क्रूरता को जीतिये, स्नेहमय सद्भाव से

June 1988

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बाहुबल और साधन शक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्तियों को जितना प्रभावित किया जा सकता हैं, उससे असंख्य गुना अधिक स्नेह-सद्भाव से प्रभावित किया जा सकता हैं उन्हें वशवर्ती बनाया जा सकता है। उसका कारण यही हैं कि सारा संसार और उसका एक-एक घटक संघर्ष व टकराव के आधार पर नहीं, सद्भाव और घनिष्ठता के आधार पर ही परस्पर सुसम्बद्ध सुसंचालित है।

सद्भावनाओं को बढ़ाकर स्नेह और आत्मीयता का क्षेत्र विकसित कर दूसरों को प्रभावित करने में जितनी सफलता पाई गयी हैं उतनी संघर्ष, शक्ति प्रयोग और आक्रमण द्वारा कहीं भी नहीं मिली है। आत्मीयता और सौजन्य, करुणा और वात्सल्य के आगे मनुष्य को क्रूरता छोड़ने और साधु प्रकृति का बनने के उदाहरण नारद और बुद्ध के समय से चले आ रहें है। कितने ही दुर्दान्त-क्रूर और हत्यारे व्यक्ति आज भी सद्भाव सम्पन्न आत्माओं के संपर्क में आकर अपना स्वभाव बदलते देखे सुने जाते हैं। स्नेह सद्भाव अर्थात् प्रेमपूर्ण अन्तःकरण का प्रभाव केवल मनुष्यों पर ही नहीं पशु पक्षियों पर भी पड़ता है। मनुष्य चाहे तो हिंस्र पशुओं को भी अपने बच्चों के समान प्रिय बना सकता है।

विजय प्रेम की होती हैं- घृणा की नहीं। जीत करुणा की सद्भावना की होती हैं। हिंसा या क्रूरता की नहीं। .... का विश्लेषण और उनके सही गलत होने का इन तथ्यों .... आधार पर नहीं किया जा सकता वरन् निर्णय तर्क के .... कुछ साहसी और सद्भाव सम्पन्न व्यक्तियों ने इस तरह के प्रयोग किये भी हैं कि क्या जन्मजात हिंसक प्रवृत्ति के क्रूर स्वभाव वाले पशुओं को ... सद्भाव के द्वारा वशवर्ती किया तथा इस शक्ति के आधार पर उन्हें सौम्य प्रकृति का बनाया जा सकता हैं ? क्या कोई प्राणी अपने मूल स्वभाव को छोड़कर स्नेह तथा सौजन्य से प्रभावित हो सकता हैं ? और अपने आप को तद्नुरूप बदल सकता हैं। इस तरह के परीक्षणों से जो निष्कर्ष सामने आये हैं उनसे यही सिद्ध होता हैं कि प्रेम तथा आत्मीयता की अपनी विशिष्ट शक्ति है और उसके द्वारा क्रूर से क्रूर हिंसक स्वभाव को भी बदला जा सकता हैं। क्रूरता और हिंसा पर प्रेम से विजय प्राप्त की जा सकता है।

इस तथ्य को प्रतिपादित करने में एक .... महिला सबसे अग्रणी रहीं है। अफ्रीका के तंज़ानिया क्षेत्र में उसने प्रायः एक दर्जन शेल पाले थे और उन्हें कुत्तों की तरह आज्ञाकारी बना लिया था। लंदन में ऐसा हो अद्भुत उदाहरण एक व्यक्ति ने प्रस्तुत किया और सिंह का वैसा ही दुलार प्राप्त किया जैसा बच्चे अपने अभिभावकों को प्रदान करते है। आत्मीयता गहरी होने पर इन खूंख्वार जानवरों को भी अपने पालकों का वैसा ही स्नेह-दुलार चाहिए जैसे मनुष्य अपने बच्चे को देता है। कुछ बच्चे तब तक नहीं सोते जब तक उन्हें माता की ममता पूरी थपथपी या मधुर लोरियाँ सुनने को न मिल जांय। कुछ ऐसी ही आदत टावर ऑफ लन्दन के एक पालतू शेर की थी। वह तब तक सोता नहीं था जब तक कि उसका संरक्षक अपनी गोदी में उसका सिर रख कर सुलाता नहीं था।

पूर्वी अफ्रिका के तंजानिया प्रान्त स्थित सिरेनगेटी अभयारण्य काफी विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है, जिस की देखभाल की जिम्मेदारी हालैण्ड निवासी वरिष्ठ अभियंता जार्ज पर है। जंगल में भ्रमण करते हुए एक दिन उनका सामना एक आदमखोर-शेरनी से हो गया, जिसने उनके एक नौकर को चबा डाला था। इसके पूर्व भी उस नरभक्षी ने कई व्यक्तियों को अपना शिकार बनाया था। अतः जार्ज ने उसे मार डालना ही उचित समझा क्योंकि कहा जाता हैं कि यदि शेर को एक बार मानस-माँस भक्षण को मिल जाय ता वह नरभक्षी अवश्य बन जाता हैं। जैसे ही वह शेरनी का काम-तमाम कर आगे बढ़े कि कुछ दूर

पर एक गुफा से बाहर झाँकते हुए अपने माँ की प्रतीक्षा करते तीन सिंह शावक दिखाई दिये।

जार्ज को वस्तुस्थिति समझते देर नहीं लगी और उन्हें उठाकर वह अपने घर लाये। शावक अभी छोटे ही थे अतः किसी प्रकार दूध पिलाकर पोसा और बड़ा किया। जार्ज की पत्नी श्रीमती जाय एडमसन ने इस कार्य में बढ़−चढ़ कर सहयोग दिया और अपनी ममता भरी दृष्टि से उन बच्चों की देखभाल उसी तरह करती रहीं जिस प्रकार अपने बच्चों को प्यार दुलार किया जाता हैं। इस स्नेह सद्भाव का प्रभाव यह हुआ कि वह जहाँ भी जाती तीनों सिंह शावक पालतू बिल्ली की तरह उनके आगे पीछे घूमते रहते। बाद में दो बच्चे हालैण्ड के चिड़ियाघर को सौंप दिये गये और एक मादा बच्चे को उन्होंने अपने पास रख लिया और उसका नाम रखा-एल्सा। श्रीमती एडमसन का उसे पशुवत् नहीं वरन् पुत्रीवत् लाड़-प्यार मिलने लगा। नहलाने-धुलाने से लेकर खिलाने-पिलाने तक उसकी खूब देख-भाल की जाती। लाड़ में आकर कभी एल्सा अपने पालनहार की गोद में सिर रखकर लेटी रहती तो कभी प्यार पाकर स्वयं एडमसन का तकिया बनकर पड़ी रहती। यह स्नेह सद्भाव का ही चमत्कार था कि सिंह की प्राकृतिक क्रूरता इस तरह मृदुल हो गई कि उसके परम्परागत आक्रमणकारी स्वभाव में ममता और आत्मीयता के गहरे अंकुर जग गये और उसकी भयंकरता जाती रहीं। एल्सा माँस तो खाती परन्तु उसे शिकार करना नहीं आता था। अतः जार्ज के निवास स्थान के आस पास कितने ही वन्य पशु-पक्षी-जैसे जिराफ, हिरन, खरगोश, मुर्गे, तीतर आदि बेखटके निर्भय होकर विचरते घूमते किन्तु एल्सा उनमें से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाती। जार्ज सम्पत्ति के वह अब इशारे समझने लगी थी अतः उठने, बैठने, चले जाने की बात वह संकेतों से समझ लेती और तद्नुरूप व्यवहार करती। उसे जंजीर में बाँधकर पालतू कुत्ते की तरह वे घुमाने भी ले जाते।

युवा होने पर उसे जंगल में छोड़ दिया गया जहाँ उसे एक साथी मिल गया और वह गर्भिणी बनी। अब वह स्वतंत्र थी फिर भी अपने संरक्षकों को भूली नहीं थी-देर-सबेर अवश्य आती रहती। उसका साथी सिंह दूर बैठा रहता और एल्सा। जाय एडमसन से मिलकर और उन्हें सूँघ चाटकर अपना प्यार-उपकार जताती और फिर .... में चली जाती। कुछ दिनों बाद अपने दो शावकों को लेकर वह अपने पुराने घर को लौटी। देखने वालों ने भी आश्चर्य किया कि अनभिज्ञ बच्चे भी जाय एडमसन से उसी तरह घुल मिल गये जैसे मानव शिशु अपनी नानी से हिल मिल जाते हैं।

जर्ज दम्पत्ति ने यह प्रमाणित कर दिखाया कि स्नेह सद्भावना और आत्मीयता के सहारे पराये तो क्या हिंसक पशु भी अपने बनाये जा सकते है और उनकी क्रूरता छुड़ाई जा सकती हैं। एडमसन और जार्ज के इस तरह वन्य जीवों के प्रति प्रेम और वात्सल्य प्रदर्शन की सर्वत्र सराहना की गई।

इसी तरह वन्य “पशुविशेषज्ञ” डेस्माण्ड बैकले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक गारा याका में उस मादा चीता का वर्णन किया हैं। जिसे उन्होंने एक झाड़ी में .... और अपनी बेटी की तरह पाला था। उनका .... जाय एडमसन एवं जार्ज के उक्त परीक्षण की श्रृंखला में आता हैं। ऐसा ही एक प्रयोग .... नामक महिला का हैं जिसने हिंस्र पशुओं को स्नेहिल प्रकृति का बनाने में आश्चर्यजनक सफलता पाई।

समस्त प्राणियों में वस्तुतः एक ही सर्वव्यापी चेतना कार्य करती हैं सद्भाव-स्नेह, सहयोग आदि उसके विभिन्न रूप है। यदि इन्हें ठीक प्रकार प्रयोग किया जा सके तो बर्बरता को सौजन्य के सम्मुख नतमस्तक ही होना पड़ेगा। स्नेह और विश्वास की आत्मीयता और निर्भयता की शक्ति अपरिमित हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118