बादशाह का अंगरक्षक उनका वफादार नौकर था। एक दिन बादशाह ने गहरी शराब चढ़ा ली। और वे सद्गृहस्थों के घर में घुसकर अशिष्टता करने लगे।
इस पर अंगरक्षक ने उन्हें रोका नहीं पर हाथ पकड़कर राजमहल तक घसीटता लाया और कमरे में बन्द कर दिया।
दूसरे दिन दरबार में नौकर की पेशी हुई। सभी अनुमान लगा रहें थे कि उसे कोई कड़ा दण्ड मिलेगा। पर ऐसा हुआ नहीं।
राजा ने नौकर द्वारा रोकथाम किये जाने की बड़ी प्रशंसा की और कहा- सच्चे शुभ चिंतक का एक कर्त्तव्य यह भी हैं कि मालिक को बुरी राह पर चलने से रोके।
इस कसौटी पर वह अंगरक्षक खरा उतरा और उसे मंत्री का पद दिया गया।