व जागरण के अग्रदूत-दीपयज्ञ

June 1988

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दीप-यज्ञ देखने सुनने में एक छोटा-सा धार्मिक खण्ड भर प्रतीत होता है, पर उसके साथ जो व्याख्या, .... व्यवस्थाएँ, क्रिया-प्रक्रियाएँ जुड़ी हुई है उन भीरुतापूर्वक विचार करने से स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति निर्माण और समाज निर्माण के सभी तथ्य रह गूँथ दिये गये है। एक दिवसीय इस आयोजन हाँ कहीं भी सम्पन्न किया गया है वहाँ लोगों में शीलता की ओर असाधारण रूप से आकर्षण बढ़ा .... आन्दोलन में सहयोग करने के लिए परिचितों का ही अपरिचितों का भी मन चलता है।

पिछले दिनों अखण्ड-ज्योति परिवार में प्रायः 2540 पीठें बनी है। स्वाध्याय मंडलों की स्थापना 15000 के .... बनी हैं। स्थापना के समय जो उत्साह था वह .... शिथिल होने लगा तो जिन रचनात्मक क्रियाकलापों के निरन्तर चलने की आवश्यकता थी, उनमें आ गई। स्पष्ट है कि आग में ईंधन न डाला जायगा। .... बुझेगी। पौधे को सींचा न जायगा तो वह सूखेगा। .... स्थापित प्रज्ञा संस्थानों में से केवल वे ही जीवंत गतिशील हैं जहाँ जन जागृति के लिए आवश्यक .... कृत्य होते रहते है। जहाँ अनख आलस्य आया, .... आरंभ हुई वहाँ शिथिलता उत्पन्न होना स्वाभाविक था। होने भी वही लगता है, पर वैसा होना चाहिए। इसमें संस्थापकों और सूत्र संचालकों को .... रूप से अपयश का भागीदार बनना पड़ेगा।

आर्थिक लाभ के काम तो लोग लोभ की प्रेरणा से .... रहते है, पर परमार्थिक कामों के लिए सहयोगियों समर्थकों का उत्साह बनाये रहने के लिए बार-बार कुछ सामूहिक आयोजन स्तर के कार्यक्रम करने पड़ते है। .... धार्मिक समारोहों में अन्य सभी समय साध्य, .... साध्य और साधन साध्य है। उनके लोग दौड़ धूप करने वाले,व्यवस्था के अनुभवी तथा अर्थ व्यवस्था .... सकने में समर्थ होने चाहिए। ऐसे लोग न मिलें तो .... ऐसा बड़ा आयोजन नहीं हो सकता जो जन-साधारण में प्रेरणा भर दे और निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति में .... सहयोग देने लगें।

इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए “दीप-यज्ञों” का उपक्रम इस वर्ष से आरंभ हुआ है। उसे जहाँ भी कार्यान्वित किया गया है वहाँ उन्हें असाधारण जन सहयोग मिला है और पूरी तरह सफलता मिली है। एक आयोजन को देखकर दूसरे अनेकों ने उसी का अनुसरण करने की उत्कंठा व्यक्त की है। वही कारण है कि गत एक वर्ष में ही एक हजार से अधिक सफल आयोजन संभव हो सके। जहाँ भी वे सम्पन्न हुए हैं वहाँ लोक चेतना असाधारण रूप से उभरी है और शिथिल पड़े संगठन एवं कार्यक्रमों में जान आ गई है।

जहाँ भी प्रज्ञा-पीठें स्थापित है। जहाँ स्वाध्याय मण्डल गठित हुए है। जहाँ भी नारी जागरण के अभिनव संगठन खड़े हुए है। वहाँ सामूहिक दीप-यज्ञ करने की योजना बननी चाहिए। यह कार्य अति सरल है। एक दिवसीय होने के कारण उसमें व्यस्तता भी बाधक नहीं होती। खर्च भी नहीं के बराबर पड़ता है। इस प्रक्रिया में प्रातः दीप यज्ञ, तीसरे पहर महिला जागरण सम्मेलन एवं रात्रि को ज्ञान यज्ञ होते है। ज्ञान यज्ञ अर्थात् भावनाओं में भर जाता है। इस समारोह में दुष्प्रवृत्तियों के संवर्धन की आवश्यकता बताई जाती और उन प्रेरणा भरे प्रवचनों को युग धर्म के रूप में अपनाने की ऐसी प्रस्तुति की जाती है जो निरर्थक नहीं जाती। अंध-विश्वासों, कुरीतियों, अवांछनियताओं के विरुद्ध बगावत जैसा वातावरण बनता है साथ ही सत्प्रवृत्तियां अपनाने के लिए लोग भाव श्रद्धा से ओत-प्रोत रचनात्मक संकल्प लेते है। आयोजन के बाद वातावरण में ऐसी गर्मी रहती है जिसे युग चेतना में अग्रगामी बनाने में कुशल लोग ही भली प्रकार प्रयोग कर सकते है।

जहाँ की प्रज्ञापीठें स्त्राध्याय मण्डल शाखा संगठन शिथिल पड़े है वहाँ एक दीपयज्ञ का बड़ा आयोजन करना चाहिए और देखना चाहिए कि अभिनव उत्साह से निर्धारित कार्यक्रमों में उमंग उभरने का कैसा सुयोग बनता है ? इस अवसर पर प्रचार मंडली आनी हो तो शाँतिकुँज से संपर्क साधना चाहिए।


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