यदेवेह तदमुत्र यदमुत्र तदन्विह

June 1988

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परमसत्ता ने इस निखिल ब्रह्माण्ड में एक सुनिश्चित आचार संहिता लागू कर रखी हैं। जब भी कोई उसकी व्यवस्था में व्यतिक्रम पैदा करता हैं, कोई न कोई समर्थ प्रतिपक्षी तैयार होता व उसे ऐसा करने से रोकता हैं। यह एक स्वचालित प्रक्रिया हैं जो निरंकुशता पर अंकुश लगाती हैं। खगोल जगत के क्रियाकलाप इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

विराट् ब्रह्मांड में यो तो प्रत्यक्षतः शाँति एवं स्थिरता बनी रहती है, किन्तु “ब्लैक होल” की उपस्थिति इस संतुलन को गड़बड़ाने का सदा प्रयास करती रहती हैं। जब तक वह सामाय सा तारा बना रहता हैं। उसके क्रियाकलाप सौम्य होते है। किंतु जैसे ही वह “ब्लैक होल बनता हैं, अपनी अपरिचित शक्ति के मद में आकर आतंक फैलाना चालू कर देता हैं।

बिल्ली, शेर और चीते को जब शिकार करना होता हैं, तो वे छुपकर घात लगाते हैं। किसी झाड़ी की ओट में छिपकर शिकार के सामने आते ही वे उस पर टूट पड़ते हैं व अपनी क्षुधा मिटाते है। “ब्लैक होल” की प्रवृत्ति भी लगभग ऐसी ही हैं। अनजाने में रास्ता भटक कर जब कोई खगोलीय पिण्ड उस ओर निकल पड़ता हैं तो उसकी भी ऐसी ही दुर्गति होती हैं। श्याम .... तत्क्षण निगल जाता हैं। वैज्ञानिकों का कहना हैं कि यदि कोई स्पेश शूट में तैरता अंतरिक्ष यात्री असावधानीवश “ब्लैक हाँल” के निकट पहुँच जाय तो उसके उच्चतम गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सर्वप्रथम वह लम्बे-पतले तारों की शक्ल में खिंच जायेगा। इसके बाद .... उसे अपने विशाल उदर में खींचकर सूक्ष्म कणों के रूप में उसकी अन्तिम क्रिया करेगा और पचा लेगा। इसकी वह दानवी क्रिया बड़ी ही सुनियोजित और योजनाबद्ध ढंग से होती है। जिस प्रकार आक्रमण से पूर्विहंसक जन्तु घात लगाते और छिपकर बैठते है उसी प्रकार यह आकाशीय दानव भी करता हैं। अन्तर सिर्फ इतना है कि शिकार के बाद हिंस्र पशुओं को छिपने-छिपाने की आवश्यकता नहीं पड़ती पर यह महादानव सदा दूसरों की आँखों से अदृश्य रहता और शिकार को भ्रमित कर उसे अपने चंगुल में फँसाता है। पेटू भी इतना कि चाहे जितना खा जाय, कोई अन्तर नहीं पड़ता। एक बार जो इसकी शक्तिशाली गिरफ्त में आ जाता है, तो फिर वह किसी भी प्रकार नहीं बच पाता, सदा-सदा के लिए उसके उदर में समा जाता है। राक्षसों जैसे इसके मजबूत और विशाल पंजे भी होते हैं। खगोलज्ञों ने इनका नाम “स्वार्ज्सचाइल्ड रेडियस” अथवा “इवेण्ट हराइजन” रखा है। यदि शिकार शक्तिशाली हैं और इसके पंजों से मुक्त होने की सामर्थ्य रखता हैं, तो निश्चय ही वह इससे छूट कर भाग सकता हैं, किन्तु संघर्ष में यदि व पिछड़ गया और किसी प्रकार इसके जबड़े की पकड़ में आ गया, तो फिर वह किसी को भी नहीं छोड़ता उसे उदरस्थ कर ही लेता हैं, भले ही दुर्भाग्यग्रस्त वस्तु या पिण्ड कितना ही शक्तिशाली क्यों न हों ? मूर्धन्य ब्रिटिश भौतिकविद् एवं विद्वान गणितज्ञ प्रो0 जान टेलर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “ब्लैक होल, दि एण्ड ऑफ दि यूनिवर्स” में किसी ऐसे स्पेशशीप के भाग्य के बारे में कई संभावनाओं का उल्लेख किया हैं, जो उसके गर्भ में समा चुक हैं। इनमें से एक संभावना के अनुसार श्याम विहार की एक लम्बी पतली गर्दन होती हैं, जो किसी अन्य ब्रह्माण्ड में जाकर निकलेगा। वे कहते है कि इस वक्त तक यदि यान यात्री किसी प्रकार जीवित भी बचे रहे, तो भी वे अपनी इस विलक्षण अनुभूति से हमें अवगत नहीं करा सकेंगे, क्योंकि पृथ्वी वासियों से संपर्क-सूत्र स्थापित करने में वे सदा विफल रहेंगे। ऐसी स्थिति में उनका प्रयास पुनः अपने यान को ब्लैक होल के भीतर प्रवेश कराने का होगा। इस आशा में कि शायद वे इस प्रक्रिया के दौरान पुनः अपने ब्रह्माण्ड में निकल सकें, पर वास्तविकता यह होगी कि इस तरह के प्रत्येक प्रयास के बाद वे हमेशा किसी नूतन ब्रह्माण्ड में पहुँच जायेंगे और अपने मूल ब्रह्माण्ड में वापस लौटने का उनका सपना कदापि पूरा न हो सकेगा।

