किसी तपस्वी की साधना से प्रसन्न होकर देवता ने वरदान माँगने के लिए कहा।
तपस्वी ने माँगा कि उसकी छाया जहाँ भी पड़े वहाँ कल्याण होता रहें, सुख-शाँति बरसती रहें।
ऐसा ही हुआ। तपस्वी तब चलते जब छाया पीछे रहती। कल्याण होने का लाभ तो सब उठाते पर यह जान न पाये कि किसकी कृपा से यह अनुदान मिला।
पीछे छाया रख कर चलने का कारण जब तपस्वी से पूछा गया तो उसने कहा मैं न तो किसी पर अपना उपकार जताना चाहता हूँ और न वरदानी होने का यश बटोरना चाहता हूँ। ऐसा करने पर तो मेरी साधना और वरदान का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा।