरंग स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभदायक हैं। ग्वायटर एवं रिकेट जैसे घातक रोग इसके सेवन से दूर हो जाते है। बच्चों की हड्डियों के टेढ़ा होने रोग अल्ट्रावायलेट किरणों से बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं। जो माताएँ इन प्रकाश रश्मियों का सेवन करती हैं। उनके बच्चे भी पूर्ण स्वास्थ्य देखे गये हैं। क्षय रोग से त्राण पाने तथा इस रोग के विषाणुओं को नष्ट करने में वैज्ञानिकों को इस रंग से काफी सफलता मिली है।

वस्तुतः वर्णों का संसार जादुई प्रभावी शक्ति सामर्थ्य से भरा पूरा है। क्रोमोपैथी, टेलिकाँस्मो थेरेपी, कलर हिलींग इत्यादि के द्वारा सौर किरणों को फिल्टर करके वांछित रश्मि प्रवाह मनुष्य के अंगों पर डाल कर उन्हें प्रभावित किया जा सकता है, यह वैज्ञानिक प्रयोग सिद्ध कर चुके हैं। इतनी सब कुछ प्रत्यक्ष जानकारी होते हुए भी सर्वोपलब्ध इस शक्ति आगार के लाभों से हम वंचित बने रहें तो हम से बड़ा अभागा कोई नहीं।


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