भय- एक काल्पनिक संकट

June 1988

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आवश्यकता नहीं कि संकट अपने ऊपर से गुजरे, की आदमी को विपत्ति से घिरा हुआ समझे, कष्ट उठाये और प्राण त्यागे। ऐसा भी हो सकता हैं कि स्वाभाविक काल्पनिक भय किसी के ऊपर हावी हो जाँय और उसके प्राण ले ले अथवा वैसी ही मुसीबत में ... जिससे जीवन तबाह होकर रहें।

भूत, पलीतों का भय प्रायः काल्पनिक होता हैं। .... डायन-मनसा भूत”की उक्ति गलत नहीं हैं। काल्पनिक भय से असंख्यों व्यक्ति जान गवाँ बैठे और गल जैसी स्थिति में पहुँच गये।

कभी−कभी ऐसे घटनाक्रमों का स्थायी प्रभाव मन मस्तिष्क पर पड़ता हैं व आजीवन वह अचेतन मन में ... ही रहता है। एक घटना 21 जनवरी .... की है। ... लुहरवेट अपने 8 वर्षीय पुत्र आरमण्ड को .... फ्रांस के सम्राट लुई सोलहवें की हत्या इतनी अदेयतापूर्वक की गई कि वहाँ का नृशंस दृश्य देखकर आरमण्उ बहुत सहम गया। मादाम लुहरवेट अपने बच्चे को लेकर घर लौट आयी और आरमण्ड खेलने लगा। खेलते-खलते उसे वह वीभत्स दृश्य याद आया पर वह बेहोश होकर गिर पड़ा। बेहोश आरमण्ड को अस्पताल ले जाया गया। डाक्टर ने जाँच की और बताया कि बच्चे के मन पर किसी घटना का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है।

आरमण्ड होश में तो आ गया, पर उस घटना का प्रभाव उसके मन मस्तिष्क पर इस बुरी तरह हावी हो गया कि वह सो नहीं सका। एक दिन, दो दिन, सप्ताह, सप्ताह उपचार किया गया। महीनों तक कुलाइजर्स, हिप्नोटाइजर्स (नींद की औषधि) दिये गए, मालिश भी की गई। किन्तु नींद नहीं आई तो नहीं ही आई।

माता-पिता के इस बात की चिन्ता हुई कि उनके बच्चे के स्वास्थ्य पर न सोने के कारण प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। एक दो दिन ही न सोने से मन में उद्विग्न हो उठता हैं। व्यक्ति विक्षिप्त हो जाता है। सामान्य व्यक्ति यदि आठ घण्टे प्रतिदिन नींद न ले तो उसे अपना सामान्य जीवनक्रम भी चलाना कठिन हो जाय। परन्तु आरमण्ड को देखकर यह सारी धारणाएँ निर्मूल सिद्ध हुई।

न सोने के बावजूद भी नियमित रूप से पढ़कर वह वकील बना व .... वर्ष की आयु में ... में स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हुआ। परन्तु अक्सर ऐसा होता था कि उनका अचेतन सचेतन पर हावी हो जाता व वे बैठे-बैठे चीखने लगते थे। जो जानकार थे, उन्हें कारण मालूम था पर जो वास्तविकता से अनभिज्ञ थे, उन्हें सामान्य अवस्था में आने पर भाँति-भाँति के परामर्श देते। यह स्थिति उनकी आजीवन रहीं।

वस्तुतः भय की कल्पना मात्र ही कमजोर मनः स्थिति के व्यक्ति को अकाल मृत्यु का ग्रास बना देती हैं। एक प्रयोग जो मनोवैज्ञानिकों ने इस सम्बन्ध में किया था, विगत शताब्दी में बहुत चर्चित रहा। एक व्यक्ति को फाँसी की सजा हुई थी। चिकित्सक उसे अदालत से अनुमति लेकर प्रयोग हेतु अस्पताल लाये। उसकी आँखों पर पट्टी बाँध कर मेज पर सुला दिया गया, गरदन पर एक पिन चुभोकर वहीं से नली द्वारा पानी छोड़ना शुरू किया जो नीचे टपक-टपक कर गिरता रहा। डाक्टर आपस में चर्चा करते रहें कि काफी खून निकल गया। अब तक तो इसे मर जाना चाहिए था। उस व्यक्ति को विश्वास हो गया कि उसकी खून की नली काट दी गयी हैं और वह मर गया। शरीर से मात्र दस बूँद खून निकलने के बावजूद वह मात्र भय की प्रतिक्रिया वश मृत्यु को प्राप्त हो गया। यह आत्म सम्मोहन की प्रक्रिया हैं जो व्यक्ति के अचेतन पर हावी होकर आशंका को सत्य में बदल देती है। हमारे रोजमर्रा के जीवन पर यह तथ्य सतत् चरितार्थ होता रहता हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118