अहिंसाधारी संत बन गया (Kahani)

June 1988

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एक बहेलिया किन्हीं पहुँचे हुए संत से दीक्षा लेना चाहता था। संत का नियम था कि गुरु-दीक्षा में अहिंसा व्रत निबाहने की प्रतिज्ञा कराते थे।

बहेलिया का निर्वाह पक्षी पकड़ने पर ही चलता था। वह उसके लिए तैयार न हुआ। निराश लौटते देखकर संत ने उसे सरल उपाय सुझाया और क्रमशः धीरे-धीरे कदम बढ़ाने का मार्ग बताया। उनने कहा-अभी तुम कम से कम एक पक्षी पर दया व्रत निबाहने का व्रत निभाओ। पीछे उस व्रत की परिधि बढ़ाते चलना। इस पर बहेलिया तैयार हो गया। उसने सर्वप्रथम “कौवा” न मारने का व्रत लिया। और अहिंसा धर्म में प्रवेश किया।

बहेलिया अहिंसा तत्व पर विचार करता रहा धीरे-धीरे उसकी परिधि बढ़ाता रहा। कुछ दिन में वह पूर्ण अहिंसाधारी संत बन गया।


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