प्रो0 टेलर अपनी उक्त पुस्तक में आगे लिखते है कि यद्यपि हमारी मंदाकिनी में ऐसा एक ही ब्लैक होल हैं, पर वह एक ही महादानव हम सब के लिए सर्वनाश उपस्थित कर सकता हैं। वे निराशा से अपना मन्तव्य व्यक्त करते हुए लिखते है कि निश्चय ही हम सब उसके द्वारा एक न एक दिन निगल लिए और बेमौत मारे जायेंगे। प्रो0 टेलर की यह संभावना कल्पनाओं और सिद्धांतों पर आधारित हैं। यथार्थता तो यह है कि उसके भीतर किस प्रकार की प्रक्रिया चलती हैं। और निगले गये पिण्ड का भाग्य क्या होता हैं ? इसे अब तक जाना नहीं जा सका है।

अब प्रश्न यह है कि आखिर यह ब्रह्माण्ड पिण्ड इतना आक्रामक कैसे बन जाता हैं ? और क्यों वह अपनी ही बिरादरी के सदस्यों को अपना ग्रास बनाने पर उतारू रहता है ? इसका भी अपना एक इतिहास है। सूर्य से भी अनेकों गुने बड़े तोर जब प्रकृति की मार से सुपरनोवा विस्फोट के माध्यम से टूट कर बिखर जाते हैं तो उनका चूरा फिर से एकत्रित-संगठित होकर प्रत्याक्रमण के भाव से पहले से कही मजबूत हाइट ड्वार्फ का निर्माण होता है, मगर इसकी शक्ति बढ़ जाती है। इस शक्ति का अन्दाज इसी से लगाया जा सकता हैं कि इसकी एक माचिस की डिबिया जितनी मिट्टी का भार 10 हजार किलोग्राम या एक डबल डेकर बस जितना होता हैं। इतने पर भी इसका संकुच थमता नहीं, जारी रहता है और अन्त में वह 10 मील त्रिज्या जितना रह जाता हैं। इस स्थिति में यह “यूटूँनस्टार” कहलाता हैं। इसकी शक्ति ह्राइट ड्वार्फ से भी बढ़ी चढ़ी होती है। इसका एक माचिस डिबिया जितना पदार्थ .... किलो ग्राम (20 खरब किलोग्राम) अथवा .... लाख (2 अरब लाख) डबल डेकर बस के भार के बराबर होता हैं। इस वक्त तक इसकी आन्तरिक शक्ति (गुरुत्वाकर्षण बल) इतनी बढ़-चढ़ जाती हैं कि वह स्वयं भी अपना बल बर्दाश्त नहीं कर पाता और निरन्तर घटता-घटता छोटा होकर अदृश्य मगर खूँख्वार बन जाता है। महादानव ब्लैक होल के नाम से जाना जाता हैं। इसका आकार जितना छोटा होता हैं, उतनी ही विनाशक इसकी शक्ति होती है। खगोलज्ञों के अनुसार इस महाकाश में ऐसे अनेकानेक महादैत्य हैं, जो आकार-प्रकार में छोटे होते हुए भी अपनी आसुरी वृत्ति से तनिक भी बाज नहीं आते और सदा प्रत्याक्रमण की ताक में लगे रहते है।

