एक व्यक्ति सर्व सुखी बनना चाहता था। इस कामना पूर्ति के लिए किसी पहुँचे हुए सिद्ध महात्मा के पास पहुँचा। महात्मा ने उसका मनोरथ जाना ओर कहा- इसके लिए एक छोटा सा काम करना पड़ेगा कि किसी सर्व सुखी व्यक्ति का पहना हुआ छोटा सा कपड़ा ले आओ। बात साधारण थी। इस खोजबीन में वह निकल पड़ा। असंख्यों से मिला। कई वर्ष बीत गये। पर सर्व सुखी कोई न मिला। हर किसी को कोई न कोई असंतोष, अभाव कष्ट घेरे हुए था।
जब वह निराश होकर वापस लौटने को ही था, तो एक अलमस्त अबुधत मिला। उसके पास मात्र एक कोपीन थी। उसने अपने का सर्व सुखी तो बताया पर वस्त्र देने से इन्कार कर दिया। कोपीन दे नहीं सकता था ओर इसके अतिरिक्त ओर कुछ उसके पास नहीं था।
कामनाग्रस्त कई वर्ष सुखी का कपड़ा खोजने में लगा रहा और अन्त में निराश होकर उन्हीं सन्त के पास पहुँचा।
महात्मा ने उसे पास बिठाया ओर समझाते हुए कहा बेटा, संसार में कोई शरीरधारी सुखी नहीं है। कामनाग्रस्त हो तो कुछ न कुछ अभाव संकट बने ही रहते हैं। निष्काम लोग ही सुखी रह सकते हैं पर वह स्थिति तब आती है जब लोभ, मोह और अहंकार का परित्याग कर दिया जाता है।