द्रोणाचार्य अपनी साज सज्जा में कंधे पर धनुष बाण और हाथ में शास्त्र रखकर चला करते थे।
किसी ने कहा- इन दोनों की परस्पर क्या संगति ?
द्रोणाचार्य ने कहा-विचारशील को शास्त्र शिक्षा से राह पर लाते है। पर मूढ़मति नरपशु तो प्रताड़ना के बिना बदलते ही नहीं। उनके लिए धनुष धारण करना ही मात्र अवलम्बन है।