चार ब्राह्मण सगे भाई थे। पर रहा अलग-अलग थे। एक यजमान ने एक गाय दान दी और कहा-चारों इसका मिलजुल कर पालन करें और दूध पियें।
पहली पारी वाले ने दूध तो दुह लिया पर चारे दाने की व्यवस्था दूसरे दिन वाले के जिम्मे छोड़ दी। दूसरे ने भी यही किया। तीसरे ने भी यही, चौथे ने भी ऐसा ही सोचा और वही किया।
गाय का दूध दिन-दिन घटता गया। भूख प्यास से वह दुर्बल होती गईं। चौथे दिन इतनी अशक्त थी दूध देना तो दूर उठना तक कठिन हो गया। अन्ततः वह एक दिन बाद मर ही गई।
चारों दूध से वंचित रहने पर दुःखी थे पर किसी को यह न सूझा कि अधिकार के साथ कर्त्तव्य भी जुड़ा हुआ है।