पृथ्वी पर भी फलोरिडा वारमूडा और कोस्टारिका के बीच एटलाण्टिक महासागर में वारमूडा त्रिकोण के रूप में ऐसा ही एक ब्लैक होल हैं, जो अपने अस्तित्व में आने के समय से लेकर अब तक न जाने कितने जलयानों वायुयानों को निगल चुका हैं। अब से कोई पाँच वर्ष पूर्व की घटना है। हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता पीटर सेलर्स एक बार अपना विमान उड़ाते -उड़ाते भटक गये और अमेरिका के पूर्वी तट पर स्थित इस रहस्यमय त्रिकोण में आ फंसे। उनका संपर्क यकायक कन्ट्रोल टावर से टूट गया। सारे यंत्र उपकरणों ने काम करना बंद कर दिया। वायुयान नियंत्रण से बाहर जाने लगा। उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा मानो जहाज किसी अदृश्य शक्ति के चंगुल में फँस कर खिंचा चला जा रहा हो। यान बड़ी तेजी से समुद्र की ओर नीचे गिरने लगा। वह घबरा उठे, किन्तु तभी उन्हें भारत भ्रमण के दौरान एक भारती योगी द्वारा सिखाये गए गायत्री मंत्र का स्मरण हो आया। वे मन .... उसका उच्चारण करते रहें और विमान पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश करने लगे। देखते-देखते उनका विमान उस जानलेवा त्रिभुज से सुरक्षित बाहर निकल आया एवं वे उसका ग्रास बनते-बनते बचे। इसका विवरण अमेरिका के तत्कालीन प्रमुख समाचार पत्रों में विस्तारपूर्वक छपा था।

महाभारत के ... पर्व के अंतर्गत तीर्थ-यात्रा पर्व के एक सो बत्तीस अध्याय में कोहड़ मुनि और अष्टावक्र की कथा आती हैं। शास्त्रार्थ में पराजित होने के कारण मुनि कोहड़ को जल समाधि दे दी गई थी। बाद में मुनि पुत्र .... ने अपने पिता के अपराधी पण्डित बन्दी को पराजित कर उसे भी समुद्र में डुबाने की सजा दी, तो वरुण पुत्र बन्दी ने क्षमा याचना सहित कहा कि पण्डितों को जान से मार डालने का मेरा तनिक भी इरादा नहीं है। वस्तुतः मेरे पिता के राज्य में विशाल यज्ञ हो रहा है। यहाँ से विद्वान पण्डितों को चुन-चुन कर मैं वही भेज रहा था। शास्त्रार्थ में हराकर जल में डुबोना तो एक निमित्त मात्र था। अब यज्ञ समाप्ति पर है और सभी ब्राह्मण लौटने ही वाले है। कुछ समय पश्चात् समस्त ऋषिगण सामने से आते दिखाई पड़े। इनमें कोहड़ भी थे।

संभव है, उन्हें किसी समुद्री ब्लैक होल के माध्यम से वरुण लोक भेजा गया हो और ज्ञान-विज्ञान के चरमोत्कर्ष के उस युग में वे कोई ऐसी रहस्यमय विद्या जानते हो, जिसके कारण उसके चंगुल से उनका सकुशल पृथ्वी लोक में पुनः वापस लौट सकना शक्य हो सका, अन्यथा वे भी उसके गर्भ में समा कर अपनी जान गँवा चुके होते।

