पगडण्डियों में न भटकें

February 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जीवन एक वन है, जिसमें एक फूल भी है और काँटे भी है। जिसमें हरी–भरी सुरम्य घाटियाँ भी है और ऊबड़–खाबड़ जमीन भी। अधिकतर वनों में वन्य पशुओं ओर वनवासियों के आने जाने से छोटी-मोटी पगडण्डियाँ बन जाती है। सुव्यवस्थित दीखते हुए भी ये जंगलों में जाकर लुप्त हो जाती है। आसानी आरे शीघ्रता के लिए बहुधा यात्री इन पगडण्डियों को पकड़ लेते है व सही रास्ते से भटक जाते है।

जीवन-वन भी ऐसी ही पगडण्डियों से भरा हुआ है जो बहुत है, छोटी दीखती है, पर गन्तव्य स्थान तक पहुँचती नहीं है। जल्दबाज पगडण्डियाँ ही ढूंढ़ते है किन्तु उनको यह मालूम नहीं होता कि ये अन्त तक नहीं पहुँचती ओर जल्दी काम हो जाने का लालच दिखाकर दल दल में फँसा देती है।

पाप ओर अनीति का मार्ग जंगल की पगडण्डी, मछली वंशी ओर चिड़ियों, के जाल की तरह है। अभीष्ट कामनाओं की जल्दी से जल्दी, अधिक से अधिक मात्रा में पूर्ति हो जाय, इस लालच से लोग वह रास्ता पकड़ते है जो जल्दी ही सफलता की मंजिल तक पहुँचा दे। जल्दी ओर अधिकता दोनों ही वाँछनीय है, पर उतावली में उद्देश्य को नष्ट कर देना तो बुद्धिमत्ता नहीं कही जाएगी।

जीवन वन का राजमार्ग सदाचार ओर धर्म है। उस पर चलते हुए लक्ष्य तक पहुँचना समय साध्य तो है, पर जोखिम उस में नहीं है। हम पगडण्डियों पर न चले, राज मार्ग पर, न्यायोचित मार्ग पर चले। देर में सही, थोड़ी सही, पर जो सफलता मिलेगी, वह स्थायी भी होगी ओर शान्ति दायक भी।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118