संतोष के पर्याप्त आधार (Kahani)

February 1989

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शेखसादी रोज मस्जिद नमाज के लिये जाया करते थे। उनके पैर में टूटे जूते थे। एक दिन एक रईस नमाज के लिये आया। उसके पैर में सुनहरी मीनाकारी के जूते थे। शेखसादी ने पूछा-आप कितने दिन बाद नमाज के लिये आते है? उसने कहा वर्ष में एक बार। शेखसादी चुप हो गये उनने मन ही मन ईश्वर को कोसा और कहा मैं रोज पाँच वक्त नमाज पढ़ता हूँ। मेरे पास फटे जूते और यह रईस वर्ष में एक बार आता है इसके लिये सोने की जरी वाले जूते। थोड़ी देर बाद एक दूसरा व्यक्ति मस्जिद में आया उसके पैर ही नहीं थे। घिसट घिसट कर चलता था। इसके साथ अपना मुकाबला करते हुए उन्होंने कहा- धन्य है परमेश्वर! तूने मुझे जूते न सही पैर तो सही सलामत दिये हैं जिनके द्वारा जिन्दगी के सारे काम चला लेता हूँ। संपन्नों के साथ मुकाबला करने पर हर किसी को अपने अभावों का भान होता है किन्तु यदि गये गुजरों के साथ अपनी तुलना की जाय जो संतोष के पर्याप्त आधार मिल जाते है।...


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