तनाव मिटाइये-शिथिलीकरण द्वारा

June 1988

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शिथिलीकरण मुद्रा या श्वसन में समस्त शरीर को उसके अंग प्रत्यंग को शिथिल करना पड़ता है, मानों वह गहरी निद्रा में चला गया हो। साथ में मन को भी इस स्थिति में ले जाना पड़ता है मानों क्लोरोफार्म जैसी वस्तु सूँघ-सुध खो बैठा हो।

स्वाभाविक तौर पर ऐसी स्थिति गहरी निद्रा में ही बनती हैं। सभी जानते है कि गहरी नींद आजाने पर थकान दूर होती और ताजगी आती है। रात को थककर चूर हुआ व्यक्ति जब रात भर गहरी नींद सो लेता है तो सबेरे उठते ही ऐसी स्फूर्ति प्रसन्नता और ताजगी का अनुभव होता है, मानों कोई बहुमूल्य टानिक लिया है। नया काम हाथ में लेने की उमंगे उठने लगती है। प्रकृति का कितना अनुग्रह है कि हम अनेकों कारणों से शारीरिक और मानसिक थकान आमंत्रित करते है और उसकी पूर्ति प्रकृति अपने ढंग से इस प्रकार कर देती है कि उसके लिए हमें कोई विशेष प्रयत्न या खर्च नहीं करना पड़ता।

कभी-कभी ऐसा होता है कि शरीर या मन इतना अधिक अस्त-व्यस्त या उत्तेजित होता है कि उसके सामने प्रकृति प्रेरणा उतना काम नहीं कर पाती जितना कि उसे करना चाहिए। ऐसी दशा में या तो नींद आती ही नहीं या इतनी हल्की उथली आती है उसका प्रभाव .... जितना होता है और थकान मिटने का सुयोग बन नहीं पाता। ऐसी दशा में लोग आमतौर से नशीली वस्तुएँ लेते है। कैमिस्टों की दुकानों पर ऐसी वस्तुएँ विभिन्न नामों और रूपों के ट्रंकोलाइजरों के रूप में बिकती है। उन्हीं का सेवन करते है। उनके कारण खुमारी भर आती है। मनुष्य सुध-बुध भर भूलता है पर उसकी ताजगी का लाभ नहीं ले पाता जो स्वाभाविक रूप से आने वाली गहरी नींद द्वारा मिलती है। फिर एक कठिनाई और भी है टं्रकोलाइजर आदत का अंग बनते जाते हैं। उनका प्रभाव घटता जाता है। अधिक मात्रा लेने की जरूरत पड़ती है। इतना ही नहीं उनके अन्य रूप में दुष्प्रभाव साइड एफेक्ट भी उभरते है। उन कारणों में शरीर नई व्याधियों से ग्रसित होता है।

इस स्थिति में सरल उपाय शिथिलीकरण मुद्रा के अभ्यास का है। इसमें प्रधानतया मनोबल का उपयोग करना पड़ता है। अपने आपको स्वसंकेत देने पड़ते है कि हम गहरी निद्रा में जा रहे है। अंग शिथिल हो रहे है ओर मन में भाग दौड़ सर्वथा बन्द कर दी। उसकी सब प्रकार की भली बुरी कल्पनाओं से छुटकारा पा लिया।

आरम्भ में मन इस परामर्श को मानने में आना कानी करता है। पर पीछे लगातार प्रयत्न पर कुछ दिन में वह प्रशिक्षित हो जाता है और आज्ञानुसार काम करने लगता है। जब हिंस्र पशु सरकसों में आशातीत विचित्र कार्य करने के लिए रिंग मास्टरों द्वारा प्रशिक्षित कर लिए जाते है तो कोई कारण नहीं कि अपना शरीर अपना मस्तिष्क सदा अपने निर्देशनों की अवज्ञा ही करता रहे।

नेपोलियन और क्लाइव में यह विशेषता पाई जाती थी कि वे हफ्तों घोड़े पर सवार रह कर युद्ध मोर्चे पर जागते रहते थे। थकान मिटाने के लिए इतना भर करते थे कि घोड़े को किसी पेड़ से सटाकर सवारी की स्थिति में ही पेड़ के सहारे थोड़ी देर गहरी नींद ले लेते थे। बस इतने भर से उनका काम चल जाता था और फिर नये उत्साह से काम में जुट जाते थे। ऐसा अभ्यास दूसरे लोग भी कर सकते है। अभ्यास ही विधा एक ही है शिथिलीकरण।

अभ्यास के आरम्भिक दिनों कोलाहल रहित स्थान पर चारपाई पर लेट जाना चाहिए और अनुभव करना चाहिए कि शरीर सर्वथा भार रहित स्थिति में है। वह रुई जैसा हल्का हो गया। सारा वजन चारपाई पर चला गया।

मन को शाँत करने के लिए एक कल्पना चित्र बहुत ही कारगर है। संसार में कही कोई व्यक्ति मकान, पदार्थ, प्राणी नहीं रहा। न उनसे संबंधित काई समस्या, विचारणा शेष रही। सर्वत्र प्रलय काल जैसी अथाह जल राशि भरी हुई है। उसमें हम मात्र अकेले है। छोटे बालक की तरह पत्ते की नाव पर पड़े हुए धीमे-धीमे हवा के साथ किसी अज्ञात दिशा में बहते जा रहे है। कहीं कोई अवरोध नहीं। न कोई समस्या और न उसके संबंध में विचारणीय प्रसंग।

इस प्रकार के प्रलय काल वाले चित्र तस्वीर वालों की दुकानों पर भी बिकते है जिसमें भगवान को जल में पत्ते के ऊपर पड़ा हुआ और पैर का अँगूठा चूसते हुए दिखाया गया है। कल्पना को ठीक तरह जमाने में यह चित्र एक आधार की तरह सहायक सिद्ध हो सकता है।

अपनी मृत्यु की कल्पना यदि डरावनी न लगे तो वह भी कारगर सिद्ध हो सकती है। कल्पना करनी चाहिए कि शरीर और मन मूल अवस्था में शान्त निःचेष्ट पड़े है। हमारा प्राण उसमें से निकल गया और परलोक में ऐसी व्यवस्था हो गई कि जिन्दगी भर की थकान दूर करने के लिए लम्बी अवधि तक एक मुलायम पंडाल पर ऐसे वातावरण में सोने को मिल गया-जहाँ सर्दी, गर्मी, मक्खी, मच्छर आदि का कोई व्यवधान नहीं है। जो चिंताएं, समस्याएँ, जिम्मेदारियाँ सिर पर थी वे मरे हुए शरीर के साथ हजारों मील नीचे रह गई और हम उस स्थिति में बहुत ऊँचे उठकर सर्वत्र नये वातावरण में आ गये।

युवावस्था में कठोर श्रम करने के बाद तुरंत नींद आ जाती है पर वृद्धावस्था में ठीक उसका उल्टा होता है। बूढ़े लोग थकान से कराहते और नींद न आने की शिकायत करते है। ऐसी अवस्था में गरम पानी की बाल्टी में पैर रखकर बैठना और फिर पैर पोंछ कर सो जाना लाभदायक पड़ता है। किन्हीं-किन्हीं को किसी गम्भीर विषय की किताब पढ़ते-पढ़ते नींद आ जाती हैं सिर और पैरों की मालिश मन ही मन करा लेना या उस प्रकार की भावना करने लगने से भी राहत मिलती है।

मानसिक चिन्ताएँ घाटा, अपमान, मुकदमा, आशंका, भय, निराशा जैसे विचार, मानसिक तनाव उत्पन्न करते है। तनाव की स्थिति में नींद उड़ जाती है और तब थकान का दूना अनुभव होता है। ऐसी स्थिति में कोई मनोरंजन, किस्से कहानी कहने या सुनने लगना विचारों का केन्द्र बिन्दु बदल देता और नींद आने लगती है। टेपरिकार्डर पर किसी वादन की मोहक ध्वनि सुनने पर ध्यान बट जाता और नींद आने लगती है। जो थकान मिटाने का प्रधान आधार है। थकान और अनिद्रा का घनिष्ठ संबंध है। खासतौर से मानसिक तनाव इस संदर्भ में विशेष रूप से बाधक होता है। इन परिस्थितियों में सिर पर छाये हुए विचारों से मुक्ति पाने के लिए कोई रोचक प्रसंग याद करने लगना ठीक पड़ता है।

शरीर की थकान गुम-सुम पड़ जाने और चुप्पी साध लेने से कुछ देर में नींद आने पर उतर जाती है। किन्तु मानसिक उलझनों का जंजाल ऐसा बुरा है जो थकान न होने पर भी नींद में विक्षेप डालता और थकान बढ़ाता है। ऐसी दशा में चिन्तन का जो उद्विग्न करने वाला प्रवाह चल रहा हो उसे उलट देने वाले दूसरे हल्की फुलकी विचारधारा का आश्रय लेना ही उपयुक्त है।

सर्दी, गर्मी, मच्छर, खटमल, जूँ आदि के कारण नींद न आ रही हो तो स्थान और बिस्तर बदल देना चाहिए। मानसिक, राम नाम जपने लगना भी नींद बुलाने का एक तरीका है।

सर्दी, गर्मी, मच्छर, खटमल, जूँ आदि के कारण नींद न आ रही हो तो स्थान और बिस्तर बदल देना चाहिए। मानसिक, राम नाम जपने लगना भी नींद बुलाने का एक तरीका है।


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