वैज्ञानिकों ने अब प्रतिकण और प्रतिपदार्थ की खोज कर ली है। जिनकी प्रकृति कण और पदार्थ से नितान्त विपरीत है। इनकी प्रथम कल्पना करने वाले अंग्रेज वैज्ञानिक डिराक का कथन है कि इस विश्व-ब्रह्माण्ड में प्रत्येक वस्तु की प्रतिवस्तु विद्यमान है। यह बात दूसरी है कि इनमें से अधिकाँश का पता अभी नहीं लगाया जा सका है। हर क्रिया की प्रतिक्रिया और ध्वनि की प्रतिध्वनि सर्वविदित है। इस आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि एण्टी पार्टिकल ..... मैटर का अस्तित्व है तो निश्चय ही इनसे और एण्टी .... यूनिवर्स भी होगा, जिसकी शक्तियाँ यूनिवर्स से कही अधिक बढ़ी-चढ़ी होंगी। जब यह संभव है तो इस आधार पर यह संभावना बनती है कि “ब्लैकहोल” का भी कोई “एण्टी ब्लैकहोल” होना चाहिए, भले ही इसकी खोज अब तक नहीं हो पायी हो, पर हो सकता है कि निकट भविष्य में इसका पता लगाया जा सके। यदि यह अस्तित्व में हुआ, तो इसका स्वभाव भी ब्लैक होल से बिलकुल विपरीत होगा और प्रतिपक्षी होने के नाते क्षमता में वह इससे कहीं अधिक सामर्थ्यवान होगा। इस स्थिति में वह श्याम बिवर को निगलेगा तो नहीं, पर उठा कर उसे इस प्रकार फेंकेगा, ऐसी पटक लगायेगा कि शायद उसका अस्तित्व ही न रहें। आततायियों की जो दुर्गति होती है, वैसी ही दुर्गति उसकी भी होगी।

परमसत्ता की यह व्यवस्था सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है। जीव जगत भी इसका अपवाद नहीं। अफ्रीका के जंगलों में खरगोश और एक जन्तु पाया जाता है। जब यह पागल होता है, तो अपने प्रेम सद्भाव को त्याग कर मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। अपनी ही जाति के सदस्यों को समाप्त करने लगता है। ऐसी स्थिति में उस समुदाय के जन्तु उसका आतंक समाप्त करने के लिए एकत्रित संगठित होते व उसका अन्त कर डालते है। शेर जब नरभक्षी बनता और पागल होकर हाथी उत्पात मचाना आरंभ करता है, तो उनके भी मौत के दिन निकट समझे जाते है।

परमसत्ता की यह व्यवस्था सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है। जीव जगत भी इसका अपवाद नहीं। अफ्रीका के जंगलों में खरगोश और एक जन्तु पाया जाता है। जब यह पागल होता है, तो अपने प्रेम सद्भाव को त्याग कर मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। अपनी ही जाति के सदस्यों को समाप्त करने लगता है। ऐसी स्थिति में उस समुदाय के जन्तु उसका आतंक समाप्त करने के लिए एकत्रित संगठित होते व उसका अन्त कर डालते है। शेर जब नरभक्षी बनता और पागल होकर हाथी उत्पात मचाना आरंभ करता है, तो उनके भी मौत के दिन निकट समझे जाते है।

ताड़का, सुबाहु, मारीच को, हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष को अपनी करनी के बदले दुर्गति मिली। रावण-कंस की नीति अनीति उनके समूल नाश का कारण बनी। वृत्रासुर का अहंकार बढ़ने व भस्मासुर के अनैतिक मार्ग पर चलने पर वे नाश को प्राप्त हुए। वस्तुतः वह परमसत्ता न्यायाधीश की तरह से ही व्यवहार करती है। खगोल जगत का “ब्लैकहोल” भी उससे अछूता नहीं है। हम निरंकुशता की ओर बढ़ने न पायें, व्यवस्था में कही हस्तक्षेप न कर बैठे, इसे रोकने के लिए सृष्टा ने कितनी सुन्दर व्यवस्था बनाई है।


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