सदाशयता का पक्षधर वातावरण बनाएँ

June 1988

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हनुमान ने लंका में किसी राम भक्त का पता लगाने के लिए यह देख भाल की थी किसी के दरवाजे पर नाम तो नहीं लिखा है। इसी आधार पर उनने .... बढ़ाया और विभीषण को साथ लेकर राम काज सम्पन्न किया।

नवयुग के शुभारम्भ में यह कार्य हमें घर-घर आदर्श .... अंकित करने के रूप में आरंभ करना चाहिए। .... पर आदर्श वाक्य लेखन भी एक अच्छी पद्धति है, उसमें कठिनाई एक है कि जहाँ भीड़ पहुँचती है वहाँ आदर्श वाक्य लिखने के लिए जगह नहीं मिलती।

सरल समाधान दूसरा निकाला है- स्टीकर चिपकाने, उन्हें घरों, दफ्तरों के दरवाजे पर चिपकाया सकता है। अलमारियों पर, फर्नीचर पर, बाक्स-.... पर उन्हें लगाया जा सकता है। ये वर्षों स्थिर रहते है, जो कोई भी उधर से गुजरता है, उन्हीं की नजर पड़ती है। निवास करने वाले तो आये दिन कई-कई बार उन्हें .... रहते है। बाहर का व्यक्ति पीछे किसी नगर गाँव में, हल्ले या घर में पहुँचता है तो वहाँ आदर्श वाक्य की मार देख कर मोटे तौर से यह अनुमान लगा लेता है । इन लोगों की मनःस्थिति किस स्तर की होनी चाहिए। इनका चिन्तन, चरित्र, व्यवहार इसी स्तर का किया। यह मान्यता उस विश्वास को उलटती है जिसमें .... जाता है। कि दुनिया में बुराइयाँ ही बढ़ गई है। आदर्श वातावरण अधिक स्थानों पर दृष्टिगोचर होने से दर्शक के अचेतन में एक मान्यता जमती है कि वस्तुतः युग परिवर्तन की हवा बनने और बहने लगी है। यह एक बहुत बड़ी बात है। लोगों को व्यक्तिगत रूप से .... आदर्शों की महिमा महत्ता समझनी और जीवन उतारनी पड़ती है। पर उसे ठोस क्रिया का अवलंबन रहने में वातावरण भी असाधारण रूप से सहायक होता है।

लोग जैसे वातावरण में रहते है वैसा ही उनका रुझान बनने लगता है और अचेतन में जमने वाले वे संस्कार कालान्तर में अनुकूलता पाकर फलते-फूलने .... लगते है। नशेबाजों, व्यभिचारियों, उचक्कों और कुकर्मियों की हरकत देखते भर रहने से उनके प्रति आक्रोश ठंडा होने लगता है और किसी प्रकार तालमेल बैठ जाता है। यह वातावरण का ही प्रभाव है।

सदाशयता का पक्षधर वातावरण बनाने के लिए हमें ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जिससे यह प्रतीत होने लगे कि अवाँछनीयता घट रही है। उसका स्थान सत्प्रवृत्तियाँ ले रही हैं। यह कार्य जिन उद्योगों से हो सकता है उनमें स्टीकर आन्दोलन सबसे सरल और सबसे प्रभावशाली है। हर अखण्ड ज्योति परिजन को निजी रूप से यह प्रयत्न करना चाहिए कि अपने प्रभाव और परिचय क्षेत्र में कोई घर, दुकान, दफ्तर, कमरा ऐसा न बचे जहाँ आदर्श वाक्यों वाले स्टीकर न चिपके हुए हों।

स्टीकरों को अपने घरों में शाखाओं में प्रयत्न से बनाया जाने लगे तो लागत में और भी अधिक कमी हो सकती हैं। इच्छित संख्या में बिना प्रतीक्षा किये उन्हें बनाया और अन्य साथियों की माँग को पूरा किया जा सकता है। शान्ति कुँज में, गायत्री तपोभूमि में, यह निर्माण कार्य नये सिरे से हाथ में लिया गया है। हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं में भी उन्हें बनाने का काम हाथ में लिया गया है। माँग आने पर उसकी पूर्ति की जा सके इसके लिए स्वतंत्र प्रबन्ध किया गया। साथ ही यह भी प्रबन्ध किया गया है कि जो बनाने के इच्छुक हों उन्हें इस प्रक्रिया को घरेलू उद्योग की तरह सिखा दिया जाय।

डाक खर्च बढ़ जाने के कारण कही भी इन्हें पोस्ट पार्सल में नहीं भेजा जा सकता क्योंकि डाक व्यय स्टीकर की कीमतों से प्रायः दूने भाव पड़ेंगे। इसलिए जिन्हें जब भी माँगने हों किसी आते जाते व्यक्ति के हाथों ही मँगाने चाहिए, उधार लेने की बात किसी को भी नहीं सोचनी चाहिए क्योंकि लागत की पूँजी घूमते रहने से ही यह विभाग चलता रह सकता है। कोई उधार रोकेंगे तो पूँजी के अभाव में यह प्रयास ठप्प हो जायेगा।

अखण्ड ज्योति परिवार के समीपवर्ती सभी क्षेत्रों में आदर्श वाक्यों वाले स्टीकर चिपकाये जा सकें, इसका प्रयत्न पूरे उत्साह के साथ चलना चाहिए।


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