एक लकड़हारा जंगल से नित्य लकड़ी काट कर लाता और उन्हें बेच कर अपना गुजारा करता।
एक दिन लकड़हारा नदी किनारे के पेड़ पर लकड़ी काट रहा था। अचानक कुल्हाड़ी हाथ से छुट कर गहरी नदी में गिर पड़ी। निराश लकड़हारा पेड़ के नीचे बैठ कर रोने लगा। परिवार का पेट कैसे भरेगा।
डस पेड़ पर एक देवता रहता था उसे उस गरीब के ऊपर दया आई और सहायता करने का मन बना। देवता नदी में उतरा एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर आया लकड़हारे को दी। उसने कहा यह मेरी नहीं है। मेरी तो लोहे की थी बही चाहिए।
देवता ने दूसरी डुबकी लगाई। अब की बार चाँदी की लाया। उसे भी लकड़हारे ने वही उत्तर देकर वापस कर दी। तीसरी बार तांबे की कुल्हाड़ी निकल आई वह भी लकड़हारे ने उसी उत्तर के साथ वापस कर दी।
अन्त में देवता लोहे की कुल्हाड़ी आया उसे उसने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया और देवता को सहायता के लिये हार्दिक धन्यवाद दिया।
देवता लकड़हारे की ईमानदारी पर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सोने की, चाँदी की, लोहे की तीन कुल्हाड़ियां उसे उपहार स्वरूप प्रदान की। ईमानदारी अपना कर लकड़हारा नफे में भी रहा और देवता का कृपा पात्र भी हुआ। यशस्वी भी बना।