एक धोबी नदी तट पर कपड़े सुखा रहा था। उसकी स्त्री हड़बड़ा कर कह रही थी। संध्या आ चली, जल्दी चलना चाहिये नहीं तो रास्ते में परेशान होना पड़ेगा।
समीप ही एक शेर झाड़ी में छिपा यह सुन रहा था। उसने सोचा कि संध्या कोई बड़ी मुसीबत हैं। वह डर के मारे एक समीपवर्ती पेड़ के नीचे जा छुपा। इधर कुम्हार का गधा भी कहीं गायब हो गया। धोबी उसे अँधेरे में ही खोजने निकला। देखा तो पेड़ के नीचे शेर बैठा था उसने उसी को गधा समझा और डंडे से पीटता हुआ वहाँ ले आया जहाँ उसकी स्त्री ने कपड़े समेट कर रखे थे। शेर कपड़े पर कपड़े लादे और उसे डंडे से हाँकता हुआ घर ले चला। शेर पुरी तरह घबराया हुआ था कि उसे संध्या ने घेर लिया अब उससे बचना मुश्किल है। रात भर उसने बाड़े में बंद हो कर गुजारी। दूसरे दिन सवेरा हुआ तो उसने वस्तुस्थिति समझी और जंगल के लिये चम्पत हो गया। सोचा संध्या कुछ थी नहीं। अपने भय की अँधेरे में उपजी भ्रान्ति ही थी।