सभी प्राणी स्वच्छंद विचरते है। उनके लिए कोई निर्धारण या आचार- विचार- व्यवहार निश्चित नहीं होते। इसलिए वे न अपने निजी व्यक्तित्व को गरिमा सम्पन्न बना पाते है ओर न जीवन निर्वाह के अतिरिक्त ऐसा कुछ कर पाते है जिसे महत्वपूर्ण ओर अभ्युदय स्तर का समझा जा सके गौरव गरिमा के आधारों को जो न अपना सके उन्हें गया गुजरा ही कहा जा सकता है। पशु-पक्षी, कीट पतंगे तो इस स्तर के होते ही है, परन्तु कुछ मनुष्य देहधारी भी वैसा ही जीवन जीते ही है, परन्तु कुछ मनुष्य देहधारी भी वैसा ही जीवन जीते है। वे ऐसे स्वेच्छाधारी रहते है, जिन्हें मनुष्यों के साथ जुड़े कर्त्तव्यों का ज्ञान रहता है, न उत्तरदायित्वों का। वे न मर्यादाओं से बचने की उन्हें चिन्ता रहती है। ऐसे लोगों को नर पामरों में गिना जाता है। अनगढ़ ओर असभ्य उन्हीं को कहते है उनकी अन्तः चेतना अनुशासन में बँधने को तैयार नहीं होती। भूत–पलीतों की तरह श्मशान सुनसान में निवास ओर डरते-डराते हेय स्तर का जीवन बिताते है।
अनुशासन के अनुबंधों को लागू करने कराने के लिए अपने अपने ढंग से धर्म, शासन ओर समाज सभी ने जोर दिया है। धर्म, कर्त्तव्य, पुण्य, परमार्थ, संयम तप आदि के माध्यम से दिशा निर्देश ओर स्वर्ग नरक के प्रलोभन अथवा भय इसी उद्देश्य से दिए जाते रहे है। शासकीय संविधान नियम दण्ड संहिता आदि की रचना भी इसलिए की गयी है। समाज में भी उद्दण्ड उच्छृंखल लोगों के प्रति भर्त्सना-प्रताड़ना बरती जाती है। उनके प्रति घृणा उपेक्षा, विरोध ओर बहिष्कार जैसे क्रम भी अपनाये जाते है। अप्रमाणिक समझे जाने वालों पर से सबका विश्वास उठ जाता है। किन्हीं महत्वपूर्ण कामों को प्राप्त करने का अवसर उनके हाथ से निकल जाता है। इसलिए मानव समाज के सभ्य सदस्य बनने के अनुशासनों का परिपालन सहज अभ्यास के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा रहना चाहिए।
इन अनुशासनों के परिपालन के संदर्भ में स्काउटिंग आन्दोलन के विचार अधिक समीचीन है। उस निर्धारण के सूत्रधारों ने ऐसी आचार संहिता बनायी है, जिसे हलके फुलके मानसिक विकास वाले भी प्राथमिक शिक्षा की तरह अपना सके। किसी को उनकी अनिवार्यता स्वीकारने ओर अभ्यास में उतारने की तत्परता बरतने में कोई बड़ी कठिनाई अनुभव न हो, ऐसी दृष्टि रखी गयी है। स्काउट आन्दोलन को व्यक्तित्व की गरिमा, नागरिकता का निर्वाह ओर सामाजिक शालीनता का सामान्य परिपालन भी कह सकते है। इतना सीख लेने के उपरान्त ही कोई किसी महत्वपूर्ण एवं उच्चस्तरीय क्षेत्र में प्रवेश कर सकने योग्य बनता है। प्रगति ओर प्रतिष्ठा की इस आचार संहिता को अक्षर ज्ञान जैसा श्री गणेश भी कह सकते है।
एक वर्ष को होते-होते बच्चे को अभिभावक उँगली पकड़कर चलना सिखाते हे। सही रीति से पैर रखने ओर सही दिशा में चलना अबोध बालक इसी प्रकार सीखता है। सभ्यता के क्षेत्र में प्रवेश करते हुए भी किसी व्यक्ति को रास्ते पर बायीं ओर चलना, पंक्ति बद्ध होकर रास्ता पार करने की, काम पर जाने की विधि सीखनी पड़ती है यह प्रथम नागरिक अनुशासन है। यदि लोग भेड़ चाल चलने लगे, तो एक दूसरे से टकराये ओर धमा चौकड़ी का माहौल बनने लगे। बाँयी ओर चलने ओर लाइन लगाने की रीति नीति हर किसी के अभ्यास में लायी जानी चाहिए। ढेरों दुर्घटनाएं सभ्यता के इन सूत्रों की उपेक्षा, उनके उल्लंघन के कारण ही होती है। वाहन चलाने वाले रास्ता चलने वाले का ध्यान नहीं रखते, मन माने ढंग से चलते है। राहगीर भी बेतरतीब चलते है ओर वाहनों की चपेट में आकर नुकसान उठाते, जान भी गँवाते है। नुकसान केवल उन्हें ही नहीं होता, बचाने वालों, चिकित्सकों, संबंधियों ओर शासन को भी इस असभ्यता के कारण हैरानी उठानी पड़ती है। पर्व त्योहारों, मेलों आदि के हर्ष भरे वातावरण में थोड़ी सी असभ्य आदतें माहौल ही बदल देती है। ऐसे प्रसंगों पर हर वर्ष दुर्घटनाएं होती रहती है। सैकड़ों लोग भीड़ के दबाव में पैरों तले कुचलकर मर जाते है। यह सब अनगढ़पन के ही चिन्ह है। सभ्य देशों में स्टेशन पर रेलगाड़ियां कुछ ही मिनट रुकती हे। व्यवस्थित, पंक्तिबद्ध क्रम के अभ्यस्त यात्रियों के उतरन चढ़न की क्रिया मिनटों में सरलता से पुरी हो जाती है। इसके विपरीत धमा चौकड़ी मचाने वालों में किन्हीं की जेब कटती है, किन्हीं के कपड़े फटते है तो किसी का सामान छूटता-टूटता है। यह सब उपरोक्त अनुशासनों के उल्लंघन के ही फल हैं। सभ्यता के इन प्राथमिक अभ्यासों को स्काउटिंग प्रक्रिया में प्रथम नियम मानना उचित ही है।
अनुशासन शक्तिपुँज है। बिखराव में समर्थ भी असमर्थ बन जाता है। सूर्य किरणों को केवल एक इंच परिधि के आतिशी शीशे द्वारा केंद्रित किया जाय तो देखते-देखते आग लग जाती है। बंदूक की नली के अनुशासन में रहने वाली बारूद लम्बी दूरी तक गोली से लक्ष्य भेद करती है। केन्द्रीकृत भाप से इंजन में शक्ति आती है मनुष्य के कण-कण में अजस्र सामर्थ्य है, पर वह अनियमित रहने से बिखरी और अस्त व्यस्त रहती है। उससे कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। सेना को शक्ति मान माना जाता हैं, क्योंकि उस में अनुशासन रहता है। संख्या तो भीड़ की अधिक होती है पर वह केवल गंदगी फैलाती और समस्यायें पैदा करती है। चर्चाओं में सैनिक अनुशासन सराहा जाता है। स्काउटिंग का केन्द्रीय दर्शन भी यही है। उस धारा को अपनाने वालों को अनुशासित ही रहना पड़ता है।
अनुशासन की मनोवृत्ति और प्रवृत्ति भली प्रकार विकसित, पुष्ट होती रहे इसके लिए स्काउटिंग में वर्दी से लेकर कवायद, ट्रेनिंग आदि में पग-पग पर ध्यान रखा जाता है। यह सामयिक एवं प्राथमिक अभ्यास है। वस्तुतः उसका चरम लक्ष्य यह है कि इस विद्या का आश्रम लेकर व्यक्ति पूरी तरह अनुशासित और कर्तव्यपरायण बने। एकता, समता को निरंतर चरितार्थ करता रहें। इसी हेतु स्काउट से कई प्रकार के क्रिया कलाप कराये जाते हैं। कई प्रतिज्ञाओं से, सिद्धान्तों से और आदर्श के अनुबंधों से बांधा जाता है। तत्वतः यह सभ्यता का शुभारंभ है।
स्काउटों को ईश्वर के प्रति, राष्ट्रीय कर्तव्यों के प्रति स्काउट अनुशासन-सेवा व्रत के प्रति पूर्ण वफादारी बरतने की प्रतिज्ञा करनी होती है। संक्षेप में इसे आदर्शों के प्रति असीम अविच्छिन्न आस्था कहा जा सकता है, इसका निर्वाह अनीश्वरवादी भी कर सकते हैं। मानव जीवन की सार्थकता एवं सुन्दरता इसी में है। स्वेच्छाचारी तो हेय योनियों के प्राणी होते हैं। वे किसी का भी खेत चर सकते हैं। किसी रिश्ते को ध्यान में रखे बिना स्वच्छंद यौनाचार कर सकते है। गंदगी में लोटपोट होते रह सकते हैं। परन्तु मनुष्य के लिए यह सब आचरण हेय हैं। उसे स्वच्छंद से लेकर शिष्टाचार तक तथा आत्मीयता से औचित्य तक सभी पक्षों का ध्यान और संतुलन रखना पड़ता है।
स्काउट में सैनिकों जैसे अनुशासन एवं पराक्रम तथा श्रेष्ठ नागरिक की शालीनता का समावेश किया जाता है। उन्हें अपनी वर्दी स्वच्छ ओर सुव्यवस्थित रखनी होती है पूरी पोशाक, बैज, स्कार्फ सभी करीने से धारण करने होते हैं। कदम मिलाकर चलना, परेड में पूर्ण सैनिक अनुशासन मानना, आदेश का तत्काल पालन करना, उनके सहज क्रम में घुले मिले रहें, इसका प्रयास किया जाता है। खेल कूद में बौद्धिक और शारीरिक दोनों के विकास के अनुरूप क्रम अपनाये जाते हैं। स्वस्थ स्पर्धा, आगे निकलने, साहस दिखाने, पराक्रम का परिचय देने जैसे सजग मनुष्य में रखे जाने योग्य अनेक गुणों का विकास किया जाता है। अपना भोजन पकाना, अपनी सुरक्षा व्यवस्था बनाना और कैम्प फायर के माध्यम से स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था भी स्वयं बनाना उनके अभ्यास में लाया जाता है यह सभी गुण हर प्राणवान नागरिक में विकसित किये जाने चाहिए, चाहे यह प्रक्रिया स्काउटिंग के अवलम्बन से संपन्न हो अथवा अध्यात्म की प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ कर। सच्चा अध्यात्मवादी वही है, जो अनुशासित है। यह एक ध्रुव सत्य है।