परम्परा (Kahani)

February 1989

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एक वृद्ध जराजीर्ण हो गया। घर छोटा था। बेटे की नई बहु आई। वृद्ध था दरवाजे के पास पौली में जगह मिली। फिर भी खाँसी आदि से घर में कुछ तो व्यतिरेक रहता ही है। बेटे की बहु को यह बर्दाश्त न हुआ। वह बुड्ढे से पीछा छुड़ाना चाहती थी।

एक दिन उसने हठ ठान ली कि या तो यह बुड्ढा घर में रहेगा या मैं रहूंगी। पति वधू को छोड़ने के लिए तैयार न था। अन्त में बाप से पीछा छुड़ाने की बात निश्चित हुई। योजना बनी कि बैलगाड़ी में ले जाया जाय। उसी में मार कर किसी खड्ड में लाश को उल दिया जाय। वैसा ही किया भी गया। बुड्ढे बाप से पीछा छूटा।

समय बीता। नव विवाहित लड़का भी समयानुसार बुड्ढा हुआ। उसके बेटे का भी विवाह हुआ। उसी प्रकार वधू ने बुड्ढे से पीछा छुड़ाने की हठ ठानी। अनंतः बैलगाड़ी में किसी बाने बिठाकर ले जाने ओर उसे मारकर गड्ढे में फेंक देने की योजना बनी। वह भी पुरी कर दी गयी। पति पत्नी पुरे घर में आनंद से रहने लगे।

उसके भी बेटा हुआ। ब्याह हुआ। वधू आई। बाप को वैसा ही बुढ़ापा आ गया। उसे भी पौली में जगह दी गयी। नव वधू ने बुड्ढे बाप से पीछा छुड़ाने की ठान ली। बैलगाड़ी सँजोई गई और उसे भी खड्डे में तक ले जाया गया।

बुड्ढे ने बेटे से कहा - अब यह परम्परा बन्द होनी चाहिए अन्यथा पीढ़ियों तक यही क्रम चलता रहेगा। मैं स्वेच्छापूर्वक चला जाता हूँ और भीख माँगकर किसी प्रकार दिन पुरे करूंगा। मेरे पिता ओर बाबा की भी यही दुर्गति हो चुकी है। प्रमाण स्वरूप दोनों की हड्डियाँ उसे दिखाई।

लड़के का दिमाग बदला। वह बाप को घर वापस ले आया। पत्नी को तीन पीढ़ी का सारा किस्सा सुनाया। तब उसकी भी समझ में आया कि बुड्ढे सहित ही गुजारा करना चाहिए।


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