गंगा स्नान का पर्व था भारी भीड़ स्नान का पुण्य लाभ करने के लिए जा रही थी। सभी गंगा माता की जय बोल रहे थे।
शंकर पार्वती सूक्ष्म शरीर से आकाश मार्ग से उधर होकर निकले। पार्वती ने इतनी भीड़ को एक ही दिन गंगा स्नान के लिए जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया और शंकर जी से इसका कारण पूछा।
शंकर जी ने कहा-आज सोमवती अमावस्या पर्व है। शास्त्रों में इस पर्व का बहुत महात्म्य बताया है, और स्नान करने वाले स्वर्ग जाते है ऐसा लिखा है। इसी कारण हर पर्व पर इतने लोग गंगा स्थान को आते है। पार्वती जी का असमंजस और भी बढ़ गया। उनने कहाँ स्वर्ग से तो हम लोगों का संपर्क निरन्तर रहता है। वहाँ तो थोड़ी जगह है। इतने लोग हर पर्व पर आते है हर साल कई-कई सोमवती अमावस्याएं पड़ती हैं एक वर्ष में ही करोड़ों लोग डुबकी लगाते है। सौ वर्ष में तो उनकी संख्या इतनी हो जायेगी जितनी के लिए वहाँ खड़े होने को भी जगह नहीं है। इसलिए यह महात्म्य गलत मालूम पड़ता है। साथ ही शास्त्र लिखने वाले ऋषि झूठ क्यों बोलेंगे ? यह बात भी समझ में नहीं आती। देव! इस संदेह का निवारण कीजिए।
शिवजी बोले देवि! स्नान के साथ मन को स्वच्छ बनाने की भी शर्त है। उसका पालन यह स्थान करने वाले करते नहीं। ऐसी दशा में वे मेला मनोरंजन भर कर पाते है। उस पुण्य के भागीदार नहीं बनते जो शास्त्रकारों ने स्वर्ग जाने के रूप में कहा है।
पार्वती जी की शंका का निराकरण ने होते देखकर शिवजी ने उन्हें उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वस्तुस्थिति समझाने का प्रयत्न करने की बात सोची। उनने एक नाटक रचा। जिस रास्ते दर्शनार्थी जा रहे थे, उसी से सटकर दोनों वेष बदल कर बैठ गये। शिवजी ने वयोवृद्ध कोढ़ी का रूप बनाया। पार्वती को असाधारण सुन्दरी बनाकर पास में बिठा लिया।
इस विचित्र जोड़े को देखकर दर्शनार्थी पूछते कि आप लोग आपस में कौन है? यहाँ किस प्रयोजन से बैठे है? पूर्व गढन्म के अनुसार पार्वती कहती है यह वृद्ध मेरे पति है। इनकी इच्छा गंगा स्नान की हुई। अंग इनके काम नहीं देते सो इन्हें में अपनी पीठ पर लादकर यात्रा पुरी कर रही हूँ। बहुत थक जाने के कारण हम लोग यहाँ बैठे सुस्ता रहे है। जल्दी ही शेष यात्रा फिर आरम्भ करेंगे। कल ही तो सोमवती अमावस्या है।
पूछने वालों में से अधिकाँश की कुटिल दृष्टि थी। इशारों-शब्दों में उनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने ढंग से एक ही परामर्श दिया कि इस बुड्ढे को गंगा में छोड़ देना चाहिए और रूपसी को उनके साथ चलना चाहिए। उनके लिए हर प्रकार की सुख सुविधा उपलब्ध कराई जायगी, चैन की जिन्दगी कटेगी।
इन परामर्शों को सुनते-सुनते पार्वती हैरान हो गई कि यह कैसे धर्मात्मा लोग है ? वे भी गंगा पर स्नान करने जा रहे है। इनके मन इतने कलुषित है तो धर्माडम्बर रचने से क्या लाभ ? पार्वती जी पूछ बैठी नाथ! क्या सभी धर्माडंबरी ऐसे ही होते है ? इस पर शिवजी बोले हाथ की पाँचों उँगली एक समान नहीं होती। इस भीड़ में कुछ सच्चे लोग भी होते हैं। वह भी तुम्हें देखने को मिलेंगे।
प्रतीक्षा के बाद एक भावुक भक्त उधर आया। ध्यान पूर्वक इन पति-पत्नी की परिस्थिति और मनोदशा परखता रहा। गदगद हो गया। सुन्दरी के पद वन्दन करता हुआ बोला-देवी तुम धन्य हो। तुम्हारी जैसी नारियों की धर्म भावना से यह धरती आकाश अपनी जगह पर स्थित है, मैं कुछ आप लोगों की सेवा करना चाहता हूँ। मेरे पास कुछ सत्तू है। इसे आप लोग भी ग्रहण करें। भूखे होंगे न? इसके बाद इन बुद्ध सज्जन को मैं अपनी पीठ पर बिठा कर गंगा स्थान कराऊँगा। आप कहेंगी तो आपके घर तक भी इन्हें पहुँचा आऊँगा।
शिवजी ने पार्वती से कहा-देखा, इतनी भीड़ में केवल यह आदमी तीर्थ सेवन की गंगा स्नान की शर्तों को पूरी कर रहा था। यही है वह जिसको स्वर्ग जाने का वह प्रतिफल मिलेगा, जिसका प्रतिफल वर्णन गंगा स्नान के संबंध में ऋषि मनीषियों ने किया है।