रन्तिदेव ने लम्बे समय तक तप किया। उसका प्रतिफल तो मिलना था।
जप उससे वर माँगने के लिए कहा गया तो उनने कहा-मेरे लिए कुछ चाहिए । मेरे पुण्य के बदले जितने लोगों के कष्ट दूर किये जा सकें वो कम करा दिये जांय। उन्हें सुखी होते देख ही मैं इतनी प्रसन्नता प्राप्त कर लूँगा कि माना अक्षय भंडार मिल गया।