जीवन पर मलीनताओं का खोल (Kahani)

February 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक निर्धन शिष्य की भक्ति भावना से प्रसन्न होकर सिद्ध पुरुष ने उसे पारसमणि देने का अश्वासन दिया और प्राप्त करने का एकान्त समय और स्थान बता दिया।

शिष्य बड़ी प्रसन्नता और उत्साह के साथ नियत समय पर पहुँचा। साधु ने उसे एक स्थान खोदने और वहाँ से एक छोटी डिब्बी खोद निकालने के लिये कहा। शिष्य ने वैसा ही किया। साधु ने बताया कि इसी में यह पारसमणि हैं।

शिष्य को विश्वास न हुआ। उसने अनमने हो कर पूछा-यदि इस लोहे की डिब्बी में पारस रहा होता तो कम से कम यह तो सोने की ही हो गई होती।

सन्त कुछ उत्तर तो न दिया पर डिब्बी को खोल कर उसे दिखाया। पारस के ऊपर मोटे कपड़े का खोल लिपटा हुआ था जिससे लोहे और पारस को परस्पर मिलने का अवसर ही नहीं मिलता था। जब खोल हटा कर दूसरे लोहे को छुआया गया तो वह डिब्बी भी सोने की हो गई और दूसरा टुकड़ा भी।

पारस पाकर शिष्य निहाल हो गया। साथ ही उसने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक जीवन पर मलीनताओं का खोल चढ़ा रहता हैं तब तक वह भगवान को, सद्गति को, प्राप्त कर सकने में समर्थ नहीं हो पाता।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118