अपनों से अपनी बातें आधी जन-शक्ति का पुनरुत्थान

June 1988

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अखण्ड-ज्योति के प्रतिपादन का महत्व केवल उसे व समझ भर लेने में समाप्त नहीं हो जाता, वरन् उसकी सार्थकता इसमें है कि अपनी स्थिति के अनुरूप सुझाये गये निर्धारणों में से कुछ को तो कार्यान्वित करने ही लग .... जाँय। अनुभव और अभ्यास बढ़ते चलने पर कुछ और उत्तरदायित्व वहन करने के लिए उत्साह जगाया और साहस जुटाया जा सकता है।

इस वर्ष का सबसे सरल और सबसे महत्वपूर्ण कार्य जारी जागरण है। इसे अपने घरों से ही प्रारंभ किया जा सकता है। हर परिवार में पुरुषों की तरह वयस्क महिलाएँ भी होती हैं। उन्हें अपने को, अपने वर्ग को समुन्नत बनाने का लाभ समझाये जाने चाहिए और प्रगति की दिशा में कुछ कदम बढ़ाने के लिए उत्साहित, सहमत किया ही जाना चाहिए। इसके लिए समग्र जानकारी के लिए “महिला जागरण अभियान” पुस्तक अभी-अभी प्रकाशित हुई है।

नारी जागरण की उपयोगिता, आवश्यकता और प्रतिक्रिया को जितने अधिक नर-नारियों को बताया जा सके, बताना चाहिए। यह कार्य नव प्रकाशित पुस्तक को पढ़ाने या सुनाने से अधिक अच्छी तरह से सकता है। छोटे-छोटे नारी संगठन अपने संपर्क क्षेत्र में खड़ा करने के लिए प्रत्येक प्रगतिशील परिजन को सच्चे मन से प्रयत्न करना चाहिए। यदि कार्य की महत्ता को समझा जा सके तो अपने संपर्क क्षेत्रों के परिवारों में से ही एक-एक, दो-दो उत्साही महिलाओं को लेकर “नारी जागरण संगठन” खड़े किये जा सकते है। न्यूनतम पाँच सदस्याओं की एक शाखा बन सकती है। संरक्षक अलग से रहें। वे मार्गदर्शन भर करेंगे, साधन जुटाने और वातावरण बनाने भर में योगदान देंगे। संगठन में सीधी घुसपैठ न करेंगे। अपने देश में नर-नारियों का मिलना जुलना संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही प्रचार, प्रोत्साहन, संगठन एवं गतिविधियों के संचालन की रूपरेखा बनानी चाहिए। आधार भले ही पुरुष खड़ा करे, पर जहाँ तक नारी संगठन के प्रत्येक गतिविधियों का संबंध हैं, उसमें महिलाओं को ही आगे रखना चाहिए।

संगठित महिला-मंडल की सदस्याएँ अपने-अपने संपर्क क्षेत्र में टोलियाँ बनाकर संपर्क साधें और इस निमित्त नई सहयोगिनी खोजें। पाँच सदस्याओं के आरंभिक संगठन का प्रत्येक सदस्य यदि पाँच-पाँच नई सदस्यों और बनाले तो उनकी संख्या पच्चीस हो सकती है। “हम पाँच हमारे पच्चीस” का संकल्प हर जगह साकार हो सकता है। शर्त एक ही है कि विचारशील नर-नारी सच्चे मन से इस प्रयोजन का महत्व समझें और उसका ढाँचा खड़ा करने का भाव भरा प्रयत्न करें। सदस्यता की कोई आर्थिक फीस न रखना ही ठीक होगा। समयदान को ही उनका आरंभिक सहयोग मान लिया जाय।

जहाँ भी नारी संगठन बनें उन्हें शान्ति-कुँज हरिद्वार में पंजीकृत करा लिया जाय ताकि उन्हें आवश्यक मार्गदर्शन और सहयोग समय-समय पर प्राप्त होता रहे। इन संगठनों के आरंभिक कार्यक्रम इस प्रकार है (1) शिक्षा-संवर्धन (2) स्वास्थ्य संरक्षण (3) परिवार निर्माण (4) कुरीतियों का उन्मूलन (5) स्वावलम्बन के लिए कुटीर उद्योगों का शुभारंभ (6) साप्ताहिक सत्संग। जिसके अंतर्गत नारी समस्याओं और उनके संगठनों को प्रवचनों या प्रश्नोत्तरी के रूप में समझा, समझाया जा सके।

उपरोक्त छः सूत्री कार्यक्रमों की क्रिया प्रक्रिया को क्रियान्वित किया जाय, इसका विस्तृत विवरण उपरोक्त मार्ग–दर्शिका पुस्तिका में विस्तारपूर्वक छपा है। इन निर्धारणों को क्रियान्वित करने में कहीं कोई कठिनाई खड़ी नहीं हुई है। सर्वत्र सफलता मिली है। अब आन्दोलन को अग्रगामी बनाने की व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए शान्तिकुँज एक महीने के प्रशिक्षण में कोई भी नर-नारी शान्तिकुंज आ सकते है। लौटने पर सभी क्षमता सम्पन्न हो सकेंगे और अपने क्षेत्र में इस आलोक को सफलता पूर्वक व्यापक बना सकेंगे